राजनीतिक हलचल: संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति का दोबारा गठन, कई बड़े चेहरे बाहर, क्या हैं इसके मायने?

मध्य प्रदेश से आने वाले राज्यसभा सांसद जटिया को बोर्ड में शामिल करके पार्टी ने संकेत दे दिया है। जटिया संघ के करीबी भी हैं।

Update: 2022-08-24 01:41 GMT

लगभग डेढ़ साल बाद होने वाले लोकसभा चुनावों को देखते हुए बीजेपी ने नीति निर्धारण करने वाली अपनी सर्वोच्च इकाई संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति का फिर से गठन किया है। दोनों संगठनों में कई जगहें खाली पड़ी थीं और इसी कारण से अगस्त 2014 के बाद पहली बार इनमें बदलाव किया गया है। 2014 में लोकसभा चुनाव में मिली जीत के बाद अमित शाह पार्टी अध्यक्ष बने थे और उन्होंने अगस्त 2014 में नए संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति का गठन किया था।




इस बोर्ड में पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी की जगह शिवराज सिंह चौहान और जेपी नड्डा को बोर्ड में शामिल किया गया था। अरुण जेटली, सुषमा स्वराज और अनंत कुमार के निधन और वेंकैया नायडू के उप-राष्ट्रपति तथा थावरचंद गहलोत के राज्यपाल बनने के बाद उनकी जगह बोर्ड में खाली थी।


इसमें कुछ नए चेहरे शामिल किए गए हैं और कुछ पुराने चेहरों को बाहर किया गया है। इस बदलाव के तहत केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है।
नए बोर्ड में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा, पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह समेत 11 नेताओं को शामिल किया गया है। इनमें बीएस येदियुरप्पा, सर्बानंद सोनोवाल, के.लक्ष्मण, पूर्व आईपीएस अफसर इकबाल सिंह लालपुरा, सुधा यादव, सत्यनारायण जटिया और बीएल संतोष शामिल हैं।


बताते चलें कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को अधिक उम्र का हवाला देते हुए 2014 में संसदीय बोर्ड से बाहर कर दिया गया था और उन्हें मार्गदर्शक मंडल में डाल दिया गया था। नए बोर्ड में अब 76 साल के सत्यनारायण जटिया और 79 साल के बीएस येदियुरप्पा को शामिल किया गया है, इसका मतलब साफ है कि बोर्ड में उम्र फैक्टर को तरजीह नहीं मिली है। इसमें सियासी गणित को ही आगे रखा गया है।

इसी सियासी गणित का एक पहलू यह भी है कि अमित शाह के कद को बढ़ा दिया गया है। पार्टी में हुए ताज़ा बदलावों को देखें तो साफ है कि संगठन और सरकार में हर जगह अमित शाह को धीरे-धीरे नंबर दो पर लाया गया है। गडकरी, शिवराज को बाहर करना और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बोर्ड में शामिल नहीं करना, कहीं न कहीं इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि अमित शाह ही नंबर दो पर रहेंगे। योगी आदित्यनाथ को बोर्ड में शामिल न किए जाने को लेकर संघ का कहना है कि बोर्ड में किसी भी मौजूदा मुख्यमंत्री को शामिल नहीं किया गया है।

नए चेहरों के पीछे की राजनीति

बीजेपी ने इस बदलाव से समाज के सभी वर्गों के बीच तालमेल बिठाने की कोशिश की है। एक तरफ पूर्व आईपीएस अफसर इकबाल सिंह लालपुरा को शामिल कर पार्टी ने किसी सिख को पहली बार संसदीय बोर्ड में जगह दी है, तो दूसरी तरफ, असम के पूर्व सीएम सर्बानंद सोनोवाल, उत्तर पूर्वी राज्य के एसटी समुदाय से ऐसे पहले नेता हैं, जिन्हें संसदीय बोर्ड में जगह मिली हो। इकबाल को शामिल करके बीजेपी, पंजाब के वोटरों को खुश करने के साथ-साथ देशभर में फैले सिख समुदाय के लिए मैसेज देना चाहती है।

इसके अलावा, दलित चेहरे के रूप में सत्यनारायण जटिया जबकि ओबीसी की तरफ से ओबीसी मोर्चा के प्रमुख के. लक्ष्मण को बोर्ड में शामिल किया गया है। महिला सदस्य के रूप में हरियाणा से आने वाली सुधा यादव मोर्चा संभालेंगी। सुषमा स्वराज के निधन के बाद बोर्ड में महिला की कमी खल रही थी। सुधा यादव कारगिल शहीद की पत्नी हैं और इसका सैनिक परिवारों में भी बीजेपी के प्रति एक सकारात्मक संदेश जाएगा।

आगामी चुनावों पर है नज़र

2023 में देश के 9 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इनमें मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तेलंगाना, त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड और मिजोरम शामिल है। ऐसा लगता है कि कर्नाटक में काफी प्रभावशाली माने जाने वाले लिंगायत समुदाय के नेता और पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा को संसदीय बोर्ड में शामिल करने का फैसला अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए लिया गया है।

गौरतलब है कि 4 बार राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके येदियुरप्पा के सबंध अमित शाह के साथ काफी अच्छे हैं और 2012 में पार्टी छोड़ने के बाद उन्हें वापस पार्टी में लाने का श्रेय भी अमित शाह को ही जाता है। यही वजह है कि 79 साल की उम्र में भी उन्हें बोर्ड में शामिल किया गया है। वहीं, के.लक्ष्मण का चयन, अगले साल तेलंगाना में होने वाले चुनाव को देखते हुए लिया गया है।

गौरतलब है कि लक्ष्मण तेलंगाना से हैं और राज्य में पार्टी को मजबूत करने की भूमिका इन पर होगी। बीजेपी तेलंगाना के चंद्रशेखर राव को चुनौती देना चाहती है और इस ओबीसी वोटबैंक साधने के साथ-साथ इस काम में लक्ष्मण अहम भूमिका निभा सकते हैं। अगले साल मध्यप्रदेश में भी विधानसभा चुनाव होने है और ऐसे में मध्य प्रदेश से आने वाले राज्यसभा सांसद जटिया को बोर्ड में शामिल करके पार्टी ने संकेत दे दिया है। जटिया संघ के करीबी भी हैं।

सोर्स: अमर उजाला 


Tags:    

Similar News

-->