सतर्क रहो और अर्थव्यवस्था सुरक्षित रखो
कोरोना वायरस की दूसरी लहर इतना कहर बरपा रही है कि हालात हाथ से निकल रहे हैं। देश के कई राज्यों में नाइट कर्फ्यू लगा दिया गया है।
आदित्य चोपड़ा कोरोना वायरस की दूसरी लहर इतना कहर बरपा रही है कि हालात हाथ से निकल रहे हैं। देश के कई राज्यों में नाइट कर्फ्यू लगा दिया गया है। , में तो हालात बदतर होते जा रहे हैं। शनिवार को संक्रमितों का आंकड़ा एक लाख 45 हजार को भी पार कर गया, मरने वालों की संख्या 780 रही। इनमें से 58993 नए केस ताे महाराष्ट्र से हैं। पूरे राज्य में शुक्रवार रात 8 बजे से सुबह 7 बजे तक के लिए साप्ताहिक लाकडाउन लगा दिया गया है। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में राज्य के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे और राहत एवं पुनर्वास मंत्री विजय वडैट्टीवार ने तो संक्रमण का चक्र तोड़ने के लिए लॉकडाउन की जमकर वकालत की। यद्यपि राज्य सरकार सम्पूर्ण लॉकडाउन के पक्ष में नहीं लेकिन अगर कोरोना की महामारी लगातार बढ़ती रही तो फिर राज्य सरकार के पास सम्पूर्ण लॉकडाउन के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा। नई चुनौती के बीच दिल्ली, पंजाब, मध्य प्रदेश, गुजरात और अन्य राज्यों ने रात्रि कर्फ्यू जैसे उपायों को अपनाना शुरू कर दिया है। अब तो कोरोना वायरस ने युवाओं और बच्चों को अपना शिकार बनाना शुरू कर दिया है। लोगों को एक बात समझ लेनी चाहिए कि बचाव के परम्परागत उपाय नहीं अपनाए गए तो फिर लॉकडाउन ही अंतिम कारगर उपाय होगा। पिछली बार की तरह पाबंदियां सख्ती के साथ लागू नहीं की गई तो पटरी पर लौट रही भारत की अर्थव्यवस्था पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ेगा। बड़ी मुश्किल से शुरू हुए कामधंधे ठप्प हो जाएंगे, एक बार फिर बड़े पैमाने पर रोजगार का संकट पैदा हो जाएगा। वहीं एक बड़ी आबादी को शहरों से गांंव की ओर विस्थापित होना पड़ेगा। प्रवासी मजदूरों का पलायन तो पिछले साल की तरह शुरू हो चुका है। वहां से ट्रेनों की खचाखच बोगियों में भर करके मजदूर अपने घरों को लौट रहे हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार जाने वाली ट्रेनों के डिब्बों में पैर रखने की जगह नहीं। बोगी के अन्दर लोग एक-दूसरे के ऊपर गिरे जा रहे हैं। एेसे ही हालात पंजाब के रेलवे स्टेशनों और बिहार के रेलवे स्टेशनों का भी है। विडम्बना यह है कि पिछले वर्ष मजदूर तमाम दिक्कतें झेल कर अपने घरों को लौटे तो लॉकडाउन खुलने के बाद फिर अपने-अपने पुराने ठिकानों पर लौटे। फैक्टरियां, उद्योग खुले तो श्रमिकों को वापिस बुला लिया गया। अब उन्हें फिर धंधे को लौटना पड़ रहा है। रेलवे स्टेशनों, ट्रेनों और बस अड्डों पर सोशल डिस्टेंसिंग असम्भव है लेकिन लॉकडाउन का डर ऐसा है कि लोग हर खतरा मोल लेने को तैयार है। मजदूर जानते हैं कि घर पहुंचने से पहले इनके शरीर में कोरोना पहुंच सकता है।