गुत्थी परीक्षा की

केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की परीक्षाएं रद्द करने का फैसला हालात को देखते हुए तो उचित ही है। ज्यादातर राज्य भी परीक्षाएं कराने के पक्ष में थे नहीं।

Update: 2021-06-03 03:05 GMT

केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की परीक्षाएं रद्द करने का फैसला हालात को देखते हुए तो उचित ही है। ज्यादातर राज्य भी परीक्षाएं कराने के पक्ष में थे नहीं। फिर, विद्यार्थियों और अभिभावकों के लिए भी परीक्षाएं किसी जोखिम से कम नहीं होतीं। स्कूल प्रबंधन भी परीक्षाएं टालने की वकालत कर रहे थे। कुल मिला कर सभी पक्ष परीक्षाओं को टालने या रद्द करने की मांग कर रहे थे। और इसीलिए ही पिछले महीने पंद्रह अप्रैल को सीबीएसई की दसवीं की परीक्षा रद्द कर दी गई थी। लेकिन बारहवीं की परीक्षा को लेकर तब कोई फैसला नहीं हो सका था। ऐसे संकेत थे कि बारहवीं की परीक्षाएं जून में करवा ली जाएंगी। एक जून को परीक्षा की तारीख का एलान होना था। इसके लिए केंद्र ने राज्यों से सुझाव मांगे थे। पर हालात को देखते हुए ज्यादातर राज्य इसके लिए राजी नहीं थे। इसीलिए मंगलवार को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई बैठक में परीक्षाएं रद्द करने का फैसला हुआ। पर मामला सिर्फ सीबीएसई की परीक्षा तक ही सीमित नहीं है। इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एग्जामिनेशन (आइसीएसई) और गुजरात, हरियाणा जैसे कुछ राज्यों के बोर्डों ने भी बारहवीं की परीक्षाएं रद्द कर दीं। बाकी राज्य भी इस दिशा में बढ़ने की तैयारी में हैं।

गौरतलब है कि देश महामारी की दूसरी लहर की मार झेल रहा है। ज्यादातर राज्यों में हालात अभी भी बेकाबू हैं। सबने अपने-अपने हिसाब से पूर्णबंदी कर रखी है। जून में भी हालात सामान्य होने लगेंगे, इसके कोई आसार नजर नहीं आ रहे। ऐसे में परीक्षाएं कैसे हो पातीं? कौन जोखिम मोल लेता? जहां पहली प्राथमिकता जान बचाने की हो, वहां परीक्षा के बारे में कैसे कोई सोचे, यह बड़ा सवाल है। अकेले सीबीएसई की बारहवीं की परीक्षा में करीब पंद्रह लाख विद्यार्थी बैठते हैं। फिर राज्यों के बारहवीं के बोर्डों में भी लाखों परीक्षार्थी बैठते हैं। ऐसे में घर से परीक्षा केंद्रों तक परीक्षार्थियों की भीड़ रहती और संक्रमण का खतरा कई गुना बढ़ जाता। परीक्षाओं के आयोजन में सबसे बड़ा जोखिम ही यह था।
हालांकि सीबीएसई और राज्य बोर्ड परीक्षा कराने के लिए कई विकल्पों की बात करते रहे। परीक्षा विभिन्न चरणों में करवाने या फिर कुछ ही विषयों की परीक्षा के विकल्प पर चर्चा चली। लेकिन महामारी के हालात में व्यावहारिक धरातल पर यह सब आसान नहीं था। फिर, किसी भी बोर्ड के पास ऐसा तो कोई बंदोबस्त है नहीं कि लाखों बच्चों की ऑनलाइन परीक्षाएं करवा ली जातीं। इसीलिए परीक्षाएं रद्द करने से बेहतर कोई विकल्प सामने था नहीं।
लेकिन परीक्षा रद्द होने के साथ ही दूसरे संकट भी खड़े हो गए हैं। अब बड़ा सवाल तो यही है कि बारहवीं का नतीजा बनेगा कैसे। अभी सीबीएसई ने इसका कोई तरीका निकाला नहीं है। लेकिन दसवीं और ग्यारहवीं के नतीजों के आधार पर आंतरिक मूल्यांकन कर नतीजा बनाने का एक सुझाव जरूर है। इसमें भी कुछ विकल्प हैं। बारहवीं की प्री-बोर्ड परीक्षा व आतंरिक मूल्यांकन से भी नतीजा बनाने की बात है। लेकिन अभी सर्वमान्य समाधान आना बाकी है।
जो विद्यार्थी इन नतीजों से संतुष्ट नहीं होंगे, उन्हें परीक्षा का विकल्प दिया जाएगा। लेकिन मुश्किल यह है कि परीक्षा को लेकर तो हालात सामान्य होने पर ही गाड़ी आगे बढ़ेगी। ऐसे में विद्यार्थी क्या करेंगे? बारहवीं के बाद प्रतियोगी परीक्षाएं और कॉलेजों में दाखिले भी होने हैं। यह भी विद्यार्थियों के सामने कम समस्या नहीं होगी। ऐसे में वे विद्यार्थी जिन्होंने वाकई साल भर कड़ी मेहनत की और परीक्षा देने की आस लगाए बैठे थे, उनका निराश होना स्वाभाविक ही है। ऐसे विद्यार्थियों के बारे में भी कुछ सोचना जरूरी है।

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