रुपाणी का इस्तीफा, नए नेतृत्व की राह आसान करने की रणनीति

गुजरात में भारतीय जनता पार्टी को मजबूती नरेंद्र मोदी के चेहरे से मिली

Update: 2021-09-12 08:14 GMT

दिनेश गुप्ता। गुजरात में भारतीय जनता पार्टी को मजबूती नरेंद्र मोदी के चेहरे से मिली. श्री नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद आनंदी बेन पटेल मुख्यमंत्री बनीं थीं. लेकिन,विधानसभा का पिछला चुनाव विजय रूपाणी के नेतृत्व में लड़ा गया था. मुख्यमंत्री बनने के बाद भी रूपाणी का चेहरा पूरा एक दशक भी पार्टी के लिए लाभ का सौदा नहीं रहा. यही वजह है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी एक नए चेहरे के साथ जाना चाहती है. ऐसा चेहरा जिसकी सर्व स्वीकार्यता भी हो, और संतुलन बनाने की क्षमता में भी माहिर हो. गुजरात,राजनीतिक तौर पर बेहद संवेदनशील और महत्वपूर्ण है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह यहां अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में कांगे्रस का उभरने का मौका नहीं देना चाहते. वैसे भी पार्टी राज्यों में ऐसे चेहरे स्थापित करने की रणनीति पर काम कर रही है,जो अगले अगले दशक तक प्रासंगिक रह सकें.
पिछले चुनाव में चेहरा थे रूपाणी
विजय रूपाणी को भी विधानसभा चुनाव से पहले ही 2016 में आनंदी बेन पटेल के स्थान पर मुख्यमंत्री बनाया गया था. वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में कांगे्रस ने भाजपा को कड़ी टक्कर दी थी. पार्टी को विधानसभा की कुल 182 सीटों में से 99 सीटें मिली थीं. गुजरात के चुनाव परिणामों ने कांगे्रस को मनोवैज्ञानिक तौर पर मजबूती भी प्रदान की थी. इसका असर वर्ष 2018 में मध्यप्रदेश,राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनाव परिणामों में देखने को मिला था. मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की पंद्रह साल पुरानी सरकार पार्टी के हाथ से निकल गई थी. पार्टी ने इन चुनाव परिणामों को सबक के तौर पर लिया. उत्तराखंड का नेतृत्व परिवर्तन इस बात का साफ संकेत दे रहा था कि पार्टी चेहरे की लोकप्रियता को सबसे ऊपर रख रही है. चुनाव में एंटी इनकंबेंसी का लाभ वह कांगे्रस के खाते में नहीं जाने देना चाहती. कर्नाटक में भी नेतृत्व परिवर्तन संभवत: इसी रणनीति का नतीजा था. मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद विजय रूपाणी ने कहा कि पार्टी में नेतृत्व बदलना स्वाभाविक प्रक्रिया का हिस्सा है. उन्होंने कहा कि अब नई लीडरशिप में गुजरात का विकास होना चाहिए.
नेतृत्व परिवर्तन की मजबूत वजह है
प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के गृह राज्य में यदि मुख्यमंत्री बदला जाता है तो स्वाभाविक तौर पर बड़ा कारण सामने होता है. गुजरात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लोकप्रिय कोई दूसरा चेहरा नहीं है. गुजरात के लोगों भाजपा पर भरोसा भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के कारण है. लेकिन,पिछले कुछ दिनों से पार्टी के भीतर का घटनाक्रम सामान्य नहीं था. पार्टी की प्रदेश इकाई के अध्यक्ष सीआर पाटिल और विजय रूपाणी के बीच समन्वय की कमी महसूस की जा रही थी. गुजरात के जातीय समीकरण में भी रूपाणी फिट नहीं बैठते थे. गुजरात में पाटीदारों की मजबूत पकड़ है. पिछले विधानसभा चुनाव में यह सामने भी आया. गुजरात में विधानसभा चुनाव के पहले उत्तरप्रदेश सहित पांच अन्य राज्यों में चुनाव हैं.
राज्यों में नए नेतृत्व को स्थापित करने की कवायद
भारतीय जनता पार्टी का केन्द्रीय नेतृत्व पिछले कई महीनों से इन राज्यों की रणनीति में व्यस्त था. केन्द्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार के साथ ही गुजरात प्राथमिकता पर आया. जुलाई में मंगुभाई छगन भाई पटेल को मध्यप्रदेश का राज्यपाल बनाया गया. राज्यसभा सदस्य मनसुख मांडविया को केन्द्र में मंत्री बनाया गया. स्वास्थ्य जैसे अहम विभाग का दायित्व दिया गया. कोरोना की दूसरी लहर के दौरान विजय रूपाणी सरकार की सबसे ज्यादा आलोचना स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर ही हुई . रूपाणी के इस्तीफे के बाद जो नाम मुख्यमंत्री पद की दौड़ में हैं,उनमें मनसुख मांडविया का नाम भी है. वे पाटीदार समाज से हैं. जातीय समीकरण उनके पक्ष में हैं. दूसरे मजबूत दावेदार के तौर पर उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल का नाम है. वे पद के कारण स्वाभाविक दावेदार हैं. तीसरे स्वभाविक दावेदार पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष सीआर पाटील हैं. एक अन्य दावेदार पुरुषोत्तम रूपाला भी हैं. गोवर्धन झफडिया का नाम भी प्रमुखता से लिया जा रहा है. रूपाला भी केन्द्र में मंत्री हैं. गुजरात में जितने भी नेताओं का नाम मुख्यमंत्री पद की दौड़ में हैं वे सभी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के करीबी माने जाते हैं. नितिन पटेल विधानसभा चुनाव के बाद से ही अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं.
उत्तराखंड में पार्टी ने जिस तरह युवा नेतृत्व के तौर पर पुष्कर सिंह धामी को मौका दिया गया,उसी तरह गुजरात में भी प्रयोग किया जा सकता है. पार्टी नेतृत्व की कोशिश ऐसे चेहरे को आगे रखने की है जो समन्वय और संतुलन का हुनर रखता हो. जाति के समीकरण शत-प्रतिशत पक्ष में न भी हो तो खिलाफ न हो? पार्टी राज्यों में परंपरागत चेहरों के स्थान पर नए चेहरों को महत्व दे रही है.


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