पाकिस्तान में सियासी दौड़
पाकिस्तान में जो सियासी ड्रामा चल रहा है उसका आखिरी नतीजा यही हो सकता है कि इस मुल्क की बची-खुची इज्जत भी सरेआम नीलाम हो जाये और इसके हाथ में भीख का कटोरा और बड़ा हो जाये।
आदित्य चोपड़ा; पाकिस्तान में जो सियासी ड्रामा चल रहा है उसका आखिरी नतीजा यही हो सकता है कि इस मुल्क की बची-खुची इज्जत भी सरेआम नीलाम हो जाये और इसके हाथ में भीख का कटोरा और बड़ा हो जाये। क्रिकेट खिलाड़ी इमरान खान को मुल्क का वजीरे आजम बनाने का ईनाम पाकिस्तान की अवाम को इस तरह भुगतना पड़ेगा, इसका अन्दाजा शायद किसी को नहीं रहा होगा। मगर 2018 के राष्ट्रीय एसेम्बली के चुनाव इमरान खान ने जिस तरह भारत के खिलाफ नफरत फैला कर जीते थे उससे साफ था कि उनके नेतृत्व में पाकिस्तान का हश्र एक 'बेनंग-ओ- नाम' मुल्क के सिवाय दूसरा नहीं हो सकता। उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ का नारा था कि 'बल्ला घुमाओ-भारत हराओ'। मगर दुनिया जानती है कि पाकिस्तानी सीमा में 'बालाकोट' में क्या हुआ था जब भारत के जांबाज वायुसैनिकों ने 'एयर स्ट्राइक' की थी। खैर अब यह इतिहास हो चुका है और पाकिस्तान को समझ में आ गया है कि गीदड़ भभकियों से शेर कभी डरा नहीं करते हैं लेकिन इस्लामाबाद में जो मौजूदा राजनैतिक घटनाक्रम चल रहा है उससे भारत को चिन्ता इस बात की जरूर हो सकती है कि कहीं पाकिस्तान की भ्रष्टाचार युक्त और अवसरवादिता की राजनीति का लाभ कुछ ऐसी विदेशी ताकतें न उठा लें जो उसे इस्तेमाल करके भारत-पाक के बीच तनाव बढ़ाने का काम करें। पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान किस तरह चीन के कन्धे पर बैठ कर पिछले लगभग सात वर्षों से अकड़ रहा है और अपनी भौगोलिक रणनीतिक स्थिति को मजबूत बनाना चाहता है। इसी वजह से भारत को पाकिस्तान के घटनाक्रम पर पैनी नजर रखनी होगी। जहां इस मुल्क में प्रजातन्त्र का प्रश्न है तो वह दिखावे से ज्यादा और कुछ नहीं है क्योंकि सत्ता की असली चाबी इस देश की सेना के पास रहती है। अतः यहां की सेना सत्ता व विपक्ष के राजनीतिज्ञों के बीच चल रही गाली-गुफ्तार की भाषा पर ध्यान नहीं दे रही है और स्वयं को तटस्थ बनाये रखने का दावा कर रही है। इमरान के खिलाफ 342 सदस्यीय राष्ट्रीय एसेम्बली में 199 सांसद विपक्ष के खेमे में पहुंच चुके हैं और उनके पास केवल 142 सांसद रह गये हैं अतः लोकतान्त्रिक नियम और संवैधानिक नैतिकता कहती है कि इमरान खान को बाइज्जत तरीके से इस्तीफा दे देना चाहिए। मगर वह ऐसा करने के बजाय अपनी अवाम को सन्देश दे रहे हैं कि उनकी सरकार को गिराने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर साजिश की जा रही है और उन्हें लिख कर धमकी दी जा रही है। क्या गजब की सरकार है इमरान खान की कि लिखी हुई धमकी तक को वह अपने सीने से चिपकाये घूमते रहे और उसका खुलासा उन्होंने एक बहुप्रचारित जनसभा में किया मगर यह नहीं बताया कि यह धमकी उन्हें कहां से मिली। एक खत को हवा में लहराते हुए उन्होंने सार्वजनिक सभा में आम जनता से अपील की कि वह उनकी बात पर यकीन करे जबकि पाकिस्तान की विपक्षी पार्टियां उनके खिलाफ लामबन्द हो रही थीं और मुल्क में बढ़ती महंगाई व बेरोजगारी के खिलाफ उन्हें घेर रही थीं। साल में दो-बजट लाने वाली इमरान खान सरकार ने पाकिस्तान की हालत यह कर दी है कि उसके सिर पर अरबों डालर का कर्ज चढ़ चुका है और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष उसके बजट की निगरानी रख रहा है। किसी भी गैरतमन्द मुल्क के लिए इससे बुरी हालत क्या हो सकती है कि उसके लोगों की रोटियां भी अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों के कर्जों से चलें। पाकिस्तान में चीनी का भाव 200 रुपए किलो है और दूध 170 रुपए किलो बिक रहा है और आटा व दालों का भाव पांच-पांच गुना बढ़ चुका है। गौर करने वाली बात यह है कि इमरान खान के अपने पिछले साढे़ तीन साल के शासन के दौरान सिवाय मजहबी कट्टरता बढ़ाने के दूसरा कम नहीं किया और शिक्षा के क्षेत्र में 'एकल राष्ट्रीय पाठ्यक्रम' करके कुरान शरीफ की आयतों को लाजिमी कर दिया वहीं दूसरी तरफ मदरसों में जेहादी तैयार करने की मुल्ला-मौलवियों की तहरीक को अपना मौन समर्थन दिया। आतंकवादी तंजीमों को भी मन माफिक काम करने और आपस में ही शिया-सुन्नी के नाम पर मुसलमानों को मारने की घटनाएं भी बढ़ती रहीं और दूसरी तरफ सिन्ध प्रान्त में बचे-खुचे हिन्दुओं पर भी जुल्म बदस्तूर जारी रहे। एक अपेक्षाकृत युवा व पढे़-लिखे समझे जाने वाले इमरान खान ने पाकिस्तान को जेहादी मानसिकता में ही झोंकने का कम किया परन्तु इस देश के विपक्ष से भी ज्यादा उम्मीद नहीं की जा सकती है क्योंकि उन्हें भी जब अपनी सियासत डूबती नजर आती है तो वे भी अल्लाह-हू-अकबर का नारा बुलंद करके पाकिस्तानी अवाम को मजहबी तास्सुब में धकेल देते हैं। जिस तरह पाकिस्तानी एसेम्बली का इजलास विपक्ष द्वारा रखे जाने वाले अविश्वास प्रस्ताव पर विचार किये बिना ही 3 अप्रैल के लिए स्थगित हो गया उससे पाकिस्तान में दिखावे के लोकतन्त्र को भी खतरा है क्योंकि इमरान खान कह चुके हैं कि 3 अप्रैल को एसेम्बली के बाहर उनके एक लाख समर्थकों का जमावड़ा होगा। संसद में चल रही वैधानिक प्रक्रिया का सड़क पर भीड़ जमा करने से क्या वास्ता हो सकता है ?लोकतन्त्र तो बहुमत के नम्बरों का खेल होता है। खुदा खैर करे।