रीटेलर्स के पास ग्राहकों की मदद करने के लिए योग्य सेल्समेन होने चाहिए, जो सही उत्पाद चुनने में उनकी मदद कर सकें

इंदौर में अर्बन नीड्स नाम की एक दुकान है

Update: 2022-04-17 08:08 GMT

एन. रघुरामन का कॉलम:

इंदौर में अर्बन नीड्स नाम की एक दुकान है। दो सप्ताह पहले एक स्कूल के इवेंट में शामिल होने से पहले मैं वहां डिओडोरैंट खरीदने गया। वहां ऐसे बहुत ब्रांड्स थे, जिनके बारे में मुझे पता नहीं था। मैंने एक टेस्टर के बारे में पूछा तो वहां मौजूद एक युवा शॉपकीपर ने हंसते हुए कहा, आप किस दुनिया में हैं? आजकल कोई कम्पनी सैम्पल्स नहीं देती है। मैं चकित हुआ क्योंकि बड़े ब्रांड्स कभी ऐसा नहीं करते हैं।
जब मैं उन अज्ञात ब्रांड्स में से किसी एक को चुनने का प्रयास कर रहा था तो सेल्समैन मेरे साथ-साथ चलने लगा, मदद के लिए नहीं बल्कि नजर रखने के लिए। मैंने उससे कहा कि अगर मुझे किसी डिओडोरैंट की गंध पसंद नहीं आई तो? उसने जवाब दिया, ये आपकी समस्या है, मैं इसमें कोई मदद नहीं कर सकता। मुझे उसका व्यवहार अच्छा नहीं लगा, फिर भी मैंने उसे 250 रु. दिए और एक प्रोडक्ट खरीद लिया।
मैंने उसे खोला और जैसी की उम्मीद थी मुझे उसकी गंध अच्छी नहीं लगी। मैंने उसे शॉपकीपर को दे दिया और कहा कि इसे वह अगले ग्राहकों के लिए टेस्टर के रूप में उपयोग कर सकता है। वह तुरंत राजी हो गया। उसके चेहरे पर गिल्ट का नामोनिशान तक नहीं था।
जब मैं दुकान से बाहर निकल रहा था तो मेरे भीतर से आवाज आई कि इस व्यक्ति पर भरोसा मत करो, वह इस यूज्ड प्रोडक्ट को भी किसी को बेच देगा। मैं लौटा, डिओडोरैंट उठाया और उसे मेरे दोस्त को दे दिया, ताकि अगर उनकी कार में कोई बदबू हो तो वे उसे उसमें स्प्रे कर सकें।
शनिवार को मुझे इस घटना की याद हो आई, जब मैं लोअर परेल, मुम्बई के फीनिक्स पैलेडियम शॉपिंग मॉल में अपनी बेटी के साथ उसके जन्मदिन के लिए खरीदारी कर रहा था। मैंने देखा कि जारा से लेकर मार्क्स एंड स्पेंसर तक सर्वश्रेष्ठ ब्रांड्स ने कर्मचारियों की संख्या में कटौती कर दी है, जो शॉपिंग करने वालों की मदद करें। बड़े स्टोर्स में ऐसा कोई नहीं था, जिससे बातें की जा सकें। ग्राहक खुद ही तय करते हैं कि उन्हें क्या खरीदना है।
फैशन इंडस्ट्री की नई चीजों के बारे में बताने या समझाने वाला वहां कोई नहीं होता है। और जो लोग वहां मौजूद होते हैं, वो ठीक से कोई भाषा तक बोल नहीं पाते, अपने एटिट्यूड में फैशनेबल होने की बात तो रहने ही दें। संक्षेप में, आज रीटेल खरीदारी का अनुभव बहुत हताश करने वाला हो गया है।
दिलचस्प बात यह है कि इन ब्रांडेड शॉप्स में ऐसे लोगों की लम्बी कतार थी, जो पहले खरीदा गया कोई सामान या तो लौटाना चाहते थे या उसके बदले में कुछ और लेना चाहते थे। इसका मतलब है कि उनमें से अधिकतर ने किसी योग्य सेल्सपर्सन की मदद के बिना कोई गलत प्रोडक्ट खरीद लिया था। कुछ बनाने के लिए किसी और चीज की कुर्बानी देना होती है, यह प्रकृति का नियम है।
एक परफ्यूम या कपड़ा बनाने के लिए कपास से लेकर ऊर्जा तक की कुर्बानी देना होती है, जिसे कारोबारी निवेश करना कहते हैं। और अगर वह बेकार चली जाए, जैसा कि उस डिओडोरैंट के मामले में हुआ था, तो यह उन उत्पादों के साथ घोर हिंसा है।
जब आप एक कप कॉफी बर्बाद करते हैं तो आप कॉफी के बीजों, उनका पावडर बनाने में लगी ऊर्जा, दूध, दूध को गर्म करने में लगी ऊर्जा, शकर, उसे घर तक लाने वाले प्लास्टिक बैग, आपके कप को धोने वाले साबुन और उसे पोंछने वाले कपड़े, इन सबके प्रति हिंसक होते हैं।
फंडा यह है कि रीटेलर्स के पास ग्राहकों की मदद करने के लिए योग्य सेल्समेन होने चाहिए, जो सही उत्पाद चुनने में उनकी मदद कर सकें। किसी खरीदे गए उत्पाद का उपयोग नहीं करना उसके रॉ मटैरियल के प्रति और इसीलिए प्रकृति के साथ भी एक हिंसा है।

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