शोभना जैन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सप्ताह जापान में हुए अहम क्वाड सम्मेलन से ठीक पहले अमेरिका सहित क्वाड के दो अन्य देशों के साथ मिलकर हिंद प्रशांत क्षेत्र के नौ अन्य देशों के नवगठित हिंद प्रशांत आर्थिक मंच यानी इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क में भारत के शामिल होने का ऐलान किया और उम्मीद जताई कि इससे क्षेत्र की आर्थिक चुनौतियों के लिए साझा समाधान खोजने व रचनात्मक व्यवस्था स्थापित करने में मदद मिलेगी. साथ ही कहा कि भारत एक समावेशी हिंद प्रशांत आर्थिक फ्रेमवर्क के लिए सभी के साथ मिलकर काम करेगा.
नये और बदलते अंतरराष्ट्रीय समीकरणों के बीच हुई 'टोक्यो क्वाड' शिखर बैठक के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क यानी आईपीईएफ के गठन की घोषणा को इन चार देशों सहित क्षेत्र के 9 देशों के बीच आपसी आर्थिक सहयोग बढ़ाने, सुरक्षा सहित अन्य चुनौतियों से साझा तौर पर निबटने के साथ ही चीन की इस क्षेत्र में लगातार बढ़ती आक्रामकता की चुनौतियों से निबटने के लिए एक 'दूरगामी सोच' माना जा सकता है.
क्वॉड गठबंधन में अमेरिका के साथ भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया आपसी सहयोग बढ़ाते हुए हिंद महासागर क्षेत्र में अपने सुरक्षा हितों के मद्देनजर चीन के बढ़ते आक्रामक तेवर और विस्तारवादी नीति के खिलाफ एकजुट हुए हैं और अब हिंद प्रशांत क्षेत्र के नौ देशों सहित इन चार महाशक्तियों के नए आर्थिक गठबंधन में शामिल प्रमुख देश चीन की विस्तारवादी रणनीति से पीड़ित हैं, जिनसे न केवल उनके सुरक्षा हितों पर आंच आ रही है बल्कि आर्थिक हित भी प्रभावित हो रहे हैं.
ऐसे में इन देशों के साझा हितों के मद्देनजर कायम हुई नई आर्थिक एकजुटता से 'क्वॉड गठबंधन' निश्चित तौर पर और मजबूत हुआ है. इस फ्रेमवर्क में भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, सिंगापुर, थाइलैंड, ब्रुनेई, दक्षिण कोरिया, मलेशिया, फिलीपींस, इंडोनेशिया और वियतनाम शामिल हैं.
निश्चित तौर पर क्वाड के गठन से पहले से ही बौखलाया चीन इस नये आर्थिक गठबंधन से और भी भड़क उठा है. वैसे भी एक तरफ चीन लद्दाख स्थित भारत के सीमा क्षेत्र में लगातार आक्रामक रुख अख्तियार किए हुए है, ऐसे में इस रणनीतिक गठबंधन के बाद व्यापक क्षेत्रीय एकजुटता के एजेंडा को बढ़ाए जाने के लिए बने नए गठबंधन से चीन की त्यौरियां और चढ़ गई हैं.
वैसे भी अमेरिका के साथ 36 के आंकड़े पर पहले से ही खड़े चीन के लिए पड़ोसी जापान के साथ भी जिस तरह से तल्ख रिश्ते हैं, उसके चलते भारत और जापान के बीच बढ़ती नजदीकियों ने चीन को और भी बौखला दिया है.
क्षेत्र की सुरक्षा स्थितियों के ही संदर्भ में कहें तो उधर फिलीपींस पर चीन की बदनीयती के मद्देनजर चीन की तरफ से उस पर किसी तरह के सैन्य हमले की स्थिति में अमेरिका के खुलकर फिलीपींस की मदद करने को लेकर क्षेत्र में तनाव की स्थिति पहले से ही बनी हुई है.
रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते नाटो में अमेरिका और यूरोपीय यूनियन देशों के बीच सहयोग और रूस के साथ चीन के आने से जो समीकरण बने हैं, ऐसे में भारत की बात करें तो कुछ विश्लेषकों का आकलन था कि रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत का जो रुख रहा है, उसका असर क्वाड समीकरण पर भी पड़ सकता है, लेकिन जिस तरह से इस बैठक में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की उल्लेखनीय भूमिका को फिर से जोर दिया गया है, इससे स्पष्ट है कि अमेरिका और अन्य सदस्य देश भारत की भावी भूमिका को भी समझ रहे हैं.
दरअसल, क्वाड समूह और अब उससे जुड़ा हिंद-प्रशांत आर्थिक मंच ऐसे दौर में बना है जबकि एक ओर कोविड महामारी से उत्पन्न स्थितियों से क्वाड सदस्यों तथा हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों की अर्थव्यवस्था के सामने चुनौतियां पैदा हुई हैं, वहीं दूसरी ओर चीन इस क्षेत्र में अपने वर्चस्व को स्थापित करने के लिए निरंतर प्रयत्नशील है.
अगर इस आर्थिक मंच की परिकल्पना वाले बिंदुओं की चर्चा करें तो इसमें मुक्त और खुले व्यापार की बात कही गई है, साथ ही आपूर्ति श्रृंखला को बेहतर करने ताकि उस में पारदर्शिता बनी रहे और सभी उसके साथ भरोसे से जुड़े रहें, करने का उद्देश्य रखा गया है ताकि आपूर्ति चेन के कुछ जगहों पर केंद्रित होने के बजाय अलग-अलग देशों से आपूर्ति सुनिश्चित हो सके.
इस पहल के लिए 50 अरब डॉलर के कोष की घोषणा हुई है, जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने में खर्च किया जाएगा. साथ ही नौवहन क्षेत्र में इन देशों के बीच मिलकर काम करने के लिए नई साझेदारियां बनाने पर जोर दिया गया है.
इस आर्थिक मंच ने जो रणनीति की परिकल्पना बनाई है, उसके तहत सतत विकास के लिए ऊर्जा उपलब्धता बढ़ाने तथा कार्बन उत्सर्जन खत्म करने का संकल्प किया गया है, कराधान प्रणाली को प्रभावी बनाने के साथ ही जलवायु परिवर्तन और धरती का बढ़ता तापमान जैसी विकराल समस्याओं से आपसी सहयोग से निबटने की बात कही गई है.
इन बिंदुओं की पृष्ठभूमि में भारत के दृष्टिकोण को समझने के लिए विदेश नीति के एक जानकार के इस मत पर ध्यान देना होगा कि स्वाभाविक तौर पर भारत की अपेक्षा होगी कि उसकी सुरक्षा और आर्थिक नीतियों को इस से बल मिले, उसे अमेरिका और क्वाड देशों से अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी मिले, उसके राष्ट्रीय हित सुरक्षित रहें.
बहरहाल, लगता तो यही है कि क्वाड के रणनीतिक गठबंधन के साथ-साथ अब इस नई आर्थिक एकजुटता वाले मंच से नियमों पर आधारित व्यवस्था तथा मुक्त व स्वतंत्र क्षेत्र की क्वाड की परिकल्पना और मजबूत होगी.
उम्मीद की जानी चाहिए कि जिन बिंदुओं को लेकर यह एक नया आर्थिक मंच बना है, उससे ये सभी देश सीधे तौर पर जुटेंगे और इसके लक्ष्यों के अनुरूप आपसी सहमति के साथ सहयोग बढ़ाएंगे.