इसके लिए सबसे महत्वपूर्ण है- अनुसंधान एवं विकास (आरऐंडडी) में निवेश करना। नए अत्याधुनिक इलाज को विकसित करना काफी जटिल व लंबी प्रक्रिया है। फिर, वैज्ञानिक, तकनीकी और नियामकों के बंधन भी काफी अधिक हैं, जिससे दवा का विकास चुनौतीपूर्ण, अधिक समय लेने वाला व खर्चीला काम बन जाता है। साल 2019 में वैश्विक दवा उद्योग ने अनुसंधान एवं विकास पर 186 अरब डॉलर की राशि खर्च की थी। साल 2026 तक इसके 233 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। लिहाजा, भारत को वैश्विक दवा का इनोवेशन हब बनाने के लिए अनुसंधान एवं विकास, विनिर्माण और डिजिटली बदलाव के काम में पर्याप्त निवेश करना होगा। यह फार्मास्यूटिकल्स व बायोफार्मा में आत्मनिर्भरता के लिए भी जरूरी है। सरकार इस दिशा में अच्छा-खासा मदद कर सकती है।
दूसरा काम यह होना चाहिए कि सरकार उदार बने। वैश्विक स्तर पर यही देखा गया है कि देशों, क्षेत्रों व कंपनियों की नई प्रौद्योगिकियों को पहचानने व अपनाने की क्षमता शोध एवं विकास में निवेश से प्रभावित होती है। अध्ययन बताते हैं कि शोध एवं अनुसंधान में निवेश यदि एक फीसदी बढ़ाया जाता है, तो औसतन उत्पादन में 0.05 से 0.15 फीसदी तक की वृद्धि होती है।
अनुसंधान और विकास पर भारत काफी कम खर्च करता है। यह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का एक फीसदी भी नहीं है। हमारी तुलना में ब्रिक्स के अन्य देश ज्यादा खर्च करते हैं। मसलन, चीन अनुसंधान व विकास पर अपनी जीडीपी का 2.1 फीसदी खर्च करता है, तो ब्राजील 1.3 फीसदी और रूस भी एक फीसदी से थोड़ा अधिक। 'एसोसिएशन ऑफ बायोटेक्नोलॉजी लेड इंटरप्राइजेज' (एबीएलई) का एक विश्लेषण बताता है कि 2018-19 में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने के लिए उसे कुल कर प्रोत्साहन का 7.5 फीसदी हिस्सा मिला और फार्मा को 2.3 फीसदी। जाहिर है, अनुसंधान और विकास में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार को तंत्र बनाना चाहिए और वित्त पोषण व्यवस्थाओं का मूल्यांकन करना चाहिए, ताकि दवा उद्योग को राहत मिल सके। इस साल का बजट दवा उद्योग को प्रोत्साहित करने का एक मौका हो सकता है।
अनुसंधान और विकास में कर सब्सिडी मिलनी चाहिए। 31 मार्च, 2020 तक आयकर अधिनियम की धारा 35 (2 एबी) के तहत अनुसंधान एवं विकास पर होने वाले सांस्थानिक खर्च पर भारित कर सुविधा दी जाती थी। चूंकि इस कटौती को 200 फीसदी से घटाकर 100 फीसदी कर दिया गया, इसलिए भारतीय दवा कंपनियों ने अनुसंधान एवं विकास पर अपना खर्च स्थिर किया या घटा दिया, क्योंकि उनके राजस्व का अनुपात 2018 में आठ फीसदी से घटकर 2021 में 6.6 फीसदी हो गया था। लिहाजा सरकार को 200 फीसदी भारित कर कटौती बहाल कर देनी चाहिए, जिसमें पेटेंट लागत सहित उत्पाद को प्रयोगशाला से बाजार तक पहुंचाने में लगने वाली लागत भी शामिल होनी चाहिए।
दवा उद्योग क्षेत्र को अनुसंधानों से जुड़े प्रोत्साहन (आरएलआई) भी मिलने चाहिए। ऐसे प्रोत्साहन उसको अनुसंधान व विकास में निवेश बढ़ाने और नवाचार के लिए शिक्षा जगत के साथ संबंध बनाने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं, जो काफी जरूरी है। आलम यह है कि पर्याप्त पूंजी न मिलने के कारण उद्यमियों के कई शानदार विचार अमूमन साकार नहीं हो पाते। इसलिए यह जरूरी है कि सभी संभावित विचारों को बढ़ावा मिले, फिर चाहे वे देश के सुदूर कोने से ही क्यों न उभर रहे हों। उत्पाद के विकास पर आरएलआई मिलनी चाहिए, जिसमें बाद के चरणों में ज्यादा प्रोत्साहन का प्रावधान होना चाहिए।
पेटेंट बॉक्स व्यवस्था को भी ठीक करना जरूरी है। अभी धारा 115बीबीएफ के तहत पेटेंट बॉक्स व्यवस्था में रॉयल्टी आमदनी पर 10 फीसदी कर छूट का प्रावधान है। अब इसका दायरा बढ़ाकर पेटेंट उत्पादों के व्यवसायीकरण से उत्पन्न आय तक कर देना चाहिए। विदेश में पंजीकृत बौद्धिक संपदा (जिसका खास लाइसेंस यदि भारतीय कंपनियों के पास है) से होने वाली आमदनी को भी रियायती कर दर के योग्य मानना चाहिए। इसी तरह, सरकार को प्रावधान करना चाहिए कि कंपनियां यदि अपने राजस्व का कम से कम 10 फीसदी (न्यूनतम सालाना 50 करोड़ रुपये) अनुसंधान और विकास पर खर्च करती हैं, तो उनको कॉरपोरेट टैक्स में 15 फीसदी की विशेष रियायत दी जाएगी।
सरकार को नवोन्मेष बॉन्ड भी जारी करना चाहिए। फार्मास्युटिकल क्षेत्र में अनुसंधान-विकास संबंधी कामों में मदद करने और कम खर्चीली पूंजी उपलब्ध कराने के लिए सरकार को दीर्घकालिक व सुरक्षित नवाचार बॉन्ड जारी करना चाहिए, जो कर मुक्त हो। जिस प्रकार सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां कर-मुक्त अवसंरचना बॉन्ड का उपयोग लंबी परियोजनओं के लिए फंड जुटाने के काम में करती हैं, उसी तरह से नवोन्मेष बॉन्ड का इस्तेमाल अनुसंधान एवं विकास से जुड़ी परियोजनाओं के लिए जनता से पैसे जुटाने के लिए होना चाहिए।
साफ है, भारत को उन्नत इलाज व बायोफार्मा उत्पादों की तरफ बढ़ना चाहिए। इसके लिए सरकार को शोधपरक व वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देना होगा। राजकोषीय प्रोत्साहन के साथ-साथ उसे सक्षम नीतियां बनानी होंगी। बुनियादी ढांचे का निर्माण करना होगा। तभी भारतीय दवा व बायोफार्मा उद्योग अपने असल मुकाम को पा सकेगा।