महंगाई का बढ़ता बोझ
जेब पर मार से त्रस्त आम जनता को आंकड़ों ने एक बार फिर महंगाई की याद दिला दी है। मई महीने के आंकड़े बता रहे हैं कि महंगाई बेलगाम है। नीति-नियंताओं ने कुछ उपाय तो किए हैं
सरोज कुमार; जेब पर मार से त्रस्त आम जनता को आंकड़ों ने एक बार फिर महंगाई की याद दिला दी है। मई महीने के आंकड़े बता रहे हैं कि महंगाई बेलगाम है। नीति-नियंताओं ने कुछ उपाय तो किए हैं, लेकिन ठोस नतीजा दिख नहीं दिख रहा। महंगाई की इस तपिश में बेशक अभी लोग झुलस रहे हैं, लेकिन उसकी लपट देर सबेर उन तक भी पहुंचेगी, जो फिलहाल सुरक्षित महसूस कर रहे हैं।
मई 2022 में थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआइ) पर आधारित महंगाई दर बढ़ कर तीस साल के सर्वोच्च स्तर 15.88 फीसद पर पहुंच गई। अप्रैल में यह 15.08 फीसद थी। पिछले चौदह महीनों से थोक महंगाई दर दो अंकों में बनी हुई है। आने वाले महीनों में भी इसके ऊंचे बने रहने की आशंका है। थोक महंगाई दर बढ़ने से विनिर्माण लागत बढ़ जाती है, जिसकी कीमत अंत में आम उपभोक्ताओं को ही चुकानी पड़ती है। थोक महंगाई दर की इस ऊंचाई के पीछे रूस-यूक्रेन युद्ध को बड़ा कारण बताया जा रहा है।
युद्ध की वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल, धातु और खाद्य पदार्थों की ऊंची कीमतें आसमान छू रही हैं। लेकिन जिस एक प्रमुख कारण का जिक्र नहीं किया जा रहा, वह है रुपए की कमजोरी। यदि रुपया मजबूत होता तो अंतरराष्ट्रीय बाजार की महंगाई से मुकाबला करना कहीं आसान हो जाता। रुपए की कमजोरी के बाहरी कारण तो हैं ही, इसके घरेलू कारण भी हैं। लेकिन सवाल इसके निवारण का है।