दोनों उग्रवादों पर लगे लगाम
फ्रांस समेत यूरोपीय राष्ट्रों में अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर भारी-भरकम प्रदर्शन हो रहे हैं
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। फ्रांस समेत यूरोपीय राष्ट्रों में अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर भारी-भरकम प्रदर्शन हो रहे हैं और इस्लामी उग्रवादियों पर तरह-तरह के प्रतिबंधों की मांग की जा रही है। उधर दुनिया के कई इस्लामी राष्ट्र हैं, जो फ्रांस पर बुरी तरह से बरस रहे हैं और अभिव्यक्ति की इस स्वच्छंदता की भर्त्सना कर रहे हैं। तुर्की के राष्ट्रपति तय्यब एरदोगन ने कहा है कि फ्रांस के राष्ट्रपति अपनी दिमागी जांच कराएं। (कहीं वे पागल तो नहीं हो गए हैं) क्योंकि वे कहते हैं कि इस्लाम फ्रांस के भविष्य को चौपट करनेवाला है।
उन्होंने फ्रांसीसी वस्तुओं के बहिष्कार की अपील कर दी है। ऐसी ही अपीलें मलेशिया-जैसे अन्य मुस्लिम राष्ट्र भी कर रहे हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने जरा बेहतर प्रतिक्रिया की है। उन्होंने फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमेनुएल मेक्रो से कहा है कि उन्हें इस्लाम-द्रोह फैलाने की बजाय इस दुखद मौके पर ऐसी वाणी बोलनी चाहिए थी, जिससे लोगों के घावों पर मरहम लगता और आतंकवादी कोई भी होता, चाहे वह मुस्लिम या गोरा नस्लवादी या नाजी होता, भड़कता नहीं। उनके बयान आग में तेल का काम कर रहे हैं। एक तरफ मुस्लिम नेताओं और संगठनों के ऐसे बयान आ रहे हैं और दूसरी तरफ यूरोप के शहरों में पैगंबर मोहम्मद के कार्टूनों के पोस्टर बना-बनाकर दीवारों पर चिपकाए जा रहे हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि कुछ देशों के फ्रांसीसी नागरिकों पर भी जानलेवा हमले शीघ्र ही सुनने में आएं। ये दोनों तेवर मुझे अतिवादी लगते हैं। यदि मुसलमान लोग पैगंबर के चित्र या कार्टून बनाने के विरुद्ध हैं तो उनका सम्मान करने में आपका क्या बिगड़ रहा है ? पैगंबर के कार्टून बनाने से क्या यूरोपीय लोगों को मोक्ष मिल रहा है ? यही सवाल उन मुसलमानों से पूछा जा सकता है जो हिंदू मूर्तियों और मंदिरों को तोड़ते हैं ? आप बुतपरस्ती मत कीजिए लेकिन क्या बुतशिकन होना जरुरी है ? मुसलमान भाइयों से मैं यह भी कहता हूं कि यदि कुछ उग्रवादी लोग कुछ कार्टून या चित्र बना देते हैं तो उससे क्या इस्लाम का पौधा मुरझा जाएगा ? क्या इस्लाम छुई-मुई का पेड़ है ? इस्लाम ने अंधकार में डूबे अरब जगत में क्रांतिकारी प्रकाश फैलाया है। उसे ठंडा न पड़ने दें।