प्रचार की सीमा
देश के किसी भी शहर से गुजरते हुए सड़क किनारे खंभों, इमारतों या दीवारों पर राजनीतिक दलों और उनके नेताओं की तस्वीरों वाले बड़े-बड़े होर्डिंग और विज्ञापन एक आम दृश्य होते हैं। इससे संबंधित राजनीतिक पार्टियों को अपने नेताओं या मुद्दों के प्रति कितना जन-समर्थन मिल पाता है
Written by जनसत्ता: देश के किसी भी शहर से गुजरते हुए सड़क किनारे खंभों, इमारतों या दीवारों पर राजनीतिक दलों और उनके नेताओं की तस्वीरों वाले बड़े-बड़े होर्डिंग और विज्ञापन एक आम दृश्य होते हैं। इससे संबंधित राजनीतिक पार्टियों को अपने नेताओं या मुद्दों के प्रति कितना जन-समर्थन मिल पाता है, यह नहीं कहा जा सकता, मगर प्रचार पाने के इस नुस्खे का हासिल यह होता है कि शहर कई बार ऐसे होर्डिंग से पटा दिखता है।
कई बार तो कुछ जरूरी और जन-उपयोगी सरकारी विज्ञापन भी इनसे ढक जाते हैं। इससे जहां जरूरी सूचनाओं तक आम लोगों की पहुंच नहीं हो पाती है, वहीं शहर का सौंदर्यबोध भी बिगड़ता है। कई बार ऐसे होर्डिंग और विज्ञापन छोटे-बड़े हादसों की भी वजह बनते हैं। समय-समय पर सड़क किनारे होर्डिंग और विज्ञापनों को हटाने से संबंधित दिशानिर्देश जारी किए जाते रहे हैं।
अदालतों ने भी इस मसले पर संज्ञान लेकर आदेश जारी किए हैं। करीब चार साल पहले सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि अवैध होर्डिंग के खिलाफ कार्रवाई होगी। मगर अफसोस की बात है कि आज तक राजनीतिक दलों, नेताओं और जनप्रतिनिधियों की ओर से इस ओर कोई ठोस पहलकदमी नहीं हुई।
आज भी यह देखा जा सकता है कि ज्यादातर जगहों पर अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों और नेताओं के प्रचार-केंद्रित विज्ञापन या होर्डिंग बेतरतीब तरीके से लगे होते हैं। कई बार किसी पार्टी के समर्थक अपनी ओर से भी ऐसा करके पसंद के नेताओं को खुश करने की कोशिश करते हैं।
सवाल यह है कि किसी नेता या मुद्दे के प्रति समर्थन हासिल करने के लिए जनता को अपना आकलन करने का हक देना चाहिए या फिर प्रचार की आंधी के जरिए उनकी राय को प्रभावित करने की छूट होनी चाहिए!
बंबई उच्च न्यायालय ने इस मसले पर गुरुवार को साफतौर पर कहा कि अवैध होर्डिंग लगाने की समस्या खत्म की जा सकती है, बशर्ते कि वे नेता और मंत्री अपने समर्थकों से ऐसा नहीं करने की अपील करें, जिनकी तस्वीरें होर्डिंग पर लगी होती हैं। अदालत की यह टिप्पणी खासतौर पर राजनीतिकों के लिए विचार करने का मौका है कि ऐसी सूरत में क्या किया जा सकता है, जब शासन चलाने वाले खुद कानून का पालन नहीं करते।
अदालत ने यह टिप्पणी एक याचिका की सुनवाई के दौरान की, जिसमें कहा गया था कि राजनीतिक दलों की ओर से लगाए गए अवैध, बैनर, पोस्टर और होर्डिंग सार्वजनिक स्थानों को विरूपित करते हैं। समस्या यह है, जिसे अदालत ने भी रेखांकित किया कि न्यायालय आदेश पारित कर सकती है, मगर उसे लागू करने के लिए उसे कार्यपालिका पर निर्भर रहना पड़ता है।
इस संबंध में एक अहम पहलू यह है कि जनता के प्रतिनिधि के रूप में चुने जाने वाले नेताओं को क्या कभी ऐसा लगता है कि अगर ऐसे होर्डिंग या विज्ञापन लगाना कानून के लिहाज से गलत है तो कभी वे अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों को ऐसा न करने का निर्देश दें या इसके लिए उनसे गुजारिश करें?
इसके उलट होता यह है कि कई बार नेता सड़कों से गुजरते हुए इस तरह के होर्डिंग पर अपनी तस्वीरें देख कर शायद खुश होते हैं। विडंबना यह है कि न तो राजनीतिक दलों या उनके नेताओं और न ही आम लोगों की ओर से इस बात का खयाल रखने की कोशिश की जाती है कि उनकी ऐसी गतिविधियां अवैध और कानून के कठघरे में भी हो सकती हैं।