Rahul Gandhi Birthday: वो 5 बातें जो राहुल गांधी को 2024 में बढ़त दिला सकती हैं

कल 19 जून को राहुल गांधी (Rahul Gandhi) अपना 51वां जन्मदिन मनाएंगे.

Update: 2021-06-19 06:59 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| कल 19 जून को राहुल गांधी (Rahul Gandhi) अपना 51वां जन्मदिन मनाएंगे. जीवन के इन 50 सालों में राहुल गांधी ने देशवासियों के बीच ऐसी छवि बनाई है कि उनके धुर विरोधी भी कहते मिल जाएंगे कि आदमी भला है पर राजनीति उनके लिए नहीं है. इस तारीफ में छुपी हुई बुराई ही उनके लिए घातक बन जाती है. हालांकि, जो लोग उन्हें पप्पू साबित करने पर तुले हैं वो भी आज तक यह नहीं बता सकें कि अगर यह व्यक्ति इतना कमजोर है तो फिर पूरी मशीनरी उन्हें पप्पू साबित करने पर क्यों लगी हुई है.

दरअसल राहुल गांधी के लिए 2024 के आम चुनावों (2024 Genral Election) में बहुत अच्छा मौका मिल रहा है. केंद्र सरकार (Central Government) पर कोरोना (Corona) से सही तरीके से ना निपटने का आरोप लग रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) के लिए भी यह तीसरा टर्म होगा जिसके चलते एंटीइनकंबेंसी से भी उनका सामना होगा. बंगाल में हार के बाद यह मिथ भी टूटा है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह (Amit Shah) की जोड़ी को हराना मुश्किल है. इस बीच अगर राहुल गांधी सचेत हो जाएं तो बाजी उनके हाथ लग सकती है. आज भी केंद्र की एनडीए (NDA) सरकार के लिए किसी भी राष्ट्रीय पार्टी या राष्ट्रीय नेता से खतरा दिखता है तो वो कांग्रेस पार्टी (Congress Party) ही है. पिछले चुनावों में राहुल गांधी ने राफेल मुद्दे पर बीजेपी को बहुत मुश्किल में डाल दिया था पर कांग्रेस पार्टी की संगठनात्मक कमजोरियों और सही रणनीति के अभाव में जनता पर उनका जादू काम नहीं कर सका. यूपी में प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) मजबूत योगी सरकार (Yogi Government) के विरोध में अकेली खड़ी हैं. प्रदेश के मजबूत विरोधी समाजवादी पार्टी मुखिया अखिलेश यादव (SP Chief Akhilesh Yadav) और बीएसपी प्रमुख मायावती (BSP Chief Mayawati) दूर-दूर तक नहीं दिखाई देते हैं. राहुल गांधी अगर कुछ सुझावों पर गौर करें तो हो सकता है कि 2024 में देश का ताज उनके पास हो.
1- राजनीति में फुल टाइमर बनें और कार्यकर्ताओं में विश्वास जगाएं कि मैं उनके साथ हूं
राहुल के ऊपर एक सबसे बड़ा आरोप यह है कि वो अभी भी राजनीति अपने मन से नहीं करते. जब देश या पार्टी को उनकी जरूरत होती है तो वो देश के बाहर चले जाते हैं. उनकी ये छवि देश के आम मतदाताओं के बीच ही नहीं बल्कि पार्टी कार्यकर्ताओं में भी बनी हुई है. दरअसल उनका मुकाबला एक ऐसी मंडली से है जो 24 घंटे राजनीति ही करती है. उनके लिए राजनीति ही उनकी दिनचर्या है. राहुल गांधी के नाम कोई लंबी पदयात्रा, कोई जेलयात्रा या धरना प्रदर्शन-विरोध प्रदर्शन नहीं जुड़ा हुआ है. बिना इसके भारत में प्रधानमंत्री बनना आसान है पर जननेता बनने के लिए ये सब जरूरी हो जाता है.
2- राहुल गांधी, प्रियंका गांधी के साथ मिल डबल इंजन की पार्टी बनाएं
गांधी परिवार के काफी निकट समझे जाने वाले पत्रकार रशीद किदवई ने करीब 2 साल पहले लिखा कि, राहुल गांधी को अपनी बहन प्रियंका गांधी के साथ अपने प्रोफेशनल रिलेशन को ठीक करना चाहिए. अब ये किसी परिवार का मसला नहीं है सोनिया गांधी और उनके दो बच्चों तक सीमित हो. कांग्रेस कार्यकर्ताओं को पता होना चाहिए कि प्रियंका गांधी के पास कितने अधिकार हैं और वो अपनी राजनीतिक समझ से फैसले लेने के लिए कितनी स्वतंत्र हैं.
राहुल के लिए ये अच्छा रहेगा कि वो प्रियंका गांधी को कांग्रेस संगठन को वापस खड़ा करने का ज़िम्मा सौंप दें और ख़ुद संसदीय विंग का ज़िम्मा संभाले. हालांकि, किदवई कि ये बातें 2 साल पहले कहीं थीं पर आज की परिस्थितियों में भी कुछ खास नहीं बदला है. प्रियंका यूपी का जिम्मा संभाल रही हैं. असम विधानसभा के चुनावों में प्रियंका को लेकर जनता में जैसा उत्साह देखा गया उसे और भुनाने की जरूरत है. प्रियंका गांधी और राहुल मिलकर डबल इंजन की पार्टी बना सकते हैं. यूपी में कार्य करते हुए प्रियंका ने मिर्जापुर कांड और हाथरस कांड तथा कोरोना अप्रवासी मजदूरों को घर पहुंचाने के मुद्दे पर योगी सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.
3- इंदिरा गांधी की तरह राहुल के लिए भी अपनी कांग्रेस बनाने का समय आ गया है
कांग्रेस पार्टी में जब इंदिरा गांधी अपनी शुरूआत कर रहीं थीं और पिता पंडित जवाहर लाल नेहरू की मौत हो चुकी थी, उन्हें भी गूंगी गुड़िया कहकर संबोधित किया जाता था. एक समय ऐसा आ गया था कि उनकी पार्टी में पोजिशन बहुत डावांडोल हो चुकी थी. 1967 में कांग्रेस पार्टी की कई राज्यों में भयंकर पराजय हुई थी. कांग्रेस पार्टी पर सिंडिकेट का ऐसा प्रभाव था कि पार्टी में उनकी चलती ही नहीं थी. इंदिरा गांधी ने उस समय कड़े फैसले लिए और तमाम बजुर्ग नेताओं को किनारे लगा दिया और 1969 में अपनी मनमर्जी की कांग्रेस का निर्माण किया. राहुल गांधी के लिए भी यही साहस दिखाने का समय आ गया है. उन्हें अपनी कांग्रेस बनानी होगी. अपने लोगों को पार्टी में आगे करना होगा. करीब हर राज्य में राहुल गांधी के करीबी और विश्वासपात्र लोगों को किनारे लगा दिया गया है या लगाया जा रहा है. इसी के चलते कई कद्दावर यूथ लीडर्स ने अपनी दूसरी राह पकड़ने में भलाई समझी. राहुल गांधी जल्दी ये नहीं करते हैं तो अभी कई और कद्दावर लोगों का साथ छूट सकता है.
4- केजरीवाल और ममता बनर्जी की तरह बीजेपी को हिंदुत्व की भाषा में जवाब देना शुरू करें
कहा जा रहा है कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी को करारी शिकस्त देकर तीसरी बार सत्ता में वापसी करने वाली ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में यह साबित कर दिया कि वो बीजेपी से अधिक हिंदुत्व को मानने वाली हैं. उन्होंने ना केवल सार्वजनिक रूप से चंडी पाठ किया बल्कि मंदिरों के भी खूब दौरे किए. दिल्ली में भी बार-बार जीत दर्ज कर रही आम आदमी पार्टी ने भी अपनी नीति बना ली है कि उसे बीजेपी से अधिक हिंदुत्ववादी अपने को दिखाना है. कहा जाता है कि अरविंद केजरीवाल अपनी हर सभा में बजरंग बलि के जयकारे लगवाते हैं. दिल्ली सरकार ने स्कूलों में राष्ट्रवाद का कोर्स भी शुरू करने की योजना बनाई है. अनुच्छेद 370 या सर्जिकल स्ट्राइक की तरह के राष्ट्रीय मुद्दों पर उनका रुख बीजेपी की ही तरह का होता है. कांग्रेस पार्टी स्वयं आजादी के पहले से एक हिंदू पार्टी थी. इसी झुकाव के चलते देश में कभी जनसंघ को उभरने का मौका नहीं मिला. जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी ने हमेशा कांग्रेस को हिंदू पार्टी दिखाने का प्रयास जारी रखा. बीजेपी के उभार के बाद कांग्रेस खुद को माइनॉर्टीज की पार्टी बनने के ठप्पा लगा बैठने से बचा नहीं सकी. छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार इस संबंध में अच्छा काम कर रही हैं. छ्त्तीसगढ़ सरकार ने प्रदेश में भगवान राम- माता कौशल्या का मंदिर बनवाना हो या राम वनगमन पथ का निर्माण शायद यही सोचकर ऐसा कर रही है.
5- राहुल सभी टूट कर अलग बने दलों को वापस बुलाने का आह्वान करें
द प्रिंट में छपे अपने एक लेख में गांधी परिवार के करीबी पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं कि राहुल गांधी को बिगुल फूंककर उन तमाम समूहों को वापस लौटने के लिए आवाज़ देनी चाहिए जो पार्टी से अलग हुए थे. इनमें एनसीपी, वाईएसआर कांग्रेस, तेलंगाना राष्ट्र समिति और यहां तक की तृणमूल कांग्रेस तक का नाम शामिल है और उन्हें वर्तमान संस्था से जोड़ना चाहिए. उनका कहना है कि नेकी का पता भी तब चलेगा जब पार्टी के सारे बड़े पद इन्हें दे दिए जाएं और बलिदान के लिए तैयार रहा जाए. ऐसा करने से तुरंत किसी का हृदय परिवर्तन नहीं हो जाएगा. लेकिन इससे राहुल के बारे में ये पता लगेगा कि वो सच में इसकी और कीमत चुकाने के लिए तैयार हैं.


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