Varanasiवाराणसी | ये हैं ए. के. प्रसाद जिनका जन्म 10 जनवरी को बिहार के सीवान में स्थित बगौरा में वैश्य परिवार में हुआ था। इनके पिताजी श्री प्रदीप प्रसाद और पितामह श्री जगदीश प्रसाद व्यवसायी हैं। माताजी श्रीमती फुलवन्ती देवी गृहिणी हैं। इन्होंने शुरुआती शिक्षा गांव से प्राप्त करने के पश्चात काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से अपनी पढाई पूरी की। इनकी बाल्यकाल से हिन्दी साहित्य के अध्ययन में विशेष रूचि का परिणाम सातवीं कक्षा में दिखने लगा। अपने शब्दचयन, भाषा, संवेदना की ताजगी और रचना विन्यास में चौकस संधान जैसी विशेषताओं के कारण उन्होनें हिंदी साहित्य के सुधी पाठकों का ध्यान आकृष्ट किया और देश के कोने कोने में कवि सम्मेलनों में जाकर कविता सुनाकर सभी को आनंदित कर वाह-वाही लूटने लगे। ये अपने पिताजी के सानिध्य व सहयोग से एक प्रकाशक के रूप में इक्कीसवीं सदी के तीसरे दशक में उदित हुए। इन्होंने साहित्य सेवा के उद्देश्य से सन् 2021 में प्रान्ति इंडिया की स्थापना की। इन्होंने कुछ दिन व्यक्तिगत रूप से कार्यों का अनुभव लिया फिर एक अनुभवी विषय-विशेषज्ञों, लेखकों और संपादकों की प्रतिबद्ध टीम का गठन कर गहन शोध एवं विश्लेषण के पश्चात् गद्य व पद्य, दोनों में सर्जनात्मक लेखन प्रकाशित करना शुरू किया। अभी तक यह टीम 10 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित कर चुकी है और प्रतिवर्ष लगभग 8-10 नई पुस्तकें प्रकाशित करने का इरादा रखती है। इस अनुभवी टीम में पीएच.डी., एम.ए., बी.एड. इत्यादि डिग्रीधारी विशेषज्ञ शामिल हैं। इनका एकमात्र उद्देश्य अपने सर्वोत्तम ज्ञान, अनुभव व प्रयासों को आपतक पहुँचाना है।
प्रान्ति इंडिया की टीम द्वारा प्रदत्त आँकड़ों एवं तथ्यों को विभिन्न मानक एवं प्रामाणिक स्त्रोतों का उपयोग कर तैयार किया जाता है। इनका सदैव यह प्रयास रहता है कि सरल व सहज भाषा-शैली में आपके समक्ष प्रस्तुत हुआ जाए। प्रान्ति इंडिया के सदस्यों की एक मीटिंग में विचार-विमर्श हुआ कि वर्तमान परिवेश में प्रकाशन व्यवसाय की व्यवस्था कितनी विस्तृत व महंगी हो गयी है। आजकल तो लेखक बनने की इच्छा रखने वाले हर रचनाकार का शुरुआती मन इस दुविधा से जूझता ही है कि यात्रा का प्रारंभ किस प्रकार किया जाए ? सबसे पहले किस प्रकाशक के पास जाया जाए ? यह कैसे सुनिश्चित किया जाए कि रचनाएं छप ही जाएगी ? यदि कहीं गलत जगह नवांकुर अपनी पांडुलिपि और पैसा देकर फंस गया तो फिर किसी और प्रकाशक पर विश्वास कर पुनः प्रयास करना उसके लिए मुश्किल हो जाता है। इन्हीं सब उधेड़बुन से निकालने के लिए प्रान्ति इंडिया के सदस्यों की सर्वसम्मति से ए. के. प्रसाद के संपादकत्व में मासिक साहित्यिक पत्रिका प्रान्ति इंडिया का जुलाई 2024 में शुभारंभ हुआ और यह निर्धारित किया गया कि इस पत्रिका का मुख्य उद्देश्य नवोदित रचनाकारों की रचनाओं का प्रकाशन कर नवांकुर के सृजनात्मक लेखन को प्रोत्साहित करना है। हमारे संपादक महोदय का विचार है कि साहित्य के क्षेत्र में अच्छा करने वाले साहित्यकारों को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया जाए।
इस सम्मान से साहित्यकारों को न केवल उनके कार्य की मान्यता मिलेगी, बल्कि इससे वे और भी अधिक उत्साह से हिंदी साहित्य के लिए अपनी लेखनी जारी रख सकेंगे। साहित्यकारों को सम्मानित करने से हमारी संस्कृति और भाषा को भी मजबूती मिलेगी। लेकिन साहित्यकारों को सम्मानित करने के लिए केवल पैसों की जरूरत नहीं है। मजबूत इच्छा शक्ति और समर्थन भी उतना ही महत्वपूर्ण है। किसी भी कार्य को करने के लिए पैसों से कई गुना बढ़कर मजबूत इच्छा शक्ति कार्य करती है। यदि हम साहित्यकारों को सच्चे दिल से समर्थन दें और उनके कार्य की मान्यता दें, तो वे और भी अधिक अच्छा कार्य कर सकेंगे। आजकल, साहित्य के क्षेत्र में कई साहित्यकार अपनी लेखनी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उन्हें अपने कार्य के लिए समर्थन और मान्यता नहीं मिल पाती। इससे वे निराश हो जाते हैं और अपनी लेखनी बंद कर देते हैं। लेकिन यदि हम उन्हें समर्थन दें और उनके कार्य की मान्यता दें, तो वे और भी अधिक अच्छा कार्य कर सकेंगे। इन्हीं विचारों को ध्यान में रखते हुए संपादक महोदय के सानिध्य में प्रान्ति इंडिया की पूरी टीम अगले वर्ष 10 जनवरी 2025 को वाराणसी में प्रान्ति इंडिया वार्षिकोत्सव 2025 के दौरान 51 साहित्यकारों को सम्मानित करने के लिए प्रतिबद्ध है। इस समारोह में उन साहित्यकारों को सम्मानित किया जाएगा जिन्होंने हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
इस संबंध में पत्रिका के संपादक महोदय ने बताया कि प्रान्ति इंडिया द्वारा वाराणसी में 10 जनवरी को वार्षिकोत्सव 2025 के दौरान पूरे भारतवर्ष से प्राप्त आवेदनों में से चयनित 51 साहित्यकारों को सम्मानित करने की योजना है। जिसमें 40 साहित्यकारों की सूची तैयार है। वहीं, हिंदी की प्रमुख 11 विधाओं में एक एक साहित्यकार का चयन प्रान्ति इंडिया के संपादन मंडल द्वारा किया जा रहा है। उन्होंने बड़ी आशा के साथ कहा कि हमें उम्मीद है कि यह समारोह हिंदी साहित्य के लिए एक नए युग की शुरुआत करेगा और साहित्यकारों को उनके कार्य के लिए प्रेरित करेगा। आइए हम सभी मिलकर आगामी 10 जनवरी को वाराणसी में इस राष्ट्रीय सम्मान समारोह को सफल बनाएं।