आदित्य चौपड़ा। देश में कोरोना संकट का कहर भयावह है। किसी ने पिता खोया तो किसी ने मां, किसी ने माता-पिता दोनों खोये तो किसी ने भाई, बहन और चाचा-चाची। मानवीय स्तर पर भी बहुत से लोगों को आघात लगा और आर्थिक स्तर पर काफी आघात लगा। कहीं बच्चे अनाथ हो गए तो कहीं परिवार का कमाने वाला असमय ही काल कवलित हो गया। समय बड़ा निष्ठुर है, कुछ समझ में नहीं आ रहा कि इस समय क्या किया जाए। कोरोना की दूसरी लहर में राहत के आसार तो दिखाई देने लगे हैं लेकिन कोरोना वायरस से पूरी तरह मुक्ति पाने तक मौतों का आंकड़ा कहां तक पहुंचेगा, कोई कुछ नहीं कह सकता। उम्मीद है कि राज्य सरकारें ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी निभाएंगी और साथ ही सही-सही आंकड़ें रखेंगी। केवल बच्चे ही नहीं, ऐसे परिवारों की संख्या भी कम नहीं होगी जिनके परिवार का पालन-पोषण करने वाला नहीं रहा। ऐसी स्थिति बुजुर्गों के बेटे-बेटियों की हो सकती है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने कोरोना वायरस से मरने वालों के परिवार को सहायता का हिस्सा बनाया है, जो अनुकरणीय है। अरविन्द केजरीवाल ने मरने वालों के परिवार को 50 हजार रुपए की सहायता, अगर परिवार का कमाने वाला सदस्य नहीं रहा तो विधवा महिलाओं को 2500 रुपए पेंशन और उनके बच्चे को 25 वर्ष की उम्र तक 2500-2500 की पेंशन हर माह दी जाएगी। बच्चों की शिक्षा का खर्च भी सरकार उठाएगी। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने भी महामारी में माता-पिता की मौत के बाद अनाथ हुए बच्चों को हर माह पांच हजार रुपए की पेंशन देने और उनकी मुफ्त शिक्षा और मुफ्त राशन व्यवस्था करने की घोषणा की है। अनाथ हुए बच्चों को सामने लाना और उनकी सहायता करना सरकारों और समाज की जिम्मेदारी भी है। हम सबको यह जिम्मेदारी ईमानदारी से निभानी होगी। अभिभावकों की कमी तो कोई जीवन भर पूरा नहीं कर सकता लेकिन ऐसे बच्चों और परिवारों की देखभाल करके हम उन्हें भावनात्मक स्नेह प्रदान कर सकते हैं।