Parliament: संसद से उठते सवाल, कोविड से लेकर बेरोजगारी के उठे मुद्दे
आईटीआई में संकायों के 1.99 लाख मंजूर पदों में से 1.29 लाख पद खाली पड़े थे।
संसद का हर सत्र अपने साथ, खासकर राज्यों के बारे में कुछ न कुछ लेकर आता है। विश्लेषण करने पर सूचनाएं उन जवाबों का खुलासा करती हैं, जो अक्सर शासन की खामियों के बारे में सवाल पैदा करते हैं, जिनके साथ लोग जीने को मजबूर होते हैं। यहां संसद में पेश किए गए कुछ तथ्यों का जिक्र किया जा रहा है। चीन में संक्रमण बढ़ने के साथ कोविड पर फिर चर्चा शुरू हो गई है। स्वास्थ्य के लिए आवंटन वर्ष 2017-18 के 47,353 करोड़ रुपये से बढ़कर 2022-23 में 83,000 करोड़ रुपये हो गया है।
इसके अलावा स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे के लिए वित्त आयोग ने स्थानीय निकायों को 70,051 करोड़ रुपये का अनुदान दिया है। हालांकि धन के आवंटन ने स्वास्थ्यकर्मियों की कमी को दूर नहीं किया है। केंद्र द्वारा प्रबंधित देश भर के 11 प्रमुख अस्पतालों और संस्थानों में डॉक्टरों के स्वीकृत 74,813 पदों में से 30,512 पद रिक्त हैं, जो ज्यादातर दिल्ली के बाहर नए एम्स अस्पतालों में हैं। भारत की मौजूदा 1.4 अरब की आबादी के लिए 13,08,009 एलोपैथिक डॉक्टर (तथा 5.6 लाख आयुष डॉक्टर) हैं और प्रति 1,000 लोग पर दो नर्सें हैं। स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच को प्रभावित करने वाली क्षमता में कमी ग्रामीण भारत में सबसे अधिक है। जिला अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों के 18,900 से अधिक पद खाली हैं। इसके अलावा पैरामेडिक्स, फार्मासिस्ट और टेक्निशियन के पद भी खाली हैं। प्राथमिक केंद्रों को कल्याण केंद्रों में बदलने के वादे पर अब भी काम चल रहा है।
भारत के राजनीतिक आख्यान में बेरोजगारी के मुद्दे पर निरंतर बहस चलती रहती है। बहस के बावजूद भारत अब भी रिक्त पदों और नौकरियों की आवश्यकता के विरोधाभासी सह-अस्तित्व का गवाह बना हुआ है। पे रिसर्च यूनिट की एक रिपोर्ट के हवाले से सरकार ने खुलासा किया कि केंद्र सरकार के विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) में 9.79 लाख पद खाली पड़े हैं-रक्षा, गृह, रेलवे, डाक और राजस्व मंत्रालयों में पांच लाख से अधिक रिक्त पद हैं। क्षमता में अंतर प्रक्रियाओं और परिणामों में, नीति निर्माण और सरकारी स्तरों पर इसके कार्यान्वयन में राज्य सरकारों में अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। इसी के चलते विगत अक्तूबर में प्रधानमंत्री ने 18 महीनों में 10 लाख लोगों की भर्ती के लिए रोजगार मेला शुरू किया।
लेकिन इस लक्ष्य को व्यवस्थागत उदासीनता ने चुनौती दी है। सवालों और सर्कुलरों के बावजूद पिछले पांच वर्षों में केंद्र सरकार ने 3.77 लाख पदों पर भर्तियां की हैं, यानी मोटे तौर पर एक साल में 62,000। जैसा कि सबको मालूम है, महामारी के दौरान लाखों बच्चे दो साल तक स्कूल नहीं जा पाए। पिछले हफ्ते सरकार ने संसद को बताया कि वर्ष 2020-21 और 2021-22 के बीच 20,000 से अधिक स्कूल बंद हो गए हैं और भारतीय स्कूलों में शिक्षकों की संख्या में 1.89 लाख की गिरावट आई है। इसका पहले से ही खराब शैक्षणिक व्यवस्था पर प्रभाव पड़ना लाजिमी है।
बढ़ती अर्थव्यवस्था को कुशल लोगों की जरूरत है। किसी भी कौशल विकास कार्यक्रम की सफलता सफल प्लेसमेंट (रोजगार) पर निर्भर करती है। इसी हफ्ते श्रम मंत्रालय की संसद की स्थायी समिति के एक संक्षिप्त विवरण के अनुसार, 30 जून, 2022 तक पीएम कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई)-3 के तहत प्रशिक्षित 3.99 लाख प्रमाणित उम्मीदवारों में से केवल 30,599 को ही नौकरी मिली। पीएमकेवीवाई के पिछले संस्करणों में 91.38 लाख प्रमाणित उम्मीदवारों में से मुश्किल से एक चौथाई या 21.32 लाख लोगों को रोजगार मिला था। इसके अलावा औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आईटीआई) में भी कौशल प्रदान किए जाते हैं। तथ्य यह है कि इन आईआईटी में प्रशिक्षण का कार्य संकायों की कमी से प्रभावित होता है। श्रम मंत्रालय की नीति और कार्यान्वयन की देख-रेख करने वाली समिति ने पाया कि मई, 2022 तक देश में आईटीआई में संकायों के 1.99 लाख मंजूर पदों में से 1.29 लाख पद खाली पड़े थे।
सोर्स: अमर उजाला