प्रदूषण की मार
यह हमारे प्रशासन की कमी है कि हर साल ऐसी स्थिति उत्पन्न क्यों होती है। दिल्ली में सड़कों पर धूल और वाहनों से निकला धुआं कहीं भी दिख जाता है, लेकिन नियम-कायदे होने के बावजूद सरकार और जिला प्रशासन इस पर लगाम लगाने के लिए गंभीर नहीं दिखते हैं।
Written by जनसत्ता: यह हमारे प्रशासन की कमी है कि हर साल ऐसी स्थिति उत्पन्न क्यों होती है। दिल्ली में सड़कों पर धूल और वाहनों से निकला धुआं कहीं भी दिख जाता है, लेकिन नियम-कायदे होने के बावजूद सरकार और जिला प्रशासन इस पर लगाम लगाने के लिए गंभीर नहीं दिखते हैं। इससे निपटने के लिए सम-विषम लागू कर निर्माण कार्यों पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है, लेकिन उन लोगों के बारे में विचार नहीं किया जाता, जिसके कारण लोगों का जीवन प्रभावित होता है।
दैनिक मजदूर के लिए आय के कोई अन्य साधन नहीं होते हैं, लेकिन निर्माण कार्यों पर प्रतिबंध लगाकर उन्हें और उनके बच्चों को सरकार भूखा रहने के लिए मजबूर करती है। दिल्ली सरकार को अपनी कमियों को निर्माण मजदूरों पर नहीं लादना चाहिए। सरकार केवल बड़ी-बड़ी कार्रवाई के दावे करती है, लेकिन सरकार के ही निर्माण कार्यों पर धूल उड़ने से रोकने के लिए पर्याप्त इंतजाम नहीं होते हैं। ऐसे में क्या निर्माण कार्यों पर प्रतिबंध लगाना सही ठहराया जा सकता है? यह दिल्ली के नागरिकों की भी जिम्मेदारी है कि वह प्रदूषण कम करने के लिए पर्याप्त कदम उठाए।
प्रधानमंत्री ने 'एक राष्ट्र एक पुलिस वर्दी' का विचार रखा। इस विचार पर जनता और पुलिस प्रशासन द्वारा विचार करना बाकी है। जैसे भारतीय सेना-नौसेना और वायु सेना की सभी रेजिमेंटों के लिए समान कोड की वर्दी होती है, वह बीएसएफ हो या सीआरपीएफ, इनकी भी समान वर्दी होती है पूरे देश में, तो ऐसा पुलिस के साथ भी किया जा सकता है।
इसके अलावा, यह आर्थिक रूप से भी फायदेमंद है, क्योंकि वर्दी के गुणवत्ता वाले उत्पाद उपलब्ध होंगे, जैसे बेल्ट, कैप और होजियरी का उत्पादन बड़े पैमाने पर निर्मित होगा। तो वहीं पूरे भारत में पुलिस की वर्दी की समान पहचान से पुलिसकर्मियों की एक अलग पहचान सुनिश्चित होगी जो नागरिकों में अंतरराज्यीय यात्रा करते हुए उनके मन से पुलिस के वेशभूषा के अंतर को मिटा देगा।