हिंसा का दायरा
जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की हत्या एक बेहद दुखद घटना है। इसे एक तरह की चेतावनी के तौर पर देखा जा सकता है कि वैश्विक स्तर पर हिंसा करने वाली ताकतें किन-किन शक्लों में पल रही हैं और वे मौका मिलते ही किस तरह हमला बोल देती हैं।
Written by जनसत्ता: जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की हत्या एक बेहद दुखद घटना है। इसे एक तरह की चेतावनी के तौर पर देखा जा सकता है कि वैश्विक स्तर पर हिंसा करने वाली ताकतें किन-किन शक्लों में पल रही हैं और वे मौका मिलते ही किस तरह हमला बोल देती हैं।
शुरुआती खबरों के मुताबिक, शिंजो आबे पर गोली चलाने वाले शख्स ने बताया कि वह उनसे असंतुष्ट था और उनकी हत्या करना चाहता था। सवाल है कि क्या महज असंतुष्ट या नाखुश होना किसी पूर्व प्रधानमंत्री की या किसी की भी हत्या करने का इतना बड़ा कारण हो सकता है?
यह एक सतही वजह लगती है और विस्तृत पड़ताल के बाद ही असली कारण सामने आएंगे, लेकिन एक आशंका जरूर खड़ी होती है कि कहीं इस घटना का सिरा वैश्विक स्तर पर फैले आतंकवाद से न जुड़ा हो! शिंजो आबे पर तब गोली चलाई गई जब वे एक छोटी सार्वजनिक सभा को संबोधित कर रहे थे। जाहिर है, हत्यारा इसलिए अपने मकसद में कामयाब हो सका होगा कि वहां आबे की सुरक्षा व्यवस्था में या तो लापरवाही बरती गई थी या फिर पर्याप्त चौकसी नहीं थी।
दरअसल, कोरोना महामारी के दौरान पिछले करीब ढाई साल से वैश्विक स्तर पर जैसी उथल-पुथल चल रही है, बहुत सारे देश अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर संकट का सामना कर रहे हैं, उसमें कई आशंकाएं खड़ी हो रही हैं। लेकिन जहां तक शिंजो आबे का सवाल है तो उन्हें जापान की राजनीति में 'प्रिंस' के तौर पर जाना जाता था। उनका परिवार पहले से ही जापान की राजनीति में छाया हुआ था।
उनके पिता जहां जापान के पूर्व विदेश मंत्री थे, वहीं उनके दादा नोबुसुके किशी वहां के प्रधानमंत्री थे। खुद शिंजो आबे जापान के राजनीतिक आकाश में दो दशक तक छाए रहे। हालांकि इस बीच प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए उनकी लोकप्रियता में कई उतार-चढ़ाव आए, मगर उनके सामने कोई बड़ी चुनौती नहीं रही।
माना जाता है कि शिंजो आबे जापान की सैन्य ताकत को पुनर्स्थापित करना चाहते थे। एक खास पहलू यह भी था कि अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर उन्होंने जिस तरह की नीति अपनाई, उसे 'आबेनामिक्स' के तौर पर जाना जाता था। इसके बावजूद यह साफ है कि कुछ लोग या समूह उनके खिलाफ भी थे। मगर बात उनकी हत्या तक पहुंच जाएगी, इसकी शायद किसी ने भी कल्पना नहीं की होगी।
इस त्रासद घटना और हत्यारे की पहचान के बाद वैश्विक स्तर पर हैरानी इसलिए भी जताई जा रही है कि जापान को एक शांतिप्रिय देश माना जाता है। वहां के नागरिकों के बीच अलग-अलग वजहों से पैदा होने वाले तनाव या किसी भी तरह के उथल-पुथल के समय एक खास तरह का धीरज देखा जाता है। आधुनिक तकनीकी के एक सबसे बड़े केंद्र के तौर पर विकसित होने के बावजूद समाज के रूप में भी जापानी लोगों ने सहज जीवन की राह चुनी है। इसे वहां की सांस्कृतिक विशेषता की तरह भी देखा जाता है।
यह बेवजह नहीं है कि शिंजो आबे की हत्या की घटना के विश्लेषण में अपराध और आतंकवाद के कोण के अलावा यह बात भी चर्चा के केंद्र में आ रही है कि क्या जापान में भी शांति के ढांचे को नुकसान पहुंच रहा है! वैश्विक परिदृश्य में जिस तरह के टकराव पैदा हो रहे हैं और इसके समांतर आतंक का दायरा जिस तरह फैल रहा है, उसमें ऐसी किसी आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। शिंजो आबे के भारत के साथ चूंकि बेहद आत्मिक संबंध रहे, इसलिए उनके निधन पर यहां गहरा दुख महसूस किया जा रहा है तो यह स्वाभाविक ही है।