सनातन हैं ब्रह्म मूल के सिद्धांत

आपकी ही की तरह यह सवाल मेरे मन में भी था कि आखिर यह धर्मसभा जुटी क्यों

Update: 2020-12-14 14:12 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आपकी ही तरह यह सवाल मेरे मन में भी था कि आखिर यह धर्मसभा जुटी क्यों थी। धर्म पर हो रही एक चर्चा के दौरान इसे परिभाषित करने का प्रयास किया जा रहा था। इस सभा में सभी धर्म खासतौर पर अपने इतिहास और प्रभाव को लेकर दावेदारी पेश कर रहे थे। बस केवल एक धर्म चुप था और अपना पक्ष छोड़कर सभी के दावों में तर्क ढूंढ रहा था। उसके मुताबिक वह धर्म होने का फर्ज निभा रहा था। कहते हैं धर्म यानी धारण करने वाला, पर हिंदू धर्म मतलब सबको धारण करने वाला। जी, वह हिंदू धर्म ही था।

धर्म परिवर्तन निषेध कानून
आपकी ही तरह यह सवाल मेरे मन में भी था कि आखिर यह धर्मसभा जुटी क्यों थी। इसी बीच प्रसंगों के उहादरण से समझ में आया कि उत्तर प्रदेश सरकार ने जब से शादी की आड़ में जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने संबंधी कानून बनाने का एलान किया, तभी से इस पर बहस छिड़ी है, जबकि भारत में धर्म परिवर्तन निषेध कानूनों का भी अपना एक इतिहास है। इस संबंध में उल्लेखनीय है कि धर्म परिवर्तन के खिलाफ भारत के नौ राज्यों अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में कुछ अंतर के साथ कानून बने। इन राज्यों में पांच से पचास हजार रुपये के जुर्माने से लेकर एक से तीन साल तक की कैद तक के प्रावधान हैं।
धर्म को बचाए रखना भी है 'एक धर्म'

अब थोड़ा पीछे चलते हैं जब वास्कोडिगामा 1498 में कालीकट पहुंचे। तब ईसाई मिशनरियों के जरिये हो रहे धर्म परिवर्तन के खिलाफ मुंबई के पारसियों ने सबसे पहले याचिका दायर की थी, लेकिन कोई परिणाम नहीं मिला। इसके बाद 1930-40 के दौरान कई रियासतों में धर्म परिवर्तन के खिलाफ कानून जैसे रायगढ़ स्टेट कन्वर्जन एक्ट (1936), सरगुजा राज्य धर्म त्याग एक्ट (1942), उदयपुर राज्य धर्म परिवर्तन निषेध कानून (1946) बनाए गए थे। वहीं 1954 में मिशनरियों को धर्म परिवर्तन का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य करने को लेकर एक बिल पेश किया गया, लेकिन यह पास नहीं हुआ। वर्ष 1960 में हिंदू धर्म की पिछड़ी जातियों के इस्लाम, ईसाईयत, यहूदी और पारसी धर्मो में हो रहे परिवर्तन को रोकने के लिए एक बिल पेश हुआ था। 1979 में फिर धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी बिल संसद में पेश हुआ था जिसका काफी विरोध हुआ। 2015 में राजग सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर धर्म परिवर्तन निषेध कानून बनाने की कोशिश की थी, जो असफल रहा। इसका अर्थ यह है कि धर्म को बचाए रखना एक धर्म है, यह इतिहास भी जानता है।
न तो ईश्‍वर का आदेश न ही है कानून

वर्तमान का एक सवाल धर्म पर यह बहस कुछ तथ्यों को प्रमाण के साथ पेश करने की जिद करती है, इसलिए जानना चाहिए कि धर्म किसे कहा जा सकता है। धर्म फिलहाल कोई ईश्वर का आदेश तो बिल्कुल नहीं है और किसी व्यक्ति के द्वारा लिखा गया कोई कानून भी नहीं। अनुभवों के आधार पर कहा जा सकता है कि धर्म सत्य को पाने का एक ऐसा मार्ग है जिसमें से कई तरह के मार्ग निकलकर एक ही जगह पर जाकर पुन: मिल जाते हैं। सत्य यानी जन्म, मृत्यु और जीवन को जानना। इसे किसी भी तरीके से जानने के लिए मनुष्य स्वतंत्र है। सहिष्णुता इसका बुनियादी लक्षण है।
सनातन धर्म का सतत सफर

अब बात करते हैं हिंदू यानी सनातन धर्म की। नाम से मायने स्पष्ट हैं। कई सभ्यताएं जैसे बेबीलोन, ग्रीस, पर्शिया, माया खत्म हो गईं, लेकिन सनातन का सफर सतत है। इस धर्म ने संसार और संन्यास का मार्ग विकसित किया है। सहिष्णुता और कुछ उदाहरणों पर बात करते हैं। उससे भी पहले स्वामी विवेकानंद द्वारा सितंबर 1893 में शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन में दिए गए उनके भाषण को याद करते हैं। स्वामी विवेकानंद ने कहा था, मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं जो न केवल सहनशीलता में विश्वास करता है, बल्कि विश्व के सभी धर्मो को सत्य के रूप में स्वीकारता भी है। अब बात उदाहरणों पर। पहला, मोहम्मद गोरी द्वारा युद्ध के किसी नियम का पालन न करने पर भी पृथ्वीराज चौहान ने उसे जीवित छोड़ दिया था। दूसरा, कई सभाओं में बुद्ध के प्रवचनों को संकलित करके नियम बनाए गए थे जो अशोक की प्रजा को मानने होते थे, लेकिन बाद में आदि शंकराचार्य ने बौद्धों को शास्त्रार्थ में चुनौती दी।
तीसरे उदाहरण के लिए वर्तमान संदर्भो में आते हैं और इसी साल अमेरिका की एक कंपनी प्यू रिसर्च द्वारा जून में जारी एक सर्वे रिपोर्ट पर गौर फरमाते हैं। प्यू रिसर्च ने भारत में सितंबर-अक्टूबर 2018 के बीच 3,505 भारतीयों पर यह सर्वे किया। सर्वे में सामने आया कि 96 फीसद हिंदुओं और 98 फीसद मुस्लिमों ने अपने अपने समुदायों के लोगों को सकारात्मक रूप में देखा। वहीं 71 फीसद हिंदुओं के मन में मुस्लिमों के लिए अनुकूल दृष्टिकोण रहा। सहिष्णुता के अलावा यह धर्म कई और कारणों से भी स्वीकार्य है। यही धर्म है, जहां आत्मा भी है और परमात्मा भी, भगवान स्त्री भी है और पुरुष भी, व्यक्ति भी है और प्रकृति भी, एक भी हैं और अनेक भी। सबसे बड़ी बात यहां आस्तिक भी हैं और नास्तिक भी। कोई दर्शन या वेद को जाने बिना भी हिंदू हो सकता है। असल अर्थो में कहा जाए तो यह स्थानीय धर्म है। इसमें इष्टदेवता की अवधारणा या पसंदीदा देवता स्थान विशेष की देन है।
घर में स्थापित किए गए मंदिर में भी कई तरह की मूर्तियां होती हैं। यानी यहां एक परिवार का भी एक ईश नहीं, बल्कि कई ईश्वर के उपासक हो सकते हैं। बीता हुआ प्रत्येक क्षण इसकी उपयोगिता सिद्ध करता है, इतिहास का हरेक उदाहरण इसकी पैरवी करता है। धर्म वास्तव में सत्य तक पहुंचने का एक ऐसा रास्ता है जिसमें से कई तरह के रास्ते निकलकर फिर से एक ही जगह आकर मिल जाते हैं।


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