Russia Ukraine War: युद्ध, खाद्य प्रणालियों में बदलाव और भूख का संकट

कोरोना के कारण लगाए गए लॉकडाउन से उबरने और वैश्विक अर्थव्यवस्था के अधिकांश हिस्से को बंद करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं

Update: 2022-03-28 12:41 GMT
पिछली 14 मार्च को संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने यूक्रेन में युद्ध संबंधी संकट के मद्देनजर "भूख के तूफान और वैश्विक खाद्य प्रणाली में मंदी" की चेतावनी दी. गुटेरेस ने कहा, "भोजन, ईंधन और उर्वरक की कीमतें आसमान छू रही हैं. सप्लाई चेन को बाधित किया जा रहा है और आयातित माल के परिवहन की लागत रिकॉर्ड स्तर पर है." उन्होंने कहा कि यह स्थिति सबसे गरीब को सबसे बुरी तरह मार रही है और दुनिया भर में राजनीतिक अस्थिरता और अशांति के बीज बो रही है.
जब खास तौर से गरीब देश पहले से ही कोरोना के कारण लगाए गए लॉकडाउन से उबरने और वैश्विक अर्थव्यवस्था के अधिकांश हिस्से को बंद करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, तभी युद्ध जैसी स्थिति के चलते महंगाई और ब्याज दरें बढ़ रही हैं और कर्ज का बोझ भी बढ़ रहा है.
बता दें कि यूक्रेन सूरजमुखी तेल का दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक है, मकई का चौथा सबसे बड़ा निर्यातक और गेहूं का पांचवां सबसे बड़ा निर्यातक है. रूस और यूक्रेन मिलकर दुनिया के आधे से अधिक सूरजमुखी तेल और दुनिया के 30 प्रतिशत तक गेहूं का उत्पादन करते हैं. करीब 45 अफ्रीकी और कम विकसित देश यूक्रेन या रूस से अपने गेहूं का न्यूनतम एक तिहाई आयात करते हैं, जिनमें से 18 देश 50 प्रतिशत तक आयात करते हैं. वहीं, प्राकृतिक गैस का एक प्रमुख उत्पादक और निर्यातक होने के अलावा रूस दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक और दुनिया का सबसे बड़ा कच्चे तेल का निर्यातक है.
दुनिया भर के किसानों के लिए मुश्किल समय
मौजूदा संकट से पहले ही ईंधन और उर्वरक की कीमतें बढ़ती जा रही थीं. कोरोना महामारी और यूक्रेन में युद्ध से पहले यह स्पष्ट था कि लंबी वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला और आयातित व जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता ने प्रचलित खाद्य प्रणाली को बुरी तरह से प्रभावित किया है. कोरोना महामारी के कारण घोषित लॉकडाउन ने सिस्टम की कमजोरियों को उजागर करते हुए परिवहन और उत्पादन गतिविधियों को बाधित कर दिया था. अब आपूर्ति में व्यवधान, नए प्रतिबंध और रूस द्वारा अकार्बनिक उर्वरकों के निर्यात को प्रतिबंधित करने के कारण वैश्विक खाद्य व्यवस्था फिर से उथल-पुथल का सामना कर रही है, जिसके कारण खाद्य कीमतों में वृद्धि हो सकती है.
बता दें कि तेल व गैस का उपयोग कीटनाशकों के निर्माण के दौरान बड़े पैमाने पर कच्चे माल और ऊर्जा के रूप में किया जाता है. इसके अलावा, यह खाद्य उत्पादन के सभी चरणों में सस्ती और आसानी से उपलब्ध ऊर्जा के रूप में उपयोग में लाई जाती है. इसी तरह रोपण, सिंचाई, भोजन और कटाई से लेकर प्रसंस्करण, वितरण और पैकेजिंग, कृषि मशीनरी, भंडारण, जहाजों, ट्रकों और सड़कों सहित इस उद्योग को सुविधाजनक बनाने के लिए जीवाश्म ईंधन आवश्यक है.
रूस-यूक्रेन संघर्ष ने वैश्विक उर्वरक आपूर्ति श्रृंखलाओं को भी प्रभावित किया है, दोनों देश अपने उर्वरक निर्यात को रोकने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. रूसी उर्वरकों के प्रमुख बाजारों में ब्राजील, यूरोपीय संघ और अमेरिका शामिल हैं. वर्ष 2021 में, रूस यूरिया, अमोनिया और अमोनियम नाइट्रेट का सबसे बड़ा निर्यातक और तीसरा सबसे बड़ा पोटाश निर्यातक था. लेकिन, अब किसानों के लिए उर्वरक की कीमतें बढ़ गई हैं. लिहाजा, कहा जा रहा है कि खाद्य लागत में वृद्धि हो सकती है.
276 मिलियन लोग कर रहे थे भुखमरी का सामना
वहीं, विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) के प्रमुख डेविड बेस्ली बताते हैं कि दुनिया भर में भुखमरी का सामना करने वाले लोगों की संख्या रूस के आक्रमण से चार वर्ष पहले ही 80 मिलियन से बढ़कर 276 मिलियन हो गई थी. जलवायु परिवर्तन, हिंसा आधारित संघर्ष और कोविड इसके पीछे प्रमुख कारण रहे हैं. युद्ध शुरू होने के बाद से अमेरिकी कृषि विभाग द्वारा प्रकाशित खाद्य फसलों का पहला आकलन किया गया है, जिसके मुताबिक रूस और यूक्रेन से गेहूं का निर्यात इस साल न्यूनतम 7 मिलियन मीट्रिक टन गिर जाएगा.
यूक्रेनी गेहूं पर निर्भर देशों की लंबी सूची में कई गरीब देश शामिल हैं, जो पहले से ही खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं. जैसे कि लेबनान को अपना अधिकांश गेहूं यूक्रेन से मिलता है. इसी तरह, यमन आमतौर पर अपने गेहूं की खपत का 22 प्रतिशत यूक्रेन से आयात करता है, जबकि लीबिया 43 प्रतिशत आयात करता है. यही नहीं, यूक्रेन बांग्लादेश को भी 21 प्रतिशत गेहूं की आपूर्ति करता है. वहीं, यूक्रेन इंडोनेशिया और मलेशिया के लिए 28 प्रतिशत गेहूं की आपूर्ति करता है. यूक्रेन का सबसे बड़ा ग्राहक मिस्र है, जो दुनिया का सबसे बड़ा गेहूं आयातक है, जिसने 2020 में 3 मिलियन मीट्रिक टन से अधिक का आयात किया था.
वहीं, रूस के अन्य बड़े ग्राहकों में मिस्र के अलावा तुर्की शामिल है, जहां महीनों से मुद्रास्फीति बढ़ रही है. उधर दूसरा ग्राहक कजाकिस्तान हाल ही में अपनी सत्तारूढ़ तानाशाही के खिलाफ विद्रोह का स्थल बना हुआ है. दरअसल, यह निर्भरता स्पष्ट करती है कि संयुक्त राष्ट्र के 35 सदस्यों ने रूसी आक्रमण की निंदा नहीं करने के लिए मतदान क्यों किया था.
रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, रूसी उर्वरक व्यवसायी आंद्रेई मेल्निचेंको ने कहा है कि जब तक यूक्रेन में युद्ध बंद नहीं हो जाता, तब तक वैश्विक खाद्य संकट मंडराता रहेगा, क्योंकि उर्वरक की कीमतें इतनी तेजी से बढ़ रही हैं कि कई किसान अब मिट्टी के पोषक तत्वों के लिए उर्वरक पर खर्च नहीं कर सकते हैं. यही वजह है कि मिखाइल फ्रिडमैन, प्योत्र एवेन और ओलेग डेरिपस्का सहित रूस के कई सबसे अमीर व्यापारियों ने सार्वजनिक रूप से शांति का आह्वान किया है.
मेल्निचेंको के अनुसार युद्ध ने पहले ही उर्वरकों की कीमतों में बढ़ोतरी कर दी है, जो अब किसानों के लिए सस्ती नहीं हो सकेगी. अब यह यूरोप में और भी अधिक खाद्य मुद्रास्फीति और दुनिया के सबसे गरीब देशों में भोजन की कमी की ओर ले जाएगा.
उप-सहारा अफ्रीका में क्या स्थिति होगी
इस महीने की शुरुआत में हंगरी के कृषि मंत्री ने घोषणा की कि हंगरी अनाज निर्यात पर प्रतिबंध लगा रहा है. एक प्रमुख अनाज निर्यातक अर्जेंटीना स्थानीय आपूर्ति की गारंटी के लिए एक तंत्र बना रहा है. बुल्गारिया और तुर्की भी इसी तरह की घोषणा कर चुके हैं. इधर, रूसी सरकार ने अगस्त तक यूरेशियन आर्थिक संघ जिसमें बेलारूस, आर्मेनिया, कजाकिस्तान और किर्गिस्तान आदि देश हैं, अनाज और चीनी के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा कर दी है. इससे कीमतों में और अधिक वृद्धि का खतरा मंडरा रहा है. विश्व बैंक का अनुमान है कि अगले साल तक उप-सहारा अफ्रीका में औसत व्यक्ति अपनी आय का लगभग 35 प्रतिशत भोजन पर खर्च करेगा, जो 2017 में सिर्फ 20 प्रतिशत से अधिक था.
ऐसी स्थिति में विशेषज्ञ यह मान रहे हैं कि एक समझदार दुनिया खाद्य संकट से निपटने के लिए योजना और अंतरराष्ट्रीय समन्वय पर निर्भर करेगी, न कि बाजार की ताकतों पर. जैसा कि दुनिया ने पिछले दो वर्षों में कोरोना महामारी के साथ देखा है, चाहे वह टीके हों, परीक्षण किट हो, या मास्क हों, बाजार पर निर्भरता दरअसल जमाखोरी और कमी की ओर ले जाती है, विशेष रूप से सबसे गरीब देश के लोगों में.
पृथ्वी पर अधिकांश गरीब देश के गरीब लोगों को अभी भी कोविड रोधी टीके नहीं लगे हैं. जाहिर है कि आने वाले खाद्य संकट के सबसे बड़े शिकार भी इन्‍हीं गरीब देशों के गरीब लोग ही होंगे. इस हालत में बस यह उम्मीद की जा सकती है कि दुनिया उनके बारे में भी गंभीरतापूर्वक सोचे.


(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
 
शिरीष खरे लेखक व पत्रकार
2002 में जनसंचार में स्नातक की डिग्री लेने के बाद पिछले अठारह वर्षों से ग्रामीण पत्रकारिता में सक्रिय. भारतीय प्रेस परिषद सहित पत्रकारिता से सबंधित अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित. देश के सात राज्यों से एक हजार से ज्यादा स्टोरीज और सफरनामे. खोजी पत्रकारिता पर 'तहकीकात' और प्राथमिक शिक्षा पर 'उम्मीद की पाठशाला' पुस्तकें प्रकाशित.
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