पैगंबर मोहम्मद ने भी मदीना में मस्जिदों का निर्माण करने के लिए जमीन का भुगतान किया था
काबा में भी अन्य देवताओं की मूर्तियां हुआ करती थीं
हसन एम कमाल:- कुछ इतिहासकारों का मानना है कि काशी मंदिर उस स्थान पर मौजूद था, जहां ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) बनी है. जबकि कुछ का कहना है कि मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी के बाद हुआ था. 14 मई को जब टीम ने साइट पर पहुंचकर तहखाने का सर्वेक्षण किया तो यह साफ हो जाता है कि मस्जिद का निर्माण मंदिर की नींव का उपयोग करके बना था. मस्जिद की पिछली दीवार जिसे श्रृंगार गौरी स्थल (Shringar Gauri Sthal) कहा जाता है, इस वक्त वाराणसी की स्थानीय अदालत में याचिका का विषय है. 16 मई को वुज़ू खाना के तालाब में मिली एक चीज को शिवलिंग बताने वाले लोगों ने इस केस को एक नया मोड़ दे दिया है.
हालांकि वुज़ू खाना की मस्जिद समिति के सदस्यों में से एक ने इस दावे को खारिज किया है और कहा है कि यह वुज़ू खाने में फव्वारे का हिस्सा है. हिंदुओं की एक बड़ी आबादी फिलहाल इस तथ्य से आश्वस्त है. हालांकि कुछ लोगों ने इसे दैवीय हस्तक्षेप भी कहना शुरू कर दिया है, भले ही वस्तु की प्रमाणिकता अभी तक संदिग्ध बनी हुई है. अब बर्खास्त एडवोकेट कमिश्नर द्वारा दायर 2 पन्नों की रिपोर्ट जिसे गुरुवार को अदालत में पेश किया गया था, प्रेस में लीक हो गई है. इस रिपोर्ट में मंदिर के अवशेषों के साथ-साथ कमल जैसे प्रतीकों और शेषनाग जैसी दिखने वाली एक आकृति का भी जिक्र है.
काबा में भी अन्य देवताओं की मूर्तियां हुआ करती थीं
जबकि नए एडवोकेट कमिश्नर विशाल सिंह द्वारा दायर की गई दूसरी 12 पन्नों की रिपोर्ट में क्या है, यह अभी तक पता नहीं चल पाया है. इसके बावजूद मामले में मुस्लिम पक्ष का एकमात्र बचाव, पूजा स्थल अधिनियम 1991 है. हालांकि इसे किसी भी समय संसद के सत्र में वापस आने पर समाप्त किया जा सकता है. अदालत पहले ही वुज़ू खाने को सील कर चुकी है. लेकिन मुसलमानों को नमाज अदा करने की अनुमति दी गई है. ऐसा इसलिए है क्योंकि वर्शिप एक्ट 1991 अधिकारियों को निर्देश देता है कि वह किसी भी पूजा स्थल को और उसकी परंपराओं को उसी तरह से बनाए रखें जैसा कि वह 15 अगस्त 1947 के दौर में मौजूद था.
लेकिन मुस्लिम पक्ष के लिए, इनमें से कोई भी – चाहे वह स्थल एक मंदिर था या नहीं, या यदि तहखाना में मूर्तियां मौजूद हैं (एड) – मामला. हदीस, हालांकि एक दैफ (कमजोर) पुष्टि करता है कि पैगंबर मोहम्मद ने अपने अनुयायियों को ताइफ में एक मस्जिद बनाने का आदेश दिया था, जिसका इस्तेमाल मूर्तियों की पूजा करने के लिए किया जाता था (उन्हें साफ करने के बाद). मुस्लिम इब्न अल-हज्जाज द्वारा एक सहीह (मजबूत) हदीस भी है, जो बताती है कि पैगंबर मोहम्मद ने मस्जिदों को उन जगहों पर बनाने की अनुमति दी थी, जिनमें कब्रें थीं, हालांकि उन्हें खोदने के बाद ही ऐसा करना था. मूर्ति पूजा के लिए इस्तेमाल की जाने वाली जगहों पर मस्जिदें भी बनाई गईं, लेकिन उन्हें साफ करने के बाद. तो जब मूर्तियों को हटा दिया जाता है, तब अशुद्धता का कोई सवाल ही नहीं है.
यहां तक कि मस्जिद के लिए साफ होने से पहले काबा में भी अन्य देवताओं की मूर्तियां हुआ करती थीं. यह इस्लाम का सबसे पवित्र स्थल है और सभी मुसलमानों को हज करने के लिए यहां जाना चाहिए. काबा में मौजूद काले पत्थर को चूमना भी हज का हिस्सा है. धार्मिक रूप से और अन्य कारणों से मुस्लिम पक्ष के लिए वास्तव में क्या मायने रखता है, यह देखने वाली बात होगी. क्योंकि फिलहाल भूमि का स्वामित्व और उसकी संरचना हमारे सामने ज्ञानवापी मस्जिद के रूप में खड़ी है.
ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किसने कराया था?
ज्ञानवापी मस्जिद के निर्माण के समय औरंगजेब मुगल सम्राट था. लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि इस मस्जिद को उसी ने बनवाया था. यह भी स्पष्ट नहीं है कि तत्कालीन काशी विश्वनाथ मंदिर को किसने और किस कारण से थोड़ा था. यदि मस्जिद वास्तव में मंदिर स्थल पर बनाई गई थी तो भूमि निश्चित रूप से हिंदू समुदाय की थी और इस्लामी कानून के अनुसार जिसने भी मस्जिद का निर्माण किया उसके लिए जमीन के वास्तविक मालिक को भुगतान करना या मुआवजा देना अनिवार्य था. मुस्लिम पक्ष को ज्ञानवापी मामले में यह सवाल पूछने और साबित करने की जरूरत है कि क्या मस्जिद बनाने वाले ने ज्ञानवापी मस्जिद बनाने से पहले वह जमीन खरीदी थी या अगर इस जमीन को दान में दिया गया था तो क्या इसके कोई सबूत हैं?
भले ही पूजा स्थल अधिनियम 1991 मस्जिद के स्वामित्व में किसी भी बदलाव को रोकता है. लेकिन शरीयत कानून से स्पष्ट है कि किसी जगह पर मस्जिद का निर्माण तभी किया जा सकता है, जब भूमि का स्वामित्व स्पष्ट हो या फिर उस जमीन के लिए उसके मालिक को पूरी तरह से भुगतान किया गया हो. या फिर जमीन मालिक द्वारा मस्जिद निर्माण के लिए वह जमीन दान दी गई हो. हदीस तो यहां तक कहता है कि जमीन का भुगतान करने के लिए उस वक्त जो बाजार मूल्य चल रहा हो उससे ज्यादा की राशि दी जाए.
बलपूर्वक अधिग्रहित जमीन पर पीड़ित पक्ष को मुआवजा दिए बिना प्रार्थना कुबूल नहीं की जा सकती. इस्लामी कानून के विशेषज्ञों का कहना है कि यदि किसी जमीन का मालिक अनुमति से इंकार करता है तो उस जमीन पर की जाने वाली नमाज अस्वीकार्य है. ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन समिति को मुस्लिम समुदाय के सामने ज्ञानवापी मस्जिद और उसके नीचे की जमीन के स्वामित्व का स्पष्ट विवरण देना चाहिए, इससे पहले कि दोनों पक्षों के राजनेता और चरमपंथी इस मुद्दे को और दूषित करें यह मसला साफ हो जाना चाहिए. इसकी आवश्यकता को इस तरहस से समझा जा सकता है कि पैगंबर मोहम्मद ने भी अपने मूल मालिकों को जमीन का भुगतान करने के बाद ही मस्जिदों का निर्माण किया था या फिर उन्हें उसी उद्देश्य के लिए जमीन दान दी गई थी. निश्चित रूप से जिन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया, वह पैगंबर से ऊपर तो नहीं हो सकते.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)