छह राज्यों की सात सीटें !

आज छह राज्यों की सात विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के लिए मतदान हुआ है। ये राज्य हैं हरियाणा (आदमपुर), बिहार (गोपालगंज व मोकामा), उत्तर प्रदेश (गोला गोकरनाथ), महाराष्ट्र (अंधेरी पूर्व), तेलंगाना (मुनुगोड्डे) व ओडिशा (धमनगर)।

Update: 2022-11-04 04:11 GMT

आदित्य चोपड़ा; आज छह राज्यों की सात विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के लिए मतदान हुआ है। ये राज्य हैं हरियाणा (आदमपुर), बिहार (गोपालगंज व मोकामा), उत्तर प्रदेश (गोला गोकरनाथ), महाराष्ट्र (अंधेरी पूर्व), तेलंगाना (मुनुगोड्डे) व ओडिशा (धमनगर)। जाहिर इन उपचुनावों से किसी भी राज्य के राजनीतिक समीकरणों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा परन्तु इतना जरूर पता चलेगा कि विभिन्न विपक्षी क्षेत्रीय दलों व कांग्रेस की स्थिति भाजपा के मुकाबले क्या है? सभी स्थानों पर केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा का मुकाबला होना है। इन सभी राज्यों में केवल हरियाणा, महाराष्ट्र व उत्तर प्रदेश में ही भाजपा सत्ता में है जबकि शेष तीन राज्यों तेलंगाना, बिहार, ओडिशा में क्षेत्रीय दलों क्रमशः तेलंगाना राष्ट्रीय समिति, राष्ट्रीय जनता दल महागठबन्धन व बीजू जनता दल की सरकारें हैं। कांग्रेस पार्टी केवल हरियाणा के आदमपुर व तेलंगाना के मुनुगोड्डे स्थान पर मुकाबले में है। इन उपचुनावों में भाजपा का मुकाबला ही जिस प्रकार हो रहा है उससे यही अन्दाजा लगाया जा सकता है कि क्षेत्रीय स्तर पर राज्यों के प्रभावशाली राजनैतिक दल अपनी नाक की लड़ाई लड़ रहे हैं। 90 के दशक से पहले तक उपचुनावों का यह अलिखित नियम हुआ करता था कि इनमें प्रायः राज्य का सत्तारूढ़ दल चुनाव हार जाया करता था और विपक्षी पार्टियां शोर मचाया करती थीं कि सरकार का इकबाल कम हो रहा है । कभी-कभी तो किसी एक उपचुनाव में हार जाने पर सरकार यानि मुख्यमन्त्री का इस्तीफा तक विपक्ष मांगने लगता था। मगर 90 के दशक के बाद इसमें परिवर्तन आना शुरू हुआ और उपचुनाव प्रायः सत्तारूढ़ दल ही जीतने लगा। इस पर विपक्ष ने सत्तारूढ़ दल पर सत्ता और धनशक्ति की ताकत का चुनावों में इस्तेमाल करने का आरोप लगाना शुरू कर दिया। परन्तु इन आरोपों से आम जनता का कोई खास लेना-देना नहीं होता है क्योंकि वह अपने क्षेत्र की समस्याओं व उनके निराकरण के मुद्दों को ध्यान में रखकर ही वोट डालती है। उपचुनावों का एक नियम व परंपरा भी हुआ करती थी कि राज्य के उपचुनाव में मुख्यमन्त्री और लोकसभा अर्थात केन्द्र के उपचुनाव में प्रचार करने कभी भी प्रधानमन्त्री नहीं जाया करते थे। मगर इस परिपाठी को स्व. इंदिरा जी ने 80 के दशक में तोड़ दिया था जब उन्होंने अपने ही साथी रहे स्व. हेमवतीनंदन बहुगुणा के गढ़वाल से लड़े गये उपचुनाव में धुआंधार प्रचार किया था। इसके बाद राज्यों के मुख्यमन्त्रियों ने भी पुरानी परंपराएं तोड़नी शुरू कर दीं। मगर यह कहना भी पूरी तरह गलत होगा कि उपचुनाव परिणामों का कोई महत्व ही नहीं होता। ये उपचुनाव परिणाम कम से कम राज्य की शासन व्यवस्था पर टिप्पणी तो होते ही हैं। बिहार में दो स्थानों गोपालगंज व मोकामा में चुनाव हो रहे हैं। इन दोनों स्थानों पर ही भाजपा का मुकाबला लालू जी की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल से है। गोपालगंज तो लालू जी का गढ़ माना जाता है। मगर पिछला चुनाव यहां से भाजपा जीत गई थी। उस समय मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार की जनता दल (यू) पार्टी का भाजपा से गठबन्धन था। मगर अब हालात बदल गये हैं। नीतीश बाबू पलटी मार कर लालू जी की पार्टी के साथ चले गये हैं और मुख्यमन्त्री बने हुए हैं। अतः इस सीट का जो भी चुनाव परिणाम आयेगा वह भाजपा व राजद दोनों के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न होगा। वैसे यहां से लालू जी के साले साधू यादव की पत्नी श्रीमती इन्दिरा भी बसपा के टिकट पर ताल ठोक रही है। यह उपचुनाव भाजपा के विधायक सुभाष सिंह की मृत्यु हो जाने की वजह से हो रहा है। मगर असली मुकाबला राजद के मोहन गुप्ता व भाजपा की कुसुम देवी के बीच ही लग रहा है। वहीं मोकामा सीट से भाजपा का प्रत्याशी कभी नहीं जीत पाया। हाल- फिलहाल में भाजपा पहली बार इस सीट से लड़ रही है। यह सीट पहले राजद के पास ही थी मगर इसके बाहुबली माने जाने वाले विधायक अनन्त सिंह एक फौजदारी मुकदमे में सजा पाने की वजह से इस सीट से बेदखल हो गये जिसकी वजह से उपचुनाव हो रहा है। राजद ने यहां से उन्हीं की पत्नी श्रीमती नीलम देवी को खड़ा किया है जबकि भाजपा ने भी एक महिला सोनम देवी को खड़ा किया है। संपादकीय :इस्राइल में नेतन्याहू की वापसी'बूट पालिश ब्वाय' पुनः राष्ट्रपतिआ गया डिजिटल रुपयासभी बुजुर्ग प्रदूषण से बचेंआतंकवाद की सर्वमान्य परिभाषाभवन-निर्माण, पर्यावरण व मजदूरओडिशा की धमनगर सीट से भी 2019 का चुनाव भाजपा ही जीती थी। अतः यह सीट इसके लिए प्रतिष्ठा का सवाल है मगर इसके विधायक विष्णु चरण सेठी की मृत्यु की वजह से यहां उपचुनाव हो रहा है। राज्य में बीजू जनता दल की सरकार है अतः वह यह सीट जीतना चाहती है। यहां से भाजपा ने स्व. सेठी के पुत्र सूर्यवंशी सूरज को मैदान में उतारा है जबकि बीजू जनता दल ने महिला उम्मीदवार सुश्री अवन्ति दास को खड़ा किया है मगर इसी पार्टी का एक विद्रोही प्रत्याशी राजेन्द्र दास भी मैदान में डटा हुआ है। हरियाणा का आदमपुर उपचुनाव राज्य सरकार के लिए नाक का सवाल है क्योंकि इससे पहले दो उपचुनाव सत्तारूढ़ भाजपा व जजपा हार चुकी है। यह सीट स्व. भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई के कांग्रेस से दल- बदल कर भाजपा में जाने की वजह से खाली हुई है। यहां लोकदल ने कुरडाराम नम्बरदार को खड़ा किया है तो सत्तारूढ़ गठबन्धन ने कुलदीप बिश्नोई के बेटे भव्य बिश्नोई को मैदान में उतारा है। हरियाणा मे इसके साथ ही पंचायत चुनाव भी हो रहे हैं ।

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