मन के रोगी

शारीरिक रोग को समय रहते इलाज से ठीक किया भी जा सकता है, मगर जब हम मानसिक रूप से अस्वस्थ हो जाते हैं तो हमारा ठीक होना नामुमकिन नहीं भी तो बहुत मुश्किल हो जाता है।

Update: 2022-10-13 06:22 GMT

Written by जनसत्ता: शारीरिक रोग को समय रहते इलाज से ठीक किया भी जा सकता है, मगर जब हम मानसिक रूप से अस्वस्थ हो जाते हैं तो हमारा ठीक होना नामुमकिन नहीं भी तो बहुत मुश्किल हो जाता है। इसके कारण दूसरों को भी जान को खतरा बना रहता है। 24 मई, 2022 को संयुक्त राज्य अमेरिका के टेक्सास के उवाल्डे में राब एलीमेंट्री स्कूल में एक सामूहिक गोलाबारी करके अठारह वर्षीय किशोर सल्वाडोर रामोस ने उन्नीस छात्रों और दो शिक्षकों को मार दिया था। रामोस मानसिक रूप से बीमार था, क्योंकि उसे स्कूल से निकाल दिया गया था।

हाल ही में थाईलैंड के एक बर्खास्त पुलिस अधिकारी चौंतीस वर्षीय पन्या कामराप ने मासूम बच्चों के स्कूल में अंधाधुंध गोली चलाकर छत्तीस लोगों को मौत के घाट उतार दिया। इसका भी पृष्ठभूमि में मादक पदार्थ का सेवन और नौकरी का चले जाना था। फिर अमेरिका में एक चार सदस्यीय सिख परिवार की अड़तालीस वर्षीय जीसस मेनुएल ने इसलिए हत्या कर दी कि इस परिवार, जिनके ट्रांसपोर्ट कंपनी में हत्यारा काम किया करता था, उसे नौकरी से निकाल दिया गया था। मतलब साफ है। दुनिया भर में तनाव एवं अवसाद बढ़ता जा रहा है, जो सामाजिक शांति को प्रभावित कर रहा है। दुनिया भर की सरकारों को इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।

केंद्र सरकार ने भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश केजी बालकृष्णन की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया है। यह आयोग उन लोगों को अनुसूचित जाति (एससी) का दर्जा देने के मामले का परीक्षण करेगा, जिनका ऐतिहासिक रूप से अनुसूचित जाति से संबंध है, लेकिन जिन्होंने किसी अन्य धर्म को अपना लिया है। संविधान (एससी) आदेश, 1950 कहता है कि हिंदू या सिख धर्म या बौद्ध धर्म के अलावा किसी अन्य धर्म को मानने वाले व्यक्ति को अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जा सकता है।

धर्म परिवर्तन करते वक्त ही धर्म परिवर्तन करने वाले को ज्ञात रहता है कि उसे आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। इसके बावजूद वह यदि धर्म परिवर्तन करता है तो बाद में आरक्षण का लाभ मांगने का उसे कोई हक नहीं है, क्योंकि वह धर्म परिवर्तन अधिक लाभ की अपेक्षा से ही करता है।

लेकिन यह भी दुखद सच है कि कई कमजोर जातियों की सामाजिक हैसियत दूसरे धर्मों में भी पूर्ववत बनी रह जाती है और वहां भी वे वंचना के ही शिकार होते हैं। उनके लिए सरकार को अलग से व्यवस्था करनी चाहिए, लेकिन अगर धर्म परिवर्तन करने वाले को भी मौजूदा आरक्षण के दायरे में से लाभ दिया जाता है तो आरक्षण के वास्तविक हकदारों को इसका खमियाजा भुगतना पड़ेगा।

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