हर साल, वही हाल
ये बात उन पत्रकारों पर लागू होती है, जो अंदरखाने चल रही गड़बड़ियों या घोटालों को सामने लाते हैं
ये बात उन पत्रकारों पर लागू होती है, जो अंदरखाने चल रही गड़बड़ियों या घोटालों को सामने लाते हैं, या सत्ता सवाल से पूछते हैँ। 2021 अपने कर्तव्यों का पालन करने वाले पत्रकारों के लिए घातक साबित हुआ। ये भविष्यवाणी अभी से की जा सकती है कि 2022 में भी कहानी उससे अलग नहीं रहेगी।
पत्रकारों के लिए कोई अच्छा साल नहीं आता। ये बात उन पत्रकारों पर लागू होती है, जो अंदरखाने चल रही गड़बड़ियों या घोटालों को सामने लाते हैं, या सत्ता सवाल से पूछते हैँ। 2021 अपने कर्तव्यों का पालन करने वाले पत्रकारों के लिए घातक साबित हुआ। ये भविष्यवाणी अभी से की जा सकती है कि 2022 में भी कहानी उससे अलग नहीं रहेगी। जिस समय लोकतंत्र पराभव की ओर है और तानाशाही व्यवस्थाएं मजबूत हो रही हैं, अपना काम ईमानदारी करने से करने वाले पत्रकार किसी बेहतर नतीजे की अपेक्षा नहीं कर सकते। फिलहाल खबर यह है कि 2021 में 45 पत्रकार और मीडियाकर्मी मारे गए। सबसे ज्यादा मौतें अफगानिस्तान में हुईं। इस सूची में पाकिस्तान और भारत का नाम भी शामिल है। दुनिया के सबसे बड़े पत्रकारों के संगठन इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स (आईएफजे) ने यह जानकारी दी है। वैसे 2021 इस लिहाज से बेहतर रहा कि बीते 30 वर्षों में सबसे कम मृत्यु दर इस वर्ष दर्ज हुई। 2020 में मारे गए पत्रकारों संख्या 65 थी। बहरहाल, आईएफजे ने कहा- 2021 में पुष्टि हुई कि मीडिया कर्मचारियों को अक्सर अपने सुमदायों, शहरों और देशों में भ्रष्टाचार, अपराध को उजागर करने के लिए मार दिया जाता है।
आईएफजे ने कहा- "हिंसा में हमने जो 45 साथी खो दिए हैं, वे हमें दुनिया भर में जनहित की रक्षा के लिए पत्रकारों के बलिदान की याद दिलाते हैं। तो ऐसे पत्रकारों को कैसे श्रद्धांजलि दी जाए। जाहिर है ऐसा करने का सबसे अच्छा तरीका यही होगा कि न्याय के लिए अथक प्रयास किया जाए। जरूरत इस बात की है कि जिन मकसदों के लिए उन पत्रकारों ने अपनी जान दी, उसे पूरा करने की कोशिश की जाए। पिछले वर्ष जिन पत्रकारों की जान गई, उनमें से नौ अफगानिस्तान में, आठ मेक्सिको में, चार भारत में और तीन पाकिस्तान में मारे गए। इससे पहले रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) ने कहा था कि साल 2021 में 46 पत्रकार मारे गए और दुनियाभर में इस वक्त 488 मीडियाकर्मी जेलों में बंद हैं। अंतरराष्ट्रीय संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स हर साल पत्रकारों को लेकर अपनी रिपोर्ट जारी करती है। प्रेस की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले इस एनजीओ ने कहा था कि 1995 में उसने अपना वार्षिक आंकड़ा जारी करने की शुरुआत की थी। तब से ऐसी घटनाएं बेरोक जारी हैँ।
नया इण्डिया