सिमटते संबंध
ठीक उसी तरह से पारिवारिक व्यस्था में भी बदलाव आया है। समूह से एकल होने के बाद संबंधों के लगभग सारे बंधन टूट जाने के रास्ते में अपने और पराए के प्रति जिम्मेदारी का अहसास भी लगभग खत्म होता जा रहा है।
Written by जनसत्ता; ठीक उसी तरह से पारिवारिक व्यस्था में भी बदलाव आया है। समूह से एकल होने के बाद संबंधों के लगभग सारे बंधन टूट जाने के रास्ते में अपने और पराए के प्रति जिम्मेदारी का अहसास भी लगभग खत्म होता जा रहा है। राष्ट्रीय परिवार सर्वेक्षण के अनुसार वर्तमान समय में 75 फीसद लोग एकल पारिवारिक व्यवस्था को अपना चुके हैं।
इसका मुख्य कारण संवाद में कमी और इसके तकनीकी विकल्पों पर बढ़ती निर्भरता है। यानी स्मार्टफोन में लोगों की बढ़ती व्यस्तता। हालांकि इंसान के भीतर इतनी विवेक की शक्ति होती ही है कि वह किसी चीज या व्यवस्था को अपने ऊपर हावी न होने दे। आने वाली पीढ़ी को हमें संबंध के महत्त्व को बताने से पहले वर्तमान पीढ़ी को संबंध के बारे जागरूक करना होगा कि कैसे संयुक्त परिवार में देसी खाने से ही लोग शरीर को सुडौल बना लेते थे, देसी दवाइयां कैसे बड़ी से बड़ी बीमारियां ठीक कर देती थीं।
यह एकल पारिवारिक व्यवस्था हमारी संस्कृति को भी समाप्त कर देगा। हमारा कर्तव्य है कि अपनी पीढ़ियों को आधुनिक बनाने के साथ-साथ प्राचीन संस्कृति से भी परिचित कराया जाए, चाहे वे खाने-पीने के हों, पहनने-ओढ़ने के या फिर रिश्ते के ही क्यों न हों।
किसी भी नई भाषा का अध्ययन करना व्यक्ति को सशक्त बनाता है, इसलिए स्कूली विद्यार्थियों के लिए किसी भी नई भाषा का अध्ययन करने का विकल्प होना चाहिए। अगर वे वास्तव में इसे आगे बढ़ाने में रुचि रखते हैं, तो उन्हें प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। ऐसे में गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी एक विकल्प हो सकती है।
पर हिंदी को लाभदायक बातचीत का माध्यम बनाने के मुद्दे पर गैर-हिंदी भाषी राज्यों के लोगों को विश्वास में लेना होगा और उन्हें हिंदी भाषा के बारे में समझाना होगा। गैर हिंदी भाषी राज्यों में लोगों को प्रेरणा और प्रोत्साहन के साथ हिंदी सीखने के लिए एक क्रमिक प्रक्रिया की आवश्यकता है। अनेक राज्यों की स्थानीय भाषा के साथ दोयम व्यवहार का दुष्प्रचार कर कुछ राजनेताओं ने जहर उगलने से सत्ता पाई है, जिसके परिणामस्वरूप बुद्धिमान दिमागों को हिंदी सीखने और धनी हिंदी साहित्य को पढ़ने और समझने से रोक दिया गया है।
सच यह है कि भारत की ताकत व्यापक बहुभाषावाद में निहित है। एक से अधिक भाषाओं का ज्ञान लाभप्रद है। लेकिन 'पसंदीदा भाषा' को बढ़ावा देने के प्रयासों को अन्य भाषाओं की उपस्थिति के प्रति संवेदनशील होना चाहिए, खासकर गैर हिंदी पट्टी में। भारतीय युवा विदेशी भाषाओं के प्रति आकर्षित होते हैं, चाहे वह फ्रांसीसी हो, जर्मन हो या जापानी, लेकिन हिंदी सीखना भी फायदेमंद है क्योंकि संचार के साधन के रूप में भारतीय प्रवासी पूरी दुनिया में रह रहे हैं। हिंदी में संचार करना किसी भी अन्य भाषा की तुलना में भारतीय नागरिक के लिए कहीं अधिक आसान है। तथ्य यह भी है कि अंग्रेजी पर निर्भर आज की तकनीक संचालित दुनिया में आप अकेले हिंदी पर टिके नहीं रह सकते। हिंदी हमारी विरासत है।