भारत में विकास से जुड़ी परियोजनाओं को समय से शुरू और पूरा करने के लिए सरकारें जितना भी करें, कम है। इसी रोशनी में राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं में होने वाली अनावश्यक देरी की रोकथाम के लिए जो नीतिगत बदलाव किए गए हैं, उनका हर तरह से स्वागत होना चाहिए। पहले इन परियोजनाओं में किसी भी बदलाव के लिए सैद्धांतिक मंजूरी लेने में ही महीनों लग जाते थे, लेकिन अब यह तय कर दिया गया है कि सैद्धांतिक मंजूरी रिपोर्ट अधिकतम छह महीने में सौंपनी पडे़गी। यही नहीं, सलाहकार, अथॉरिटी इंजीनियर, परियोजना निदेशक को सभी मौजूदा परियोजनाओं की रिपोर्ट 31 अगस्त तक सौंपने को कहा गया है। सबसे खास बात है कि यह सिर्फ निर्देश नहीं है, अगर अब इंजीनियरों की ओर से देरी हुई, तो उन्हें दंड का सामना करना पडे़गा। अभी तक जो ढर्रा रहा है, उसमें इंजीनियरों को सरकार की उदारता पर दृढ़ विश्वास है, वह मानकर चलते हैं कि सरकारें केवल बोलने का काम करती हैं, आदेश-निर्देश देकर भूल जाती हैं और काम तो अपनी गति से ही होता है। यही शर्मनाक सोच है, जिसकी वजह से भारत में शायद ही कोई ऐसी परियोजना होगी, जो समय पर पूरी हुई होगी।
अगर भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने तय कर लिया है कि अब सड़क परियोजनाओं को हर हाल में समय पर पूरा करना है, तो इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता। कोई शक नहीं कि पिछले दो दशक में भारत में सड़कों की स्थिति में बहुत सुधार हुआ है। सड़क मार्ग से परिवहन सुगम हुआ है, लेकिन अभी बहुत कुछ करने की गुंजाइश है। क्या हम पांच साल की परियोजना को पांच साल से पहले पूरी नहीं कर सकते? क्या हमारे इंजीनियर मेहनती नहीं हैं? क्या उनमें समय पर काम को अंजाम देने की प्रतिभा नहीं है? ये बड़े बुनियादी सवाल हैं, जो सीधे विकास से जुड़े हैं। एनएचएआई ने 24 अगस्त को जो नीतिगत दस्तावेज जारी किया है, उसकी उपयोगिता बहुत लंबे समय से थी। परियोजनाओं के तमाम छोटे-बड़े कामों को टालने की प्रवृत्ति का अंत जरूरी है। हम बुनियादी ढांचा विकास में पहले ही बहुत पिछड़ गए हैं। भारत निवेश में अगर पिछड़ रहा है, तो खराब सड़केंभी जिम्मेदार हैं।
गौरतलब है, जारी दस्तावेज या सर्कुलर में यह भी साफ कर दिया गया है कि कई मामलों में जान-बूझकर मामूली मंजूरी से जुड़ी फाइलों को भी इधर से उधर किया जाता है, ताकि ठेकेदारों को जुर्माने से बचाया जा सके। ठेकेदारों को जुर्माने से बचाने या उनकी लगाम न कसने के पीछे क्या कारण हैं, इसे समझना कठिन नहीं है। जाहिर है, परियोजना की बढ़ी हुई लागत एनएचएआई और देश को चुकानी पड़ती है। सलाहकार-इंजीनियर की सांठगांठ से ठेकेदार बच जाते हैं। सांठगांठ करके कई तरह से देश को चूना लगाया जाता है। अब यह बहुत जरूरी है कि भारत में सड़क परियोजना में होने वाली देरी के लिए जिम्मेदारी तय हो और देरी करने वाले को दंडित किया जाए। ठीक इसी तरह अन्य तरह की विकास परियोजनाओं के लिए भी नीतिगत दस्तावेज जारी होने चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि तमाम परियोजनाएं समय पर पूरी हों। परियोजनाओं को अगर पूरी तेजी से चलाया जाएगा, तो उससे समग्र आर्थिक-सामाजिक विकास में भी तेजी आएगी और रोजगार में भी वृद्धि होगी। देश का तन, मन और धन बर्बाद नहीं होगा।
क्रेडिट बाय हिन्दुस्तान