पीछे हटती चीनी फौजें
चीन की सेनाओं ने लद्दाख के पेंगोगोंग झील के दोनों तरफ के इलाकों से जिस तरह पीछे हटने की प्रक्रिया जारी की है
चीन की सेनाओं ने लद्दाख के पेंगोगोंग झील के दोनों तरफ के इलाकों से जिस तरह पीछे हटने की प्रक्रिया जारी की है उससे भारत की सामरिक व कूटनीतिक नीतियों की सफलता का पता चलता है। पिछले वर्ष मई महीने के अंत में चीनी फौजों ने जिस तरह लद्दाख में खिंची नियन्त्रण रेखा को बदलने की जो इकतरफा कार्रवाई शुरू की थी उसी के तहत उसकी फौजें इस इलाके के भीतर दौलत बेग ओल्डी तक जाने वाली सड़क में अवरोध पैदा करना चाहती थीं। दौलत बेग ओल्डी ऐसा छोटा सैनिक हवाईअड्डा है जिससे भारतीय फौजें पाक अधिकृत कश्मीर के इलाके की निगरानी को अपनी जद में रखती हैं। चीन की इस कार्रवाई का भारत ने तभी विरोध किया था और जून 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प भी हुई थी जिसमें भारत के जांबाज सैनिकों ने शहादत भी पाई थी। उसके बाद से भारत ने चीनी अतिक्रमण पर कड़ा रुख अपनाना शुरू किया और सैनिक कमांडरों के बीच वार्तालाप के दौर चला कर चीन को उसकी हदों में सीमित करना चाहा। मगर अपनी हेकड़ी में चीन लगातार ऐसी कार्रवाइयां करता रहा जिससे भारतीय इलाकों पर वह अपना दावा कर सके। इस क्रम में उसने भारतीय सीमा के भीतर आकर अस्थायी सैनिक निर्माण भी किये और सैनिक जमावड़ा करना शुरू भी किया परन्तु भारत की सेनाओं ने इसका माकूल जवाब देते हुए विगत वर्ष के नवम्बर माह में ऐसे ऊंचे स्थानों पर अपने ठिकाने बनाये जहां से चीन की गतिविधियों पर नजर रखी जा सके और चीनी सेना उसकी जद में आ सके। इसके बाद से चीन कुछ ढीला होना शुरू हुआ और उसने सैनिक कमांडरों व कूटनीतिक वार्ताओं के दौर में यथास्थिति पर लौटने की बात करनी शुरू की। भारत की यह रणनीति सफल रही और चीन को स्वीकार करना पड़ा कि जिन क्षेत्रों में उसकी सेनाएं मान्य नियन्त्रण रेखा से इधर-उधर गई हैं वे खाली किये जायेंगे। इस क्रम में पेगोंग झील के उत्तर व दक्षिण इलाकों को पूर्ववत स्थिति में लाने पर समझौता हुआ और चीनी फौजों ने इन इलाकों से पीछे लौटना शुरू कर दिया।