पाकिस्तान में कई मोर्चों पर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं शाहबाज शरीफ, सेना के जनरलों को भी विपक्ष के प्रति व्यवहार में लानी होगी नरमी
पाकिस्तान की खस्ताहाल आर्थिक स्थिति बड़ी चुनौती
के वी रमेश।
शाहबाज शरीफ (Shahbaz Sharif) ने पाकिस्तान (Pakistan) के नए प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेकर वहां की उस राजनीतिक अराजकता को अस्थाई रूप से रोक दिया है, जो पाकिस्तान को संवैधानिक संकट के आखिरी किनारे तक ले जाने की धमकी दे रही थी. पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ (Nawaz Sharif) के भाई शाहबाज शरीफ पाकिस्तान की राजनीति में लंबा अनुभव रखते हैं. अगर बतौर पंजाब के मुख्यमंत्री उनके कार्यकाल को देखें तो उन्हें एक सक्षम प्रशासक के तौर पर जाना जाता है. यहां तक कि उन्हें राजनीतिक रूप से उनके बड़े भाई नवाज शरीफ से भी ज्यादा बड़ा जानकार माना जाता है.
शाहबाज शरीफ इस बार अपनी पार्टी पीएमएल (एन) की मुख्य प्रतिद्वंदी मानी जाने वाली पीपीपी और मौलाना फजलुर रहमान की जेयूआई के गठबंधन का नेतृत्व करेंगे, जिसके पास फिलहाल संसद में एक भी सीट नहीं है. नए प्रधानमंत्री के सामने दो बड़ी चुनौतियां हैं, एक तो अपने इस गठबंधन को संभालने की, दूसरी इमरान खान द्वारा पैदा की गई एक राजनीतिक चुनौती की, जिन्होंने घोषणा की है कि वह अब पाकिस्तान में आजादी के लिए संघर्ष शुरु करेंगे. इमरान खान की पार्टी पीटीआई के कार्यकर्ता पहले से ही आश्वस्त हैं कि उनके नेता को विपक्षी पार्टियों (पीएमएल-एन), पीपीपी और मुख्य रूप से उनकी पार्टी के दलबदलुओं ने विदेशी साजिश के तहत सत्ता से बाहर किया है.
पाकिस्तान की खस्ताहाल आर्थिक स्थिति बड़ी चुनौती
हालांकि, इस बार शाहबाज शरीफ को पाकिस्तानी सेना का भी समर्थन प्राप्त है, पाकिस्तानी आर्मी के जनरल कमर जावेद बाजवा के नेतृत्व वाली सेना शाहबाज शरीफ के समर्थन में तटस्थ रहेगी और उन्हें हर वह सहायता प्रदान करेगी जिसकी उन्हें जरूरत है. सेना द्वारा राजनीति में लाए गए शरीफ परिवार के संबंध हाल के दिनों में सेना के साथ बेहतर नहीं रहे. लेकिन जिन जनरलों ने इमरान खान को सत्ता में लाया था, वे उनके गलत व्यवहार से इतना परेशान थे कि उन्होंने अपना रुख एक बार फिर शरीफ परिवार की ओर कर लिया. हालांकि इस बार शाहबाज शरीफ के सामने कई महत्वपूर्ण चुनौतियां हैं, इनमें से सबसे बड़ी चुनौती पाकिस्तान की खस्ताहाल आर्थिक स्थिति है.
पाकिस्तान इस वक्त राजनीतिक उथल-पुथल के साथ-साथ महंगाई, कर्ज, खाली खजाने से जूझ रहा है. इसके साथ ही चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की परियोजनाओं को फिर से शुरू करने की चुनौती भी है, जो लंबे समय से निष्क्रिय पड़ी है. साथ में पाकिस्तान को खुद को एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट से बाहर निकालना होगा और अपने पड़ोसी देश भारत, अफगानिस्तान और ईरान के साथ संबंध भी सुधारने होंगे. इन सब में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पाकिस्तान को अपने संबंध अमेरिका के साथ फिर से बेहतर करने होंगे.
खान से बेहतर शाहबाज
सही मायनों में कहें तो समस्याएं इतनी विकट हैं कि शाहबाज शरीफ शायद ही इनसे पार पा पाएं. इसके साथ ही उन्हें अक्टूबर में होने वाले पाकिस्तान के आम चुनावों में भी उतरना होगा. हालांकि यह भी है कि शाहबाज शरीफ किसी भी मामले में इमरान खान से बदतर कुछ नहीं कर सकते, जिसे शासन के बारे में कोई जानकारी नहीं थी और वह केवल अपनी भव्यता के भ्रम में फस कर रह गया. साथ ही शाहबाज शरीफ को इमरान के राजनीतिक षड्यंत्रों से भी निपटना होगा और पूरी चतुराई के साथ सेना के साथ मिलकर देश की सत्ता को संभालनी होगी.
शाहबाज शरीफ को वित्त मंत्री के रूप में उनके पुराने दोस्त मिफ्ताह इस्माइल का साथ मिलेगा, लेकिन आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए शाहबाज को खुद भी संघर्ष करना पड़ेगा. इसके साथ ही विदेश नीति पर पाकिस्तान की सेना शाहबाज शरीफ के साथ खड़ी रहेगी, जैसा कि पिछले हफ्ते इस्लामाबाद में सुरक्षा वार्ता के दौरान अपने भाषण में बाजवा ने साफ संकेत दिया था.