न्याय की राह

Update: 2023-02-17 05:27 GMT

Written by जनसत्ता: न्यायाधीशों की कमी और बढ़ती आबादी के कारण नागरिकों को समय पर न्याय मिलना मुश्किल हो गया है। हालांकि भारत सरकार ने राष्ट्रीय लोक अदालतों की स्थापना के माध्यम से इस समस्या के हल के लिए कदम उठाए हैं।

राष्ट्रीय लोक अदालतें स्वैच्छिक विवाद समाधान मंच हैं जिनका उद्देश्य पारंपरिक अदालतों के लिए एक त्वरित और अधिक किफायती विकल्प प्रदान करना है। इन्हें देश भर में समय-समय पर आयोजित किया जाता है और पार्टियों को बातचीत और समझौते के माध्यम से विवादों को निपटाने के लिए एक मंच प्रदान करता है। राष्ट्रीय लोक अदालतों द्वारा निपटाए गए मामलों में मोटर दुर्घटना के दावों, बैंक वसूली, बिजली और टेलीफोन बिल और पारिवारिक विवादों से संबंधित मामले शामिल हैं।

राष्ट्रीय लोक अदालतों का एक प्रमुख लाभ यह है कि वे उन विवादों को घंटों या दिनों में हल करने में सक्षम हैं, जिन्हें पारंपरिक अदालतों में हल करने के लिए वर्षों लग सकते हैं। इससे न्यायपालिका पर बोझ काफी कम हो जाता है और लंबित मामलों की संख्या कम करने में मदद मिलती है। इसके अलावा, राष्ट्रीय लोक अदालत में निपटारा कानूनी रूप से बाध्यकारी है जिससे यह पारंपरिक मुकदमेबाजी का एक वास्तविक विकल्प बन जाता है।

राष्ट्रीय लोक अदालतों का एक अन्य महत्त्वपूर्ण लाभ यह है कि वे नागरिकों के लिए अधिक सुलभ और किफायती हैं, विशेष रूप से कम आय वाले लोगों के लिए। बिना किसी अदालती शुल्क या कानूनी प्रतिनिधित्व की आवश्यकता के साथ राष्ट्रीय लोक अदालतें लोगों को पारंपरिक मुकदमेबाजी से जुड़े महत्त्वपूर्ण खर्चों को किए बिना विवादों को हल करने का अवसर प्रदान करती हैं।

इन फायदों के बावजूद राष्ट्रीय लोक अदालतों को उन लोगों की कुछ आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है जो मानते हैं कि जटिल मामलों को संभालने के लिए उनके पास आवश्यक कानूनी विशेषज्ञता का अभाव है। हालांकि, समर्थकों का तर्क है कि बड़ी संख्या में लंबित मामले ऐसे हैं जिन्हें बातचीत और समझौते के जरिए भी हल किया जा सकता है और राष्ट्रीय लोक अदालतें इन मामलों को संभालने के लिए अच्छी तरह से सुसज्जित हैं।

राष्ट्रीय लोक अदालतें भारत में न्याय तक पहुंच में सुधार की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम हैं। पारंपरिक मुकदमों के लिए एक त्वरित और अधिक किफायती विकल्प प्रदान करके वे न्यायपालिका पर बोझ कम करने और सभी नागरिकों के लिए कानूनी सुविधा और न्याय को अधिक सुलभ बनाने में मदद कर रहे हैं। निरंतर समर्थन और निवेश के साथ राष्ट्रीय लोक अदालतों में भारतीय न्यायिक प्रणाली की प्रभावशीलता और दक्षता में सुधार लाने में एक प्रमुख भूमिका निभाने की क्षमता है।

चीन और संयुक्त राज्य अमेरका के बीच उत्पन्न तनाव ने एक बार फिर से दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। दरअसल, पिछले कुछ वर्षों से दोनों देशों के बीच दक्षिण चीन सागर, ताइवान, व्यापार, मानवाधिकार एवं हांगकांग के मुद्दे को लेकर लगातार तनाव देखने को मिल रहा है। इसमें एक नया अध्याय तब जुड़ गया जब एक चीनी गुब्बारा अमेरिका के वायुक्षेत्र में विचरण करते हुए मोंटाना में सामरिक रूप से संवेदनशील रक्षा अड्डे के पास जा पहुंचा। इसके बाद बाइडेन सरकार ने जासूसी एवं उसके वायु क्षेत्र के अतिक्रमण का आरोप लगाकर गुब्बारे को मार गिराया।

हालांकि चीन ने इस गुब्बारे को वैज्ञानिक अनुसंधान एवं मौसम की निगरानी करने वाला बताते हुए अमेरिका पर ज्यादा कड़ी कार्रवाई करने का आरोप लगाया है। साथ ही चीन की सरकार ने बदला लेने की धमकी भी दे डाली है। इन परिस्थितियों में दोनों देशों के बीच संबंधों में तनाव दूर होने के आसार फिलहाल नहीं दिखते हैं। इसकी दूसरी वजह यह बताई जा रही है कि अमेरिका में 2024 में राष्ट्रपति पद के चुनाव होने हैं और अमेरिकी की भू-राजनीति में चीन एक अहम मुद्दा रहने वाला है।

बहरहाल, चीन या अमेरिका को इस प्रतिस्पर्धा में चाहे जो भी नफा या नुकसान हो, दुनिया के सामने इससे न सिर्फ तीसरे विश्वयुद्ध शुरू होने का खतरा बना रहता है बल्कि व्यापार बाधित होने से आपूर्ति शृंंखला भी प्रभावित होती है। परिणामस्वरूप खाद्यान्न की कमी एवं महंगाई जैसे मुद्दों से आम आदमी को जूझना पड़ता है। बेहतर होता यदि दोनों देशों के राजनयिक उच्चस्तरीय कूटनीति का परिचय देते हुए रिश्तों में आई कड़वाहट को दूर करने का प्रयास करते।

यह कहना गलत नहीं होगा कि अमेरिका ने एफ 22 विमान और एआइएम 9 साइडबाइंडर मिसाइल का प्रयोग करके न सिर्फ चीन के जासूसी गुब्बारे को नष्ट किया, बल्कि उसे एक कठोर संदेश भी दिया है। आगे भारत और जापान जैसे देशों के साथ ऐसी हरकत करने से पहले चीन इस अंजाम के बारे में एक बार अवश्य सोचेगा।

जिस नियम-कानून के तहत किसी अपराधी को उसके अपराध की सजा दी जाती है या अपराध की आशंका में उसके विरुद्ध कार्रवाई होती है, जमानत पर छूटने या रिहाई से वे नियम कानून खत्म नहीं हो जाते हैं। हालांकि अपराधी को सजा से मुक्ति या रिहाई भी नियमों के तहत ही मिलती है। ऐसे में अगर अपराधी जेल से रिहाई या सजा मुक्ति के बाद आदर्श नागरिक का आचरण नहीं अपनाता है और बारंबार उस अपराध कर्म में लिप्त रहता है तो इसका मतलब है कि वह सामान्य अपराधी नहीं, बल्कि पेशेवर अपराधी है।

ऐसे अपराधियों से निपटने का पुलिसिया तौर-तरीका ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसे विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता है। आमतौर पर जेल से छूटा अपराधी और शातिर अपराधी बनकर निकलता है तो यह संपूर्ण व्यवस्था पर सवालिया निशान है। ऐसे अपराधियों के लिए जेल नहीं, स्कूल-कालेज की भांति सुधार केंद्र स्थापित करने की जरूरत है।




क्रेडिट : jansatta.com

Tags:    

Similar News

-->