खिलाडि़यों की राष्ट्रीय स्तर पर चमक

अभी इस वर्ष को चले एक चौथाई समय ही बीता है

Update: 2022-04-08 05:45 GMT
बिलासपुर हैंडबाल का शुरू से ही अच्छा केंद्र रहा है। बात चाहे हैंडबाल संघ संचालन की हो या प्रशिक्षण की, बिलासपुर का योगदान सबसे अधिक रहा है। स्नेह व उसके पति सचिन चौधरी के निर्देशन में मोरसिंघी हैंडबाल अकादमी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रही है। पिछले 2018 के एशियाड में लगभग एक-तिहाई भारत की टीम इसी अकादमी से प्रशिक्षित थी। कनिष्ठ राष्ट्रीय, स्कूली राष्ट्रीय व अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालय हैंडबॉल प्रतियोगिताओं में इस अकादमी के बल पर हिमाचल प्रदेश महिला वर्ग में विजेता का ताज पहने है। हिमाचल प्रदेश के खिलाडि़यों को थोड़ी बहुत मिली खेल सुविधाओं से यह परफॉर्मेंस सामने आई है। इसलिए सरकारी व निजी क्षेत्र में खेल छात्रावासों व अकादमियों की बहुत जरूरत है। हिमाचल प्रदेश में हाई परफॉर्मेंस अकादमियों की भी बहुत जरूरत है, नहीं तो फिर हिमाचली खिलाडि़यों का पलायन जारी रहेगा…
अभी इस वर्ष को चले एक चौथाई समय ही बीता है, मगर खेल में हिमाचल प्रदेश के खिलाडि़यों ने विभिन्न खेलों में राष्ट्रमंडल खेलों व एशियाड के लिए क्वालीफाई करने की नजदीकी शुरुआत कर दी है। चंबा की सीमा ने पांच व दस हजार मीटर की दौड़ों में रजत पदक राष्ट्रीय फेडरेशन कप में जीते हैं। इसी प्रतियोगिता में जोगिंद्रनगर के सावन बरवाल ने भी दस हजार मीटर दौड़ में रजत पदक जीता है। कांगड़ा के अंकेश चौधरी ने आठ सौ मीटर की दौड़ में चौथा स्थान प्राप्त किया है। इस धावक ने इंडियन ग्रांप्री में आठ सौ मीटर की दौड़ में पिछले महीने स्वर्ण पदक जीता है। सावन और अंकेश भारतीय सेना में कार्यरत हैं। नागालैंड के कोहिमा में आयोजित राष्ट्रीय क्रास कंटरी प्रतियोगिता में हिमाचल प्रदेश की महिलाओं ने उपविजेता ट्राफी जीती है। हिमाचल प्रदेश के खिलाडि़यों ने कुश्ती सहित कुछ और खेलों में जूनियर वर्ग में भी पदक विजेता प्रदर्शन किया है। पिछले साल बरेली में आयोजित राष्ट्रीय हैंडबाल प्रतियोगिता में हिमाचल प्रदेश की महिला टीम ने पिछले तीन सालों की विजेता रेलवे टीम को फाइनल में चार गोलों के अंतर से हराकर विजेता ट्राफी पर पहली बार कब्जा कर अपनी पिछली तीन वर्षों की हार का बदला चुकता कर दिया था। इस बार फिर हिमाचल प्रदेश महिला हैंडबाल टीम ने हैदराबाद में आयोजित राष्ट्रीय चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता है। 1982 दिल्ली एशियाड के बाद काफी लोकप्रिय हुआ। बिलासपुर हैंडबाल का शुरू से ही अच्छा केंद्र रहा है। बात चाहे हैंडबाल संघ संचालन की हो या प्रशिक्षण की, बिलासपुर का योगदान सबसे अधिक रहा है। स्नेह व उसके पति सचिन चौधरी के निर्देशन में मोरसिंघी हैंडबाल अकादमी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रही है।
पिछले 2018 के एशियाड में लगभग एक तिहाई भारत की टीम इसी अकादमी से प्रशिक्षित थी। कनिष्ठ राष्ट्रीय, स्कूली राष्ट्रीय व अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालय हैंडबॉल प्रतियोगिताओं में इस अकादमी के बल पर हिमाचल प्रदेश महिला वर्ग में विजेता का ताज पहने है। हिमाचल प्रदेश के खिलाडि़यों को थोड़ी बहुत मिली खेल सुविधाओं से यह परफॉर्मेंस सामने आई है। इसलिए सरकारी व निजी क्षेत्र में खेल छात्रावासों व अकादमियों की बहुत जरूरत है। हिमाचल प्रदेश में हाई परफॉर्मेंस अकादमियों की भी बहुत जरूरत है, नहीं तो फिर हिमाचली खिलाडि़यों का राज्य से पलायन जारी रहेगा । हिमाचल प्रदेश में पहले से चल रहे खेल छात्रावासों के अतिरिक्त और कई जगह खेल छात्रावास खोलने के लिए बहुत अधिक धन व संसाधनों की जरूरत पड़ेगी। हिमाचल प्रदेश में पहाड़ अधिक होने के कारण यहां एक स्थान पर बड़े मैदान खेल के लिए उपलब्ध नहीं हो सकते हैं। इसलिए कई खेलों के लिए एक जगह खेल छात्रावास बनाना कठिन कार्य है। इसलिए यहां पर सुविधा व प्रतिभा के अनुसार खेल अकादमी या विंग कामयाब हो सकते हैं। प्रतिभा व सुविधा के अनुसार हिमाचल प्रदेश के विश्वविद्यालयों व महाविद्यालयों में भी सरकार खेल विंग खोलती है तो भविष्य में हिमाचल के खिलाड़ी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकते हैं। हिमाचल प्रदेश के कई महाविद्यालयों के पास अंतरराष्ट्रीय स्तर का खेल ढांचा तैयार खड़ा यूं ही बेकार हो रहा है। इस कॉलम के माध्यम से पहले भी इस विषय पर बार-बार लिखा जा चुका है, मगर सरकार का रवैया उदासीन रहा है।
खेल विंगों के लिए सरकार को न तो खेल ढांचा खड़ा करना पड़ता है और न ही नया छात्रावास बनाना पड़ता है। केवल खेल विशेष का प्रशिक्षक और खिलाडि़यों के लिए खुराक व रहने का प्रबंध करना होता है जो आसानी से बहुत कम धन राशि खर्च करके हो सकता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण निजी प्रयत्नों से स्नेह लता ने कर दिखाया है। हिमाचल प्रदेश सरकार चाहे तो राजकीय महाविद्यालय हमीरपुर, धर्मशाला व बिलासपुर में एथलेटिक्स के विंग आसानी से चल सकते हैं क्योंकि यहां तीनों जगह सिंथेटिक ट्रैक हैं। स्कूलों में भी यहां पर एथलेटिक्स की नर्सरियां स्थापित हो सकती हैं। ऊना तथा मंडी में तैराकी के लिए तरणताल उपलब्ध हैं। शिलारू व ऊना में एस्ट्रोटर्फ हाकी के बिछी हुई है। इस तरह हर जिले में किसी न किसी खेल के लिए प्ले सुविधा उपलब्ध है। क्या ऐसा नहीं हो सकता है कि अच्छे प्रशिक्षकों व पूर्व खिलाडि़यों को बुला कर शिक्षा व खेल विभाग मिल कर खेल अकादमियां यहीं खोल सकते हैं। प्रदेश के दूरदराज शिक्षा संस्थानों में भी उपलब्ध खेल सुविधा के अनुसार खेल विंग या अकादमी खुलनी चाहिए। हिमाचल प्रदेश में अधिक से अधिक खेल अकादमी व विंग खुलते हैं तो हिमाचल प्रदेश के खिलाडि़यों की राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग ही चमक देखने को मिलेगी। हिमाचल में खेलों के लिए आधारभूत ढांचा कमजोर है, इसलिए राज्य के प्रतिभावान खिलाड़ी बाहर के राज्यों को पलायन कर जाते हैं। अगर यह पलायन रुके तो हिमाचल के पास अनेक प्रतिभाएं होंगी।
भूपिंद्र सिंह
अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रशिक्षक
ईमेलः bhupindersinghhmr@gmail.com
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