पाइपयुक्त रसोई गैस
देश में 70 फीसदी परिवार भोजन पकाने के लिए एलपीजी का इस्तेमाल करते हैं
देश में 70 फीसदी परिवार भोजन पकाने के लिए एलपीजी का इस्तेमाल करते हैं. ऊर्जा, पर्यावरण एवं जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) के मुताबिक, 85 प्रतिशत परिवारों के पास एलपीजी कनेक्शन है. हालांकि, 54 प्रतिशत परिवार ऐसे भी हैं, जो एलपीजी के साथ-साथ या बिना एलपीजी के पारंपरिक माध्यमों, जैसे जलाऊ लकड़ी, उपले, कृषि अवशेष, कोयला एवं मिट्टी के तेल का इस्तेमाल कर रहे हैं. पारंपरिक ईंधनों पर निर्भर परिवार घर के भीतर होनेवाले वायु प्रदूषण को झेलने के लिए अभिशप्त हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि अस्वच्छ ईंधनों के चलते अकेले भारत में पांच लाख मौतें होती हैं. रसोई का हर घंटे का धुआं लगभग 400 सिगरेट के बराबर होता है. भारत में वायु प्रदूषण सबसे गंभीर समस्या है, लेकिन घर के भीतर होनेवाले इस प्रदूषण पर अमूमन चर्चा नहीं होती. हर परिवार तक स्वच्छ ऊर्जा की पहुंच सुनिश्चित करने के उद्देश्य से 2016 में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत बीपीएल परिवारों को एलपीजी कनेक्शन देने की शुरुआत हुई थी.
महिलाओं के समय और स्वास्थ्य को बचाने की यह मुहिम कारगर भी साबित हुई है. सरकार अब परिवारों को पाइपयुक्त गैस मुहैया कराने की योजना पर काम कर रही है. इसमें देश के 85 प्रतिशत भूभाग और 98 प्रतिशत परिवारों को शामिल किया जायेगा. पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने राज्यसभा में बताया कि जल्द ही इसकी प्रक्रिया शुरू होगी.
हालांकि, विरल बसावट के चलते पूर्वोत्तर और जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्से इस योजना का हिस्सा नहीं बन पायेंगे. अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोलियम और गैस कीमतों में तेजी के कारण घरेलू स्तर पर भी कीमतों का दबाव बढ़ रहा है. गैस सिलेंडर की अपेक्षा पाइपयुक्त गैस आपूर्ति सस्ती होती है, साथ ही उपभोक्ताओं के इस्तेमाल के लिए अधिक सुविधाजनक भी. इस प्रकार, बढ़ती कीमतों, उपलब्धता और सुरक्षा के नजरिये से पाइपयुक्त गैस बेहतर विकल्प बन सकती है.
कोविड-19 महामारी के दौरान उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों को मुफ्त एलपीजी सिलेंडर मुहैया कराये गये थे. गैस सिंलेडर की मांग में वृद्धि हो रही है. साल 2014 में 14 करोड़ गैस सिलेंडर के बनिस्पत वर्तमान में इसकी मांग 30 करोड़ तक पहुंच चुकी है. उज्ज्वला योजना शुरू होने के बाद से घरेलू स्तर पर व्यापक एलपीजी वितरण नेटवर्क तैयार हुआ है. इस अवधि में 12 नये बॉटलिंग प्लांट (6200 हजार मीट्रिक टन प्रतिवर्ष अतिरिक्त क्षमता के साथ) और लगभग 9000 नये वितरक जुड़े हैं.
इस प्रकार, पर्याप्त और निरंतर समर्थन देने से ग्रामीण और गरीब एलपीजी उपभोक्ताओं के जीवन में बदलाव आयेगा, साथ ही, बंद कमरे में होनेवाले प्रदूषण पर प्रभावी नियंत्रण किया जा सकेगा. गरीब परिवारों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने में आर्थिक सहायता, जागरूकता, उलपब्धता और प्रभावी प्रशासन की भूमिका महत्वपूर्ण है.
प्रभात खबर के सौजन्य से सम्पादकीय