यूक्रेन पर पुतिन के आक्रामक दांव ने भारत के समक्ष बढ़ाई संतुलन साधने की चुनौती
यूक्रेन पर रूस के हमले ने भारत के लिए कई चुनौतियां बढ़ा दी हैं
विवेक काटजू। यूक्रेन पर रूस के हमले ने भारत के लिए कई चुनौतियां बढ़ा दी हैं। इन चुनौतियों का संबंध आर्थिक, सामरिक, कूटनीतिक एवं मानवतावादी जैसे पहलुओं से है। रक्षा साजोसामान की आपूर्ति के लिए भारत अभी तक रूस पर निर्भर है। इस बीच अमेरिका के साथ भी भारत के व्यापक हित जुड़ते गए। बहरहाल रिश्तों की ये कडिय़ां केवल भारत ही नहीं, बल्कि इन दोनों देशों और कई नाटो देशों के लिए भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं। ऐसे में भारत का कूटनीतिक समर्थन हासिल करने के लिए रूस और अमेरिका दोनों द्वारा लाबिंग किया जाना स्वाभाविक है। जैसे-जैसे यूक्रेन में रूस की जंग तेज होती जा रही है, वैसे-वैसे रूस और नाटो देशों के बीच कूटनीतिक युद्ध भी तल्ख होता जा रहा है। इस दौरान भारत की पहली प्राथमिकता हजारों छात्रों सहित अपने नागरिकों की सुरक्षित स्वदेश वापसी है। युद्ध के बीच यह कभी आसान नहीं रहता। हजारों छात्र भारत लौट आए हैं और उम्मीद करनी चाहिए कि सभी की सकुशल वापसी होगी। यह दुखद है कि कर्नाटक के एक छात्र की रूसी गोलाबारी में जान चली गई। वहीं एक छात्र का उपचार के दौरान निधन हो गया।
हाल-फिलहाल अंतरराष्ट्रीय सहानुभूति यूक्रेन के साथ है। दरअसल इस दौर में किसी देश का दूसरे देश पर आक्रमण करना अस्वीकार्य है। अपने सामरिक हितों को अनदेखा करने के लिए अमेरिका एवं यूरोपीय देशों से रूस की वाजिब शिकायतें थीं। वे रूस की पश्चिमी सीम पर स्थित देशों को नाटो सदस्य बनाने में लगे थे। इसे लेकर रूस ने यूक्रेन के मामले में एक लक्ष्मण रेखा खींच दी, जिस देश के साथ उसका गहरा ऐतिहासिक जुड़ाव रहा है। फिर भी ऐसे तमाम उकसावे के बावजूद यूक्रेन पर रूसी हमले को जायज नहीं ठहराया जा सकता। इस हमले ने नाटो देशों के समक्ष दुविधा उत्पन्न कर दी है। ऐसा इसलिए, क्योंकि एक तो रूस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है। दूसरा यह कि दुनिया में परमाणु हथियारों का सबसे बड़ा जखीरा भी उसके पास है। स्पष्ट है कि नाटो देश रूस का मुकाबला करने के लिए यूक्रेन में अपनी सेनाएं नहीं भेज सकते, क्योंकि इससे न केवल युद्ध के लंबा खिंचने, बल्कि परमाणु शक्तियों के सक्रिय होने से जोखिम और बढ़ जाएगा। ऐसे संघर्ष के लंबा खिंचने की कल्पना ही सिहरन पैदा कर सकती है। वहीं यह बात भी उतनी ही खरी है कि नाटो इस आक्रमण को अनदेखा नहीं कर सकता है। इसीलिए उसने त्रिस्तरीय रणनीति अपनाई है। पहली यही कि संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से रूस पर कूटनीतिक दबाव बढ़ाना। दूसरे, यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति सहित हरसंभव सहयोग देना। तीसरा, रूस पर कड़े वित्तीय एवं अन्य प्रतिबंध लगाना ताकि उनसे कुपित रूसी नागरिक पुतिन के खिलाफ भड़क जाएं।
जिस प्रकार के हालात बन रहे हैं उसमें तय है कि यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की की सरकार को भले ही कितना समर्थन मिले, लेकिन रूसी आक्रमण के आगे उनका प्रतिरोध लंबे समय तक नहीं टिकने वाला। इसका अर्थ यही होगा कि यदि संपूर्ण यूक्रेन नहीं तो उसका अधिकांश हिस्सा रूसी कब्जे में चला जाएगा। फिर पुतिन वहां अपनी कठपुतली सरकार बिठा देंगे। इसके बाद नाटो यही सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा कि रूसी समर्थन वाली ऐसी सरकार को अंतरराष्ट्रीय मान्यता न मिलने पाए। साथ ही साथ यह संगठन रूस पर कूटनीतिक दबाव बढ़ाने के अलावा प्रतिबंधों का शिकंजा और कसता जाएगा। यह तस्वीर काफी कुछ इस पर निर्भर करेगी कि यूक्रेनी अपनी जमीन पर किस प्रकार निरंतर विरोध कर पाएंगे। इस पूरे परिदृश्य के आकलन में तमाम अनिश्चितताएं जुड़ी हैं, जिनका भारत सहित सभी देशों पर प्रभाव पड़ेगा।
इस मामले में रूस की खुलकर आलोचना करने के लिए अमेरिकी दबाव और रूस के साथ अपने रिश्तों को सुरक्षित रखने की दिशा में भारत ने अभी तक सधा हुआ रुख अपनाया है। भारत की यह सतर्कतापूर्ण नीति संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से लेकर संयुक्त राष्ट्र के अन्य संगठनों की बैठकों में देखी जा सकती है। चूंकि भारत संयुक्त राष्ट्र के मंचों पर मतदान से अनुपस्थित रहा तो इसका यह आकलन करना गलत होगा कि भारत की स्थिति स्थैतिक है। भारत अपने बयानों से अपनी स्थिति स्पष्ट कर रहा है। ऊपरी तौर पर यह दिख सकता है कि भारत रूसी हमले पर आए प्रस्तावों पर मतदान से दूर रहा। इसे रूस के प्रत्यक्ष समर्थन के रूप में देखना गलता होगा। यूक्रेन से जुड़े विभिन्न पहलुओं को लेकर सुरक्षा परिषद में 21 फरवरी से चार मार्च के बीच कुल छह बैठकें हुईं। इन सभी बैठकों में भारत ने इसी बात पर जोर दिया कि विवादों का निपटारा संवाद, वार्ता और कूटनीति के जरिये किया जाए। उसने यह भी कहा कि सैन्य टकराव से बचना होगा। सुरक्षा परिषद की 21 फरवरी को हुई बैठक रूस द्वारा यूक्रेन के दो अलगाववादी प्रांतों को स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता प्रदान करने के बाद हुई थी। उसमें भारत ने शांति, संवाद और कूटनीति की बात करने के अलावा यह भी उल्लेख किया था कि सभी देशों के वास्तविक सुरक्षा हितों का भी ध्यान रखा जाए। यह इसका संकेत था कि यूक्रेन के नाटो में शामिल होने संबंधी रूस की आपत्तियों को किसी भी तरह अनदेखा नहीं करना चाहिए। जिस दिन रूस ने यूक्रेन पर हमला बोला, उस दिन भी भारत ने परिषद में ऐसा ही बयान दिया।
हालांकि हमले के बाद 25 फरवरी और उसके उपरांत हुई बैठकों में भारत ने रूस के सुरक्षा हितों संबंधी किसी भी उल्लेख को अपने बयानों से हटा लिया। इसके बजाय भारत ने संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र के पालन और हिंसा समाप्त करने की आवश्यकता पर बल देने की बात कही। साथ ही उसने देशों की संप्रभुता एïवं क्षेत्रीय अखंडता अक्षुण्ण बनाए रखने की वकालत भी की। चूंकि रूस ने यूक्रेन की संप्रभुता का उल्लंघन किया था तो भारत ने स्पष्ट रूप से कड़ा संदेश दिया कि यह हमला गलत था। अमेरिका ने भारत के रुख में बदलाव को स्वीकार किया है, क्योंकि उसके विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने सीनेट कमेटी को बताया कि भारत का नया रुख उभर रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि यूक्रेन मसले पर अमेरिका भारत के संपर्क में है। इसमें कोई संदेह नहीं कि कूटनीतिक मोर्चे पर अपने पूर्ण समर्थन के लिए अमेरिका भारत पर दबाव और बढ़ाएगा। हालांकि भारत को अपने हितों की परवाह करनी होगी। उसका मौजूदा कूटनीतिक रुख इसी दिशा में है, जो आगे भी कायम रहना चाहिए।
(लेखक विदेश मंत्रालय में सचिव रहे हैं)