पुलिस सुधार का अजेंडा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय रक्षा यूनिवर्सिटी के पहले दीक्षांत समारोह में शनिवार को ठीक ही कहा कि देश में पुलिस सुधारों का अजेंडा लंबे समय से पेंडिंग है।

Update: 2022-03-14 03:45 GMT

नवभारत टाइम्स: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय रक्षा यूनिवर्सिटी के पहले दीक्षांत समारोह में शनिवार को ठीक ही कहा कि देश में पुलिस सुधारों का अजेंडा लंबे समय से पेंडिंग है। आजादी के तत्काल बाद ही पुलिस की कार्यप्रणाली में व्यापक सुधार किए जाने की जरूरत थी क्योंकि अंग्रेजी राज में आंतरिक सुरक्षा तंत्र के गठन और संचालन के पीछे मूल उद्देश्य आम लोगों में भय उत्पन्न करना था। आजाद देश में पुलिस बल और आम लोगों के बीच इस तरह के रिश्ते की कोई वजह नहीं थी। बावजूद इसके पुलिस बलों का ढांचा पहले जैसा ही रहा और उसकी कार्य प्रणाली में भी कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ। इस संदर्भ में प्रधानमंत्री का यह रेखांकित करना महत्वपूर्ण है कि पुलिस का रवैया समाजविरोधी तत्वों के प्रति सख्त और समाज के प्रति नरम होना चाहिए। पुलिस बलों का आधुनिकीकरण तो होना ही चाहिए, उनके नियमित ट्रेनिंग की भी व्यवस्था होनी चाहिए। लेकिन सबसे ज्यादा जरूरी है पुलिस बलों में प्रफेशनलिज्म लाना, हर स्तर पर उसमें वर्क कल्चर विकसित करना। इसके लिए जरूरी है कि पुलिस बलों में एक हद तक स्वायत्तता सुनिश्चित की जाए और रोज के कार्यों में राजनीतिक दखलंदाजी बंद की जाए। हालांकि उच्च पदों पर नियुक्ति और कार्यकाल को लेकर कुछ गाइडलाइंस हाल में बनाई गई हैं, जिन पर अमल भी हो रहा है, लेकिन इस दिशा में अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है।

उदाहरण के लिए, देश में सबसे पेशेवर मानी जाने वाली मुंबई पुलिस के हाल के घटनाक्रम पर नजर डालें तो जिस तरह से पुलिस इंस्पेक्टर स्तर के अधिकारी पर पद के दुरुपयोग और सौ करोड़ रुपये महीने की वसूली के आरोप लगे और पुलिस कमिश्नर रहे व्यक्ति ने कहा कि उसका पुलिस फोर्स पर विश्वास नहीं है, उससे अंदाजा मिलता है कि पुलिस व्यवस्था के अंदर गड़बड़ियां कितने गहरे पैठी हुई हैं। जब मुंबई पुलिस का यह हाल है तो अन्य क्षेत्रों की पुलिस की चर्चा ही क्या की जाए जहां पोस्टिंग और ट्रांसफर में जातिवाद, भ्रष्टाचार की शिकायतें आम हैं। पुलिस सुधार के सवाल इन सब मसलों से जुड़े हैं और उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रधानमंत्री के इस ओर ध्यान खींचे जाने के बाद अब यह प्रक्रिया तेज होगी। लेकिन प्रधानमंत्री के बयान में उभरा एक और पहलू है, जिस पर ध्यान देने की जरूरत है। वह है पुलिस की छवि। प्रधानमंत्री ने हालांकि ठीक कहा कि मीडिया में पुलिस को जिस तरह से पेश किया जाता है वह उचित नहीं है, लेकिन मूल बात यह याद रखने की है कि पुलिस या किसी भी संस्था की छवि सबसे ज्यादा किसी चीज से तय होती है तो वह है उसका अपना आचरण। आचरण में सुधार किए बगैर सिर्फ मीडिया में पेश होने वाली तस्वीर बदलने की कोशिश की गई तो उसका शायद ही कोई मतलब निकले।


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