सॉरी, 'सारी' लेडीज़! आपके कपड़ों पर भी उठाता है कोई सवाल
किसी भी व्यक्ति का पहनावा उसका बेहद निजी मामला होता है। आप क्या पहनते हैं, ये आपकी पसन्द और आपके कम्फर्ट का मामला ज्यादा है,
किसी भी व्यक्ति का पहनावा उसका बेहद निजी मामला होता है। आप क्या पहनते हैं, ये आपकी पसन्द और आपके कम्फर्ट का मामला ज्यादा है, क्योंकि अगर आपने अपनी पसंद और अपने आराम के लिहाज से परिधान नहीं पहना मतलब या तो आप पर किसी का दबाव है या फिर आप सिर्फ दूसरों को खुश करने के लिए कपड़ा पहन रहे हैं। और ये दोनों ही स्थितियां किसी इंडीविजुअल के लिहाज से तकलीफदायक हैं।
खैर... फिलहाल बात करें उस घटना की, जो पिछले दिनों देश की राजधानी दिल्ली के दक्षिणी इलाके में एक पॉश कहे जाने वाले रेस्टोरेंट में घटी। जब एक वरिष्ठ पत्रकार ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक वीडियो क्लिप डाली।
इस क्लिप ने सोशल मीडिया पर कमेंट्स और चर्चाओं की बाढ़ ला दी। विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर महिला अपने साथ किये गए दुर्व्यवहार की पीड़ा दर्शा रही थीं और रेस्टोरेंट प्रबंधन अपनी सफाई प्रस्तुत कर रहा था। फिलहाल दोनों पक्षों की स्थिति जानने के बाद सवाल अब केवल परिधान से जुड़ा नहीं रह गया। कहीं न कहीं यह हमारी उसी पुरानी मानसिकता को दर्शा रहा है जहां अंग्रेजी बोलने वाले सभ्य और गांव या कस्बों में रहने वाले असभ्य माने जाते हैं। अगर यह सच मे ऐसा है तो पूरे समाज को आत्मविश्लेषण करने की खासी जरूरत है।
हमारा समाज बहुत सारी विभिन्नताओं से मिलकर बना है। पहनावा भी इस विभिन्नता का ही एक हिस्सा है। हमारे देश में अलग अलग हिस्सों को मिलाकर सैकड़ों प्रकार से साड़ी पहनी जाती है और हर प्रकार उस स्थान विशेष की पहचान है। साड़ी केवल एक परिधान ही नहीं है बल्कि हमारी सांस्कृतिक पहचान है। हां, यह किसी भी व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह इसे किस प्रकार से पहनना चाहेगा। ऐसे में केवल परिधान के आधार पर किसी को सार्वजनिक सुविधा का प्रयोग करने से रोकना वाकई एक स्वतंत्र देश की व्यवस्था पर प्रश्न उठाता है।
इस क्लिप के जरिये उक्त महिला ने इस पॉश रेस्तरां और उसके स्टाफ की शिकायत करते हुए कहा कि उन्हें वहां अंदर जाने से सिर्फ इसलिए रोका गया क्योंकि उन्होंने साड़ी पहनी हुई थी। वीडियो क्लिप में एक युवती यह कहते हुए नजर भी आ रही है कि वे लोग सिर्फ स्मार्ट कैजुअल्स पहने अतिथियों को ही प्रवेश देते हैं और साड़ी स्मार्ट कैजुअल नहीं है।
महिला इस व्यवहार से आहत हैं और उनके समर्थन में कई लोग खड़े हुए हैं। वही रेस्टोरेंट प्रबंधन का कहना है कि समस्या पहनावे को लेकर नहीं थी। असल में उक्त महिला ने उनके स्टाफ से अभद्रता की थी और बेवजह बहस करके मामले को तूल दिया। रेस्टोरेंट प्रबंधन का कहना है कि साड़ी पर किया गया उनके कर्मचारी का कमेंट उसकी पर्सनल राय है और वे इससे इत्तिफाक नही रखते। उनके यहां तो साड़ी पहने गेस्ट आमतौर पर आते रहते हैं।
यह वाकया सालों पहले कला क्षेत्र के दिग्गज, मशहूर पेंटर स्व. श्री एम.एफ. हुसैन के साथ हुए वाकये को ताजा करता है। हुसैन साहब को साउथ मुम्बई के एक क्लब में इंट्री देने से इसलिए मना कर दिया गया था क्योंकि उन्होंने जूते नहीं पहने थे। अब असल में आमतौर पर हुसैन साहब जूते-चप्पल पहनते ही नहीं थे। उनका मानना था कि उनके पैर जमीन से सीधे संपर्क में आते हैं तो उन्हें सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। और यह तबकी बात है जब हुसैन साहब देश भर में नाम कमा चुके थे। फिर भी उस क्लब ने उन्हें एंट्री देने से मना कर दिया। हुसैन साहब कलाकार थे, मनमौजी थे उन्होंने इस बात को भी उसी तरह लिया और बाद में निश्चित ही उस क्लब को भी अंदाजा हुआ होगा कि उसने क्या खोया। लेकिन अर्थ यह है कि यह सब पहली बार नहीं हुआ।
आमतौर पर बड़े रेस्टोरेंट्स, क्लब्स आदि जैसी जगहों पर ड्रेस कोड होते हैं और इसे लोगों को स्पष्ट कर दिया जाता है। यहां तक भी आपत्ति करने जैसी बात नहीं। ठीक है कि लोग उस ड्रेस कोड को फॉलो करें या न करें यह उनकी मर्जी है और वे उस जगह न जाएं जहां इस तरह के नियम हैं। लेकिन किसी सर्वजनिक जगह पर एक कर्मचारी का चिल्ला चिल्ला कर यह कहना कि वे किसी व्यक्ति को उसके पहनावे की वजह से अंदर नहीं जाने दे सकते और फिर सबके सामने उस व्यक्ति का उपहास उड़ाना, ये स्थिति दुखद है।
साड़ी को लेकर देशभर में अनेक तरह की भावनाएं हैं। आज भले ही महिलाओं ने कम्फर्ट और आसान लगने के कारण अन्य परिधान धारण कर लिए हों, तीज-त्योहार, ब्याह- शादी आदि जैसे अवसरों पर अब भी साड़ी ही लोगों की पहली पसंद होती है। बल्कि अब तो कम्फर्ट के लिहाज से रेडी टू वियर साड़ी, डेनिम टॉप के साथ कैरी की जाने वाली फ्यूजन साड़ी जैसी चीजें भी बाज़ार में उपलब्ध हैं जिन्होंने साड़ी को स्टाइल स्टेटमेंट दिया है।
यहां तक कि विदेशों में भी साड़ी को बेहद पसंद किया जाता है। ऐसे में साड़ी को 'स्मार्ट कैजुअल्स'की श्रेणी से बाहर रखना अजीब सा एक्सक्यूज़ लगता है। संस्कृति, परम्परा और पहनावे से भी ऊपर यह किसी व्यक्ति के द्वारा खुशी से चुने गये जीवन पर आघात करना है और ऐसा अगर होते रहने दिया तो समाजिक स्तर पर बड़ी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।