Rajasthan Congress: गहलोत के पायलट बने सचिन, क्या मिटेंगी दूरियां ?
राजस्थान में कांग्रेस की सियासत में पिछले डेढ़ साल से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच
राजस्थान में कांग्रेस की सियासत में पिछले डेढ़ साल से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच अदावत किसी से छिपी नहीं है. लेकिन कहते हैं कि राजनीति में कई बार मजबूरी में ही सही साथ नजर आना पड़ता है. कुछ ऐसा ही नजारा शुक्रवार को देखने को मिला, जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट एक साथ राजस्थान के दो विधानसभा क्षेत्रों वल्लभनगर और धरियावद में हो रहे उपचुनाव में पार्टी उम्मीदवारों के चुनाव प्रचार के लिए जयपुर से एक ही हेलीकॉप्टर में बैठकर गए और मंच भी साझा किए. इतना ही नहीं वल्लभनगर में तो सचिन पायलट में ड्राइवर सीट संभाली और बराबर में अशोक गहलोत बैठे. इनके पीछे प्रभारी अजय माकन और प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा भी बैठे.
हालांकि कांग्रेसजनों के लिए यह देखना सुकून भरा हो सकता है, लेकिन क्या वास्तव में इन दोनों नेताओं के बीच बर्फ पिघल रही है. यह समझने के लिए पिछले एक सप्ताह के दोनों नेताओं के बयानों पर जाना होगा. 2 अक्टूबर को जहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा था कि वह 15-20 साल कहीं नहीं जाने वाले, जिसे दुखी होना है वह हो सकता है. वहीं उन्होंने दुबारा सरकार रिपीट होने और शांति धारीवाल को फिर से यूडीएच मंत्री बनाने की बात कही थी.
हालांकि तीन दिन बाद ही इस बात का जवाब देते हुए लखीमपुर खीरी की घटना बहाने सचिन पायलट ने भी कह दिया था कि कोई यह सोचे कि मरते दम तक सत्ता में रहेगा, तो यह भूल जाना चाहिए, क्योंकि जनता जब पलटी मारती है तो पता नहीं चलता. वहीं चुनाव प्रचार में जाने के एक दिन पहले ही भले ही मजाकिया अंदाज में ही सही, लेकिन सचिन पायलट ने जयपुर में कहा था कि वह 50 साल कहीं नहीं जाने वाले और राजस्थान में बचे हुए सभी काम पूरे करेंगे. यानी दोनों के बयान स्पष्ट रूप से बताते हैं कि बर्फ कितनी पिघल रही है.
राजनीति भी तो यही है कि जो दिखता है वह होता नहीं है और जो होता है वह दिखता नहीं है. यह बात तो हर नेता जानता भी है और अपने बयानों में कहता भी रहता है. कुछ ऐसा ही राजस्थान के मामले में देखने को मिल रहा है. फिर भी राजनीतिक मजबूरियों में कुछ ऐसा दिखाना पड़ता है, जैसा कि राजस्थान में दिखाया जा रहा है.
ठीक 6 महीने पहले भी मार्च के महीने में ऐसे ही 3 विधानसभा उपचुनाव के दौरान भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट एक ही हेलीकॉप्टर में एक साथ बैठकर चुनाव प्रचार करने गए थे. दोनों ही बार राजस्थान के प्रभारी अजय माकन ने यह प्रयास किया कि कम से कम चुनाव प्रचार के दौरान तो ऐसा संदेश नहीं, जाए कि राजस्थान के नेताओं में आपसी मतभेद या मनभेद हैं.
इस पूरे मामले में एक बात बहुत महत्वपूर्ण है कि डेढ़ साल पहले राजस्थान में जो कुछ भी राजनीतिक एपिसोड हुआ, उसका असर सिर्फ अभी ही देखने को नहीं मिल रहा है, बल्कि आगे भी देखने को मिलेगा. इसका कारण यह है कि एक ओर खुद प्रभारी महासचिव अजय माकन आलाकमान के निर्देश पर कई बार यह प्रयास कर चुके हैं कि राजस्थान में मंत्रिमंडल का विस्तार हो जाए, राजनीतिक नियुक्तियां हो जाए और संगठन का भी विस्तार हो जाए. इसी प्रयास में संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल राजस्थान आकर चर्चा कर चुके हैं. लेकिन क्योंकि यह प्रयास उनकी ओर से हो रहा है और दूसरी ओर से इस प्रयास को क्रियान्वयन करने के लिए सहयोग नहीं मिल पा रहा. ऐसे में राजस्थान में राजनीतिक रूप से जो काम होने जरूरी हैं, वे नहीं हो पा रहे हैं. इसकी परिणीति में ही दोनों खेमों की ओर से समय-समय पर बयान सामने आते रहते हैं.
ऐसा नहीं है कि सिर्फ नेताओं के बीच भी मतभेद नजर आते हो, बल्कि कांग्रेसजनों के बीच भी स्पष्ट रूप से मतभेद स्पष्ट नजर आते हैं. वल्लभनगर तथा धरियावद की चुनावी सभाओं में भी कांग्रेसजनों के बीच यह मतभेद स्पष्ट रूप से नजर आए, जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समर्थक हों या फिर पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के समर्थक. दोनों ने ही अपने नेताओं के पक्ष में वहां माहौल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी
हालांकि मौका तो वल्लभनगर में कांग्रेस उम्मीदवार प्रीति शक्तावत के पक्ष में सभा का था, तो धरियावद में कांग्रेस उम्मीदवार नगराज मीणा के पक्ष में सभा थी, लेकिन इन सभाओं में जिस तरह से दोनों नेताओं के समर्थकों ने माहौल बनाने का प्रयास किया, उससे प्रभारी अजय माकन के उन प्रयासों पर पानी जरूर फिर गया है, जिसके तहत वे दोनों नेताओं को एक साथ चुनावी क्षेत्रों में लेकर गए थे. अब इन बातों का असर वहां के मतदाताओं पर किस तरह पड़ता है, यह देखने वाली बात होगी.
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