अतीत का अनुभव
यात्री ने अपना हाथ पीछे किया और कैब चालक से बोला, 'मैं सिर्फ तुम्हारा ध्यान आकर्षित करने के लिए ऐसा कर रहा था.'
हम भीतर से कितने धनवान हैं, यही बात हमें वास्तविक रूप में संपदा संपन्न बताती है. इस संपदा का एक बड़ा भाग है हमारा निजी अनुभव. अगर हमने इस दुनिया में जन्म लिया है, तो केवल सीखने और अनुभव करने के लिए. अगर आप मुझसे कहते हैं कि स्वामी जी, मुझे प्रेम हो गया है, ऐसे में मैं क्या करूं? इस पर मैं आपसे कहूंगा कि आप प्रेम में कमजोर न होकर उसे अपनी शक्ति बनाने का प्रयास करें. प्रेम एक अनुभव है और आपको इसका अनुभव करना चाहिए. इसमें कुछ भी मुश्किल नहीं है. आइए, आपको एक कहानी सुनाते हैं. एक बार की बात है. कैब चलाते समय जब पीछे बैठे व्यक्ति ने ड्राइवर को पीठ पर थपथपाया, तब कैब ड्राइवर को बहुत गुस्सा आया. उसने क्रोध में आकर पीछे बैठे यात्री से बोला, 'जब मैं कैब चला रहा होता हूं, तो मुझे हाथ लगाने की जरूरत नहीं है.'
यात्री ने अपना हाथ पीछे किया और कैब चालक से बोला, 'मैं सिर्फ तुम्हारा ध्यान आकर्षित करने के लिए ऐसा कर रहा था.' ड्राइवर ने अपने क्रोध के लिए क्षमा मांगते हुए बोला, 'मुझे माफ कीजिए, आज कैब चलाने का मेरा पहला दिन है. बीस वर्ष से मैं वैन चला रहा था और उसमें शवों को उठाकर लेकर जाता था. इसलिए जब आपने मेरी पीठ थपथपायी, तो मैं झुंझला उठा.' अब आप ही बताइए, क्या ड्राइवर ने उस पीछे बैठे व्यक्ति की थपकी को महसूस किया? क्या उसने उसका अनुभव किया? नहीं. क्योंकि उसके अतीत के अनुभव से उसका वर्तमान दूषित था.
महात्मा बुद्ध कहते हैं कि हम वर्तमान के अनुभव को इतनी आसानी से अनुभव नहीं कर सकते, जब तक कि हमारा अतीत दूषित है. ऐसा बिल्कुल नहीं है कि हम उस समय नाश्ते की टेबल पर बैठकर अपने भोजन का आनंद ले रहे होते हैं, जिस समय हमारे दिमाग में ऑफिस की डांट का अनुभव चल रहा होता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अतीत का यह विचार हमारे वर्तमान के सुखद अनुभव को दूषित कर चुका होता है. जबकि सच तो यह है कि मनुष्य को अपने अतीत के अनुभवों में जीने की बजाय वर्तमान के क्षणों को सुखद अनुभवों में परिवर्तित करना चाहिए. - स्वामी सुखबोधनंद
प्रभात खबर के सौजन्य से सम्पादकीय