शिवराज सिंह चौहान; हिंदी भाषी राज्यों में चौथी बार CM की कुर्सी संभालने वाले अकेले नेता

हिंदी भाषी राज्यों में चौथी बार CM की कुर्सी संभालने वाले अकेले नेता

Update: 2022-03-24 11:57 GMT

दिनेश गुप्ता

नवंबर 2005 में शिवराज सिंह चौहान ने जिन परिस्थितियों में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, उनमें यह दावा करना कठिन था कि पार्टी उनके नेतृत्व में ही विधानसभा चुनाव में जाएगी. पार्टी दो मुख्यमंत्री पहले ही बदल चुकी थी. यह मिथक भी पार्टी के साथ जुड़ा हुआ था कि गैर कांग्रेसी सरकार राज्य में पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाती हैं. शिवराज सिंह चौहान ने सभी मिथकों को तोड़ते हुए मुख्यमंत्री के पद पर पंद्रह साल से अधिक समय तक टिके रहने का रिकार्ड कायम किया है.
भारतीय जनता पार्टी में चौहान अकेले ऐसे व्यक्ति हैं, जो इस पद पर रिकार्ड समय तक बने रहते हुए चौथी पारी खेल रहे हैं. चौहान के सामने सबसे बड़ी चुनौती अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी को पुन: सत्ता में लाकर उत्तर प्रदेश की तरह मध्यप्रदेश को भी कांग्रेस से मुक्त कराने की है.
मध्यप्रदेश में नहीं है क्षेत्रीय राजनीतिक दल की चुनौती
मध्यप्रदेश की राजनीति दो दलीय व्यवस्था पर चली आ रही है. कोई तीसरा राजनीतिक दल मध्यप्रदेश में अपने पैर नहीं जमा पाया. भाजपा से ही अलग हुए दो पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सकलेचा और उमा भारती ने अलग राजनीतिक पार्टी बनाकर क्षेत्रीय दल के रूप में स्थापित की थी. लेकिन,सफल नहीं हुए. उमा भारती ने भारतीय जनशक्ति पार्टी के नाम से अलग राजनीतिक दल बनाया था. इस राजनीतिक दल की उत्पत्ति शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री बनने से जुड़ी हुई है. उमा भारती चौहान को मुख्यमंत्री बनाए जाने के खिलाफ थीं. विधायक दल की बैठक में उन्होंने पार्टी के इस निर्णय का विरोध किया. समर्थकों के साथ पार्टी भी छोड़ दी. वर्ष 2003 में उमा भारती के नेतृत्व में ही भारतीय जनता पार्टी ने दस साल बाद सरकार में वापसी की थी. उमा भारती ने दिग्विजय सिंह के बढ़ते राजनीतिक ग्राफ को भी रोक दिया था. 2004 में कर्नाटक के हुबली की एक अदालत द्वारा जारी किए गए गिरफ्तारी वारंट के कारण उमा भारती को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था. उन्होंने पद से इस्तीफा नैतिक आधार पर दिया था.
उमा भारती लगभग दस माह मुख्यमंत्री रहीं. उनके स्थान पर बाबूलाल गौर को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया था. उमा भारती के विरोध के कारण पार्टी ने गौर को हटा दिया था. उमा भारती के विरोध को दरकिनार शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला पार्टी ने लिया था. चौहान को आज भी अप्रत्यक्ष तौर पर उमा भारती के राजनीतिक विरोध का सामना करना पड़ता है. चौहान भाग्य के धनी माने जाते हैं. उनके राजनीतिक विरोधियों को कभी किसी भी स्तर पर समर्थन नहीं मिल पाया है.
शिवराज सिंह चौहान ने दी है भाजपा सरकार को स्थिरता
अस्थिरता के माहौल में शिवराज सिंह चौहान ने भाजपा की सरकार को स्थिरता प्रदान की है. 2003 से पहले राज्य में जब भी गैर भाजपा सरकार बनी वह अपने अंतर्विरोधों के चलते पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई. लगातार पंद्रह साल भाजपा राज्य में भाजपा की सरकार बनाए रखने का श्रेय शिवराज सिंह चौहान के खाते में दर्ज है. हिन्दी भाषी राज्यों में वे अकेले ऐसे नेता हैं जो चौथी बार मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल रहे हैं. पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में डॉ.रमन सिंह पंद्रह साल मुख्यमंत्री रहे. मुख्यमंत्री के तौर पर उन्हें तीन कार्यकाल मिले. शिवराज सिंह चौहान का चौथा कार्यकाल है. डॉ. रमन सिंह के पंद्रह साल का रिकार्ड भी वे तोड़ चुके है.
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से अधिक वोट हासिल करने के बाद भी चौहान मुख्यमंत्री बनने से चूक गए थे. चुनाव में सबसे बड़े राजनीतिक दल होने के कारण कांग्रेस को सरकार बनाने का मौका मिला. कमलनाथ की सरकार पंद्रह माह में गिर गई. सरकार गिराने की कोशिश शिवराज सिंह चौहान ने नहीं की. ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों के भाजपा में शामिल हो जाने के कारण शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री के तौर चौथी पारी खेलने का मौका मिला. 23 मार्च को चौथी पारी के दो साल शिवराज सिंह चौहान ने पूरे कर लिए हैं. राज्य में अगले साल विधानसभा के चुनाव हैं.
सुशासन के जरिए व्यापमं के दाग धोने की कवाय
पंद्रह साल से अधिक समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकार्ड बनाने के लिए शिवराज सिंह चौहान को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. 2008 के विधानसभा चुनाव में चौहान के खिलाफ डंपर मामला विरोधियों की मदद नहीं कर पाया. 2013 के बाद व्यापमं घोटाले ने सरकार की छवि को राष्ट्रीय स्तर पर नुकसान पहुंचाया. एक क्षेत्र विशेष के लोगों की भर्ती किए जाने के आरोप भी लगे. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हुई सीबीआई जांच में आरोपों के प्रमाण सामने नहीं आ सके. लेकिन, व्यापमं से लगे दाग को मुख्यमंत्री चौहान ने सुशासन के नए प्रयोग कर मिटाने की कोशिश जरूर की. लोगों को जरूरी सेवाएं समय पर मिल सके इसके लिए लोक सेवा गारंटी कानून बनाया गया. इसके तहत आमजन खसरा खतौनी से लेकर आय प्रमाण पत्र तक घर बैठे निर्धारित समय में प्राप्त कर सकता है. समय पर सेवाओं को न देने पर जिम्मेदार अधिकारी को दंडित भी किया गया.
चौथे कार्यकाल की सबसे बड़ी चुनौती कोरोना संक्रमण की थी. चौहान खुद दो बार संक्रमित हुए. दूसरी लहर में देशव्यापी ऑक्सीजन की कमी का असर मध्यप्रदेश में भी हुआ. श्मशान घाट पर जलती चिताएं विचलित करने वाली थीं. किसानों के खाते में सीधे आर्थिक मदद देकर अर्थ व्यवस्था को भी संभालने की कोशिश का नतीजा है कि राज्य की विकास दर सर्वोच्च स्तर पर है.
लाडली लक्ष्मी और बुलडोजर में छिपा जीत का मंत्र
शिवराज सिंह चौहान को काजल की कोठरी में रह कर कालिख से बचे रहने का मंत्र बखूबी आता है. वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने का मौका जिस योजना के कारण मिला उसका नाम लाडली लक्ष्मी योजना है. 2023 के विधानसभा चुनाव में जीत का मंत्र लाडली लक्ष्मी 2.0 के अलावा बुलडोजर को बनाने की कवायद वे कर रहे हैं. लाडली लक्ष्मी 2.0 में उन्होंने कॉलेज प्रवेश के वक्त स्कॉलरशिप देने की योजना बनाई है. अगले दो साल में वे बेटियां कॉलेज में प्रवेश लेगीं जिनका जन्म लाडली लक्ष्मी योजना के साथ हुआ.


उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तर्ज पर मुख्यमंत्री चौहान भी बुलडोजर पर सवार दिखाई दे रहे हैं. बुलडोजर को उत्तरप्रदेश में भाजपा की जीत का एक बड़ा कारण माना गया. शिवराज सिंह चौहान का बुलडोजर भी माफिया और अपराधियों पर चलना शुरू हो गया. बलात्कार के आरोपियों के अलावा भूमाफिया चौहान के निशाने पर है. चौहान का नया नाम है बुलडोजर मामा.


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