हाल ही में जेरूसलम स्थित हदसाह यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर आर हिब्रू यूनिवर्सिटी मेडिकल स्कूल के डॉक्टरों और वैज्ञानिकों को इस काम में बड़ी सफलता हासिल हुई है.
यह अध्ययन यूरोपियन जरनल ऑफ क्लिनिकल बॉयलॉजी एंड इंफेक्शन में प्रकाशित हुआ है.
इस साझे अध्ययन में मां के गर्भ में पल रहे बच्चे को जन्म से पहले कोविड के खतरे से बचाने की कोशिश में डॉक्टरों और वैज्ञानिकों को एक बड़ी सफलता हाथ लगी है. गर्भावस्था के दौरान 27वें हफ्ते से लेकर 31वें हफ्ते के बीच में मां को कोविड का टीका लगाने से बच्चे के शरीर में एंटीबॉडीज का स्तर बढ़ जाता है. डॉक्टरों ने अध्ययन में पाया कि प्रेग्नेंसी के 27वें हफ्ते से लेकर 31वें हफ्ते के बीच में टीका लगाने पर नवजात शिशु में एंटीबॉडीज का स्तर उन शिशुओं के मुकाबले कई गुना ज्यादा था, जिनकी मां को गर्भावस्था के आखिरी दिनों में कोविड का टीका लगाया गया. दुनिया भर में हुए कई अध्ययनों ने इस बात की ताकीद तो पहले ही कर दी थी कि गर्भावस्था के दौरान कोविड का टीका लगाने से मां और बच्चे दोनों के स्वज्ञस्थ्य को कोई खतरा नहीं है.
इस स्टडी में कुल 171 गर्भवती महिलाओं का अध्ययन किया गया. अध्ययन की प्रक्रिया में शामिल 171 महिलाओं को दो प्रमुख समूहों में बांटा गया. पहले समूह में वो महिलाएं थीं, जिन्हें गर्भावस्था के 27वें से 31वें हफ्ते के बीच कोविड का टीका लगाया गया था और दूसरे समूह में वो महिलाएं थीं, जिन्हें गर्भावस्था के 32वें से 36वें हफ्ते के बीच कोविड का टीका लगाया गया.
बच्चे के जन्म के बाद उनके एंटीबॉडीज का टेस्ट किया गया. टेस्ट में पता चला कि जिन मांओं को 27वें से 31वें हफ्ते के बीच कोविड का टीका लगा था, उन नवजात शिशुओं के शरीर में एंटीबॉडीज का स्तर उन बच्चों के मुकाबले 40 फीसदी ज्यादा था, जिनकी मां को कोविड का टीका 32वें से 36वें हफ्ते के बीच लगा. इतना ही नहीं, उन मांओं के शरीर में भी एंटीबॉडीज की संख्या दुगुनी पाई गई, जिन्हें शुरुआती दिनों में ही कोविड का टीका लगाया गया था.
डॉ. अमिहाई रॉटेनस्ट्रिच और प्रो. डेना वुल्फ के निर्देशन में हुआ यह अध्ययन दुनिया भर में डॉक्टरों और मेडिकल साइंस के लिए उम्मीद जगाने वाला हो सकता है.
पहले डॉक्टरों को ऐसा मानना था कि प्लेंसेटा के जरिए बहुत जटिल किस्म की एंटीबॉडीज मां से बच्चे के शरीर में प्रवेश नहीं कर पाती हैं. इसलिए पैदा हुए बच्चे हर प्रकार की बीमारी या वायरस के प्रति बिल्कुल इम्यून हों, ऐसा नहीं होता. लेकिन कोविड वैक्सीन और उससे बनने वाली एंटी बॉडीज के साथ डॉक्टरों ने पाया कि प्लेसेंटा के जरिए भ्रूण में वो सारी एंटीबॉडीज प्रवेश कर गईं, जो मां के शरीर में बन रही थीं. अगर मां के शरीर में एंटीबॉडी कम थी, तो भ्रूण तक भी वो कम पहुंची और जन्म के बाद बच्चे के शरीर में कम एंटीबॉडीज पाई गईं.
डॉ. रॉटेनस्ट्रिच कहते हैं कि इस अध्ययन से एक बात तो साफ है कि यदि गर्भावस्था के दौरान समय पर ही मां को कोविड टीका लगा दिया जाए तो बच्चे के कोविड से बचाव की संभावना 40 फीसदी बढ़ जाती है क्योंकि उसके शरीर में 40 फीसदी एंटीबॉडीज ज्यादा हैं. कोविड वायरस के खिलाफ शरीर में मौजूद एंटीबॉडीज अन्य बीमारियों से भी बचाव करने में कारगर होती हैं. ऐसे बच्चे वायरस के बाहरी हमलों के प्रति ज्यादा प्रतिरोधक क्षमता वाले होंगे.
डॉ. रॉटेनस्ट्रिच ये भी कहते हैं कि वयस्कों के मुकाबले बच्चों का कोविड से बचाव ज्यादा जरूरी इसलिए भी है कि यदि किसी बच्चे के शरीर पर कोविड वायरस का हमला होता है तो उससे रिकवर हो जाने के बाद भी शरीर को होने वाला नुकसान और अन्य बीमारियों की संभावना बच्चों में वयस्कों के मुकाबले कई गुना ज्यादा होगी. उनके शरीर और दिमाग के विकास पर इस वायरस का नकारात्मक असर पड़ सकता है. इसलिए मेडिकल साइंस इस सवाल को लेकर काफी गंभीर है कि नवजात शिशुओं को इस वायरस से पूरी तरह इम्यून कैसे किया जाए.