हिंसा का प्रसार

जिस आयु में बच्चों को खेलना और अपनी पाठ्य पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिए उस आयु में वे हिंसा करें तो हर किसी को आश्चर्य होता है। लखनऊ की घटना से इस बात का पता चलता है

Update: 2022-06-11 05:13 GMT

Written by जनसत्ता: जिस आयु में बच्चों को खेलना और अपनी पाठ्य पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिए उस आयु में वे हिंसा करें तो हर किसी को आश्चर्य होता है। लखनऊ की घटना से इस बात का पता चलता है कि आखिरकार बच्चों की मानसिक प्रवृत्ति में किस तरह से परिवर्तन आ रहा है।

पबजी खेलने के लिए अपनी मां को गोली मार कर दो दिनों के लिए लाश कमरे में बंद कर दी। इस तरह की हिंसा की प्रवृत्ति आखिरकार बच्चों के अंदर भर रही है। कहीं पर अपने माता-पिता के पैसे हड़पने नाना-नानी, दादा-दादी चाचा आदि के साथ समय-समय पर विभिन्न तरह की हिंसा देखने को मिलती रही है। बच्चों के अंदर इस तरह की प्रवृत्ति को विभिन्न धारावाहिक और फिल्में भी उकसाती हैं।

कोविड-19 महामारी के दौर में शिक्षण संस्थाएं बंद रहीं, तब बच्चे घरों में रहे और उन्होंने विभिन्न तरह के टेलीविजन और विभिन्न तरह के कार्यक्रम देख कर अपना समय व्यतीत किया। आनलाइन शिक्षा के दौरान विभिन्न तरह से मोबाइल इंटरनेट की सुविधाओं वाले अनेक परिवारों में बच्चों के अंदर जिस प्रकार से मानसिक विकास हुआ उसने हिंसा का रूप भी ले लिया।


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