पुलिस हमारी जिंदाबाद

हमारे यहां पुलिस का बड़ा महत्त्व है। कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए इसकी आवश्यकता आजादी के बाद निरंतर महसूस की गई

Update: 2021-10-01 06:05 GMT

हमारे यहां पुलिस का बड़ा महत्त्व है। कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए इसकी आवश्यकता आजादी के बाद निरंतर महसूस की गई। आजाद भारत के नागरिकों में स्वाभाविक रूप से एक अराजकता पनपनी थी, इसलिए व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस बल भी बढ़ाया जाना लाजिमी तौर पर जरूरी था। पुलिस बल की वृद्धि के साथ ही अपराधियों, हत्यारों, आतंकवादियों तथा बलात्कारियों की संख्या में दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि हुई। जनता को लगा कि जिस अनुपात से पुलिस बल बढ़ रहा है, उस अनुपात से अपराध नहीं बढ़ रहे, इसलिए ऐसे-ऐसे दिलेर लोग सामने आए जो पुलिस के लिए चुनौती से कम नहीं थे। बेचारे पुलिस वाले भी हमारी तरह ही थे, सो उन्होंने बीच का रास्ता निकाला कि सांप भी मर जाए और लाठी भी नहीं टूटे। उन्होंने माफिया सरदारों को बुलाया और कहा-'देखो भाई, हम एक-दूसरे के पूरक हैं। एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। तुम सांपनाथ तो हम नागनाथ! इसलिए ऐसी ढ़ब बैठाओ कि जनता की आंखों में धूल झोंकी जा सके ताकि जनता को तुम भी लूटो और हम भी लूटें। घोड़ा घास से यारी करे तो खाये क्या? इसलिए इसके सिर के तमाम बाल पूरी जुगल से लूट लो।'

सरदार बोले-'वाह भाई, हम तो यही चाहते हैं। चारों के भाई उठाईगीर, नेकी और पूछ-पूछ, सोने पे सुहागा आदि हिंदी साहित्य के अनेक मुहावरे हम पर एक साथ लागू हो रहे हैं। लेकिन भाई पुलिस जी यह तो बताओ इस मिलीभगत की कुश्ती के कायदे क्या रहेंगे?' पुलिस ने मूंछों पर हाथ फेरकर कहा-'देखो सरदारों, अपने-अपने क्षेत्रों में आप सब नए से नया कीर्तिमान स्थापित करो। हम लोगों को भूलो मत, जो भी लाओ उसे मिल बैठ कर बांट खाओ। कानून और व्यवस्था की अवहेलना चूंकि शत-प्रतिशत रूप से नहीं की जा सकती-अतः आप लोगों की पकड़ा-धकड़ी का नाटक तो हम करेंगे, परंतु ऐसा नहीं हो कि जेल की चक्की पीसते ही सिर पर पसीना आ जाए और बेईमानी का रास्ता त्याग दो।
कितने ही संकट आएं, परंतु अपने मूल रास्ते से आप लोग विचलित मत होना।' माफिया सरदारों ने हाथ ऊपर उठाकर शपथ खायी और पुलिस के संरक्षण में अपने-अपने क्षेत्रों में कीर्तिमान कायम करने के लिए निकल पड़े। तब से आज तक चोर-सिपाहियों का लुका-छिपी का खेल जारी है। कहने का तात्पर्य यह है कि पुलिस ने कानून और व्यवस्था को भी मिटने नहीं दिया तथा चोर-बदमाशों की फसल को ऐसा खाद दिया कि उनकी फसल सर्वत्र लहलहाने लगी। कुछ ऐसे ईमानदार चोर भी निकले जो पुलिस से समझौता नहीं करना चाहते थे। उन्हें पुलिस ने जेलों में ठुंसवा दिया और वे वहां काल कोठरियों में कैद पुलिस के नहीं मानने की यातना भुगत रहे हैं। वे चाहते तो पुलिस से मिल-बैठकर मामला सलटवा सकते थे, परंतु वे लोग खुद्दार थे। उन्होंने सीना ताने कहा-'चोरी का सारा माल हमारा है, क्योंकि चोरी करने वे अपनी ही रिस्क पर गए थे।' पुलिस को यह बड़बोलापन कब बरदाश्त होता, इसलिए उसने चार सौ बीसी सहित कानून की दूसरी धाराएं एक साथ उस पर दाग दीं-और वे खुद्दार चोर साहब जेल के ही होकर निकले। जो बाहर निकले वे इस आश्वासन पर कि वे पुश्तैनी कार्य नहीं छोड़ेंगे तथा ईमानदारी से पुलिस का भाग पुलिस को दे देंगे। जो लोग यह नहीं कह पाए, वे आज भी जेलों में सड़ रहे हैं।.

पूरन सरमा
स्वतंत्र लेखक
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