कांग्रेस में बदलाव के लिए खुली छूट चाहते थे प्रशांत किशोर, गांधी परिवार पूर्ण परिवर्तन के लिए तैयार नहीं
उन तमाम चीजों की तरह जो कांग्रेस (Congress) में होनी तो चाहिए लेकिन होती नहीं, मंगलवार को पार्टी को फिर से जीवित करने का एक और प्रयास तब विफल हो गया जब चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने पार्टी से ब्रेकअप कर लिया
राजेश सिन्हा
उन तमाम चीजों की तरह जो कांग्रेस (Congress) में होनी तो चाहिए लेकिन होती नहीं, मंगलवार को पार्टी को फिर से जीवित करने का एक और प्रयास तब विफल हो गया जब चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने पार्टी से ब्रेकअप कर लिया. हालांकि ज्यादातर पार्टी के नेताओं और स्वतंत्र पर्यवेक्षकों के लिए यह कोई नई बात नहीं थी, ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. 2017 के उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) विधानसभा चुनाव के लिए भी प्रशांत किशोर को कांग्रेस से जोड़ा गया था, जिसके बाद पार्टी ने यूपी में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा और हार गई. जाहिर सी बात है जब पार्टी का संगठन पूरी तरह से बिखरा हुआ है, तो प्रशांत किशोर कोई जादू नहीं कर सकते. हार के लिए उन्होंने कांग्रेस को दोषी ठहराया और फिर पार्टी से अपने रिश्ते तोड़ लिए.
फिर पिछले साल दोनों पक्षों ने फिर से बातचीत शुरू की, लेकिन प्रशांत किशोर जो भूमिका कांग्रेस पार्टी में चाह रहे थे, उसे लेकर चीजें अटक गईं. लेकिन पिछले महीने यूपी कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के कहने पर फिर वे फिर कांग्रेस के करीब आए, जब उन्होंने कुछ बड़े बदलावों की योजना कांग्रेस के सामने रखी. अगर कांग्रेस पार्टी और प्रशांत किशोर के बीच चीजें ठीक हो जातीं, तो शायद उन्हें गुजरात में पार्टी के अभियान को संचालित करने की जिम्मेदारी दी जाती और साथ ही वे गुजरात के प्रभावशाली नेता लेउवा पटेल और नरेश पटेल को कांग्रेस में शामिल करने की मध्यस्था करते. गुजरात में कुछ ऐसा किया जाता जो कांग्रेस की जीत की संभावनाओं को और बढ़ा देता, क्योंकि इस साल के अंत में ही वहां विधानसभा के चुनाव होने हैं. कांग्रेस में कई लोगों का मानना है कि पटेल गुजरात में कांग्रेस के लिए किशोर से बड़ा दांव साबित हो सकते थे. हालांकि अभी तक ऐसा हो नहीं सका है.
पीके ने कांग्रेस जॉइन करने से मना कर दिया
26 अप्रैल वही दिन था, जब अंतरिम कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को कई चर्चाओं और बैठकों के बाद प्रशांत किशोर कि संगठन में भूमिका को लेकर अंतिम निर्णय लेना था. इससे पहले शनिवार 23 अप्रैल को पी चिदंबरम की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय पैनल ने 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले पार्टी के पुनरुद्धार के लिए अपने दृष्टिकोण को रेखांकित करते हुए, कांग्रेस नेतृत्व यानी सोनिया गांधी को प्रशांत किशोर की प्रेजेंटेशन पर अपनी रिपोर्ट सौंपी थी.
उन्हें पार्टी के "एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप" में जगह देने की पेशकश की गई थी, जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया. इससे शायद कई कांग्रेस नेताओं को राहत मिली होगी. पार्टी के वरिष्ठ नेता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट किया, "प्रशांत किशोर के साथ एक प्रजेंटेशन और चर्चा के बाद, कांग्रेस अध्यक्ष ने एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप 2024 का गठन किया है और उन्हें इस ग्रुप में एक जिम्मेदारी देते हुए पार्टी ज्वॉइन करने के लिए निमंत्रित किया गया. उन्होंने मना कर दिया. हम पार्टी को दिए गए उनके सुझावों और प्रयासों की सराहना करते हैं."
पैनल ने कथित तौर पर प्रशांत किशोर द्वारा दिए गए अधिकांश सुझाव का समर्थन किया था, लेकिन उनकी भूमिका और एक वरिष्ठ पदाधिकारी के रूप में पार्टी में उनके औपचारिक रूप से शामिल होने को लेकर मतभेद थे. दरअसल प्रशांत किशोर कथित तौर पर पार्टी उपाध्यक्ष का पद और फ्री हैंड चाहते थे. प्रशांत किशोर ने ट्वीट किया, "मैंने ईएजी के हिस्से के रूप में पार्टी में शामिल होने और चुनावों की जिम्मेदारी लेने के कांग्रेस के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है. मेरी विनम्र राय यह है कि मुझसे अधिक पार्टी को नेतृत्व और सामूहिक इच्छाशक्ति की जरूरत है ताकि परिवर्तनकारी सुधारों के जरिए कांग्रेस में गहरी जड़ें जमा चुकी संगठनात्मक समस्याओं को ठीक किया जा सके."
पार्टी का अस्तित्व नेहरू-गांधी परिवार के कारण है
दरअसल, कांग्रेस पार्टी आंतरिक रूप से इस बात से सहमत होने के बावजूद कि उन्हें अगले लोकसभा चुनावों के लिए एक नए चेहरे और परिवर्तनकारी रणनीति की जरूरत है, प्रशांत किशोर को खुली छूट देने से इनकार कर दिया. किशोर की पार्टी प्रमुख सोनिया गांधी के साथ कई बैठकें और चर्चाएं हुई और उसके बाद सोनिया गांधी ने पार्टी के शीर्ष नेताओं के बीच भी आंतरिक बैठकें कीं. अंत में यह फैसला लिया गया की पार्टी में प्रशांत किशोर की उस तरह की मुख्य भूमिका नहीं हो सकती, जिस तरह कि गांधी परिवार की है.
हालांकि, इसका यह कतई मतलब नहीं है प्रशांत किशोर अपने आप को बोर्ड से ऊपर रखना चाहते थे, लेकिन जाहिर तौर पर वह एक बिजनेसमैन हैं और जो पार्टी उन्हें उनकी रणनीतियों के लिए पैसा देती है, वे उसके लिए चुनावों में काम करते हैं. लेकिन वे यह सब छोड़कर कांग्रेस में शामिल होना चाहते थे. हालांकि, इसके लिए वे यह भी देख रहे थे कि जितना व्यापारिक लाभ छोड़कर वे कांग्रे में शामिल हो रहे हैं, क्या उसके बराबर का फायदा उन्हें यहां मिल रहा है.
आज कांग्रेस जिन परिस्थितियों में है उसे देखकर तो कोई नहीं कह सकता कि इसकी संभावना भी थी. दरअसल इस पार्टी का अस्तित्व नेहरू-गांधी परिवार के कारण है, आज तक जितने लोगों ने भी इस परिवार का विरोध किया या फिर इस परिवार से अलग होकर पार्टी बनाकर एक नया दल बनाने की कोशिश की, जनता ने हमेशा उसे नकार दिया और नेहरू गांधी परिवार वाले कांग्रेस को ही पसंद किया.
कांग्रेस और प्रशांत किशोर के बीच विश्वास की कमी
इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि प्रशांत किशोर के प्रस्तावों का पार्टी में विरोध हुआ, कांग्रेस में कई ऐसे नेता हैं जो प्रशांत किशोर के पार्टी में शामिल होने और उन्हें एक शक्तिशाली भूमिका दिए जाने को लेकर अंदर ही अंदर नाराज थे. दरअसल इसका मुख्य कारण है उनकी वैचारिक स्वतंत्रता और कांग्रेस के प्रतिद्वंद्वियों के साथ उनका जुड़ाव. यानी यह साफ तौर पर कहा जा सकता था कि कांग्रेस और प्रशांत किशोर के बीच विश्वास की कमी भी इस टूट की एक बड़ी वजह थी.
पीके को शुक्रवार 22 अप्रैल को 2024 के लोकसभा चुनावों में चुनौतियों का समाधान करने के लिए गठित एंपावर्ड एक्शन ग्रुप में एक पद देने की पेशकश की गई थी. हालांकि, पीके को इस प्रस्ताव पर आपत्ति थी. इसके 1 दिन बाद ही वह तेलंगाना में थे और मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव के साथ समय बिता रहे थे. केसीआर के साथ पीके के संगठन आईपैक ने काफी समय तक काम किया है. हालांकि यहां देखने वाली यह बात है कि एक तरफ जहां केसीआर पीएम मोदी का कड़ा विरोध करते हैं, वहीं आंध्र प्रदेश में उनकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी कांग्रेस है.
कांग्रेस सांसद मनिकम टैगोर जो तेलंगाना पार्टी प्रभारी और राहुल गांधी के करीबी हैं उन्होंने ट्वीट किया, "कभी-कभी उस पर भरोसा ना करें जो आपके दुश्मन का दोस्त हो." इस ट्वीट से साफ तौर पर टैगोर ने प्रशांत किशोर पर हमला किया था, जिससे पार्टी के उन तमाम नेताओं की धारणा मजबूत हुई जो पीके को चंचल प्रवृत्ति का व्यक्ति बताते हैं. कांग्रेस के कई नेता पार्टी में बदलावों के लिए किशोर के सुझावों से असहमत थे.
क्या थे पीके के प्रस्ताव
दरअसल, पीके के प्रस्तावों में शामिल था, पार्टी में एक गैर-गांधी व्यक्ति को अध्यक्ष या कार्यकारी उपाध्यक्ष बनाया जाए और सभी पदों के लिए आंतरिक चुनाव हों, सदस्यों का सामूहिक नामांकन हो और उन्हें संगठन निर्माण का विशिष्ट कार्य सौंपा जाए. इसके साथ ही उन्होंने आक्रामक रूप से दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों को लुभाने और सड़क पर कई जमीनी अभियान या आंदोलन शुरू करने की बात कही.
पीके ने तमिलनाडु, तेलंगाना, बंगाल, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में चुनाव से पूर्व गठबंधन का भी प्रस्ताव रखा. इन सभी राज्यों में जो दल सरकार चला रहे हैं वह पीके के क्लाइंट रह चुके हैं. प्रशांत किशोर यह भी चाहते थे कि कांग्रेस बिहार जैसे राज्य में अकेले चुनाव लड़े, जहां लालू प्रसाद की राष्ट्रीय जनता दल उसकी सहयोगी रही है. आपको यहां बता दें कि लालू प्रसाद प्रशांत किशोर की सेवाएं नहीं लेते हैं.
कांग्रेस के नेताओं का एक वर्ग है जो महसूस करता है कि पीके की सिफारिशों में ऐसी कोई नई बात नहीं है, जिसको लेकर कांग्रेस में पहले चर्चा नहीं की गई है. जी 23 ग्रुप के कांग्रेस से असंतुष्ट नेता भी इसी तर्ज पर बात करते हैं, जिन्हें कांग्रेस पार्टी द्वारा देशद्रोही के रूप में प्रचारित किया गया. हालांकि, पार्टी ने इस पर बदलाव की जरूरत को स्वीकार किया है और शायद इसीलिए अगले महीने राजस्थान के उदयपुर में कांग्रेस ने तीन दिवसीय सम्मेलन पर विचार किया है.