Article: संजय सोंधी , उप सचिव , भूमि एवं भवन विभाग , दिल्ली सरकार | खेल एक ऐसी आनंददायक क्रिया का नाम हैं जिसे बालक से लेकर वृद्ध तक सभी करते हैं l विकलांग और सकलांग सभी लोग खेलना पसंद करते हैं l लगभग 60 दशक पूर्व तक भारत के विकलांग बालकों व व्यक्तियों का खेलना घर-आँगन व गलियों तक ही सीमित था l 1960 के दशक में जब भारत में सामाजिक समावेशन दौर का आगाज़ हो रहा था l उसी समय में ये संभावना भी उभर कर सामने आई कि विकलांग व्यक्ति घर के आँगन व गलियों के दायरों से बाहर आकर खेल सकते हैं l
भारत ने पैरालिम्पिक खेलों की औपचारिक शुरुआत 1968 में इजरायल की राजधानी तेल अबीव में आयोजित पैरालिम्पिक खेलों में सहभागिता के साथ की थी l भारत की ओर से पैरालिम्पिक के प्रथम चरण में कुल दस खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया था l हालांकि इस प्रयास में भारत को कोई पदक नहीं मिल पाया था तथापि ये भारत के विकलांग व्यक्तियों/खिलाड़ियों के लिए अवसरों की एक नई दुनिया में आने और बस जाने का आगाज़ था l जर्मनी में आयोजित 1972 के पैरालिम्पिक खेलों में भारत के खिलाड़ी को प्रथम पैरालिम्पिक पदक मिला l इसी के साथ विकलांग व्यक्तियों के समूह के मध्य यह भाव भी पल्लवित हुआ कि वो पेशेवर खिलाड़ी के रूप राजकीय, राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खेलों में भाग ले सकते हैं l
वर्ष 1994 में भारत सरकार ने विकलांगों के खेलों को प्रोत्साहन देने के लिए भारतीय पैरालिम्पिक कमेटी का गठन किया l
‘खेलों इंडिया’ व ‘लक्षित ओलंपिक पोडियम योजना’ के माध्यम से भारत सरकार ने भारतीय खिलाड़ियों को पैरालिम्पिक खेलों की तैयारी करने के लिए आवश्यक व उचित सहायता प्रदान की l भारत सरकार के इस सुनियोजित और संगठित प्रयास से पेरिस पैरालिम्पिक खेल -2024 में भारतीय विकलांग खिलाडियों ने स्वर्णिम इतिहास रच दिया l उन्होंने कुल 29 पदक जीते जिनमें सात स्वर्ण पदक, नौ चांदी के तथा तेरह कांस्य पदक शामिल हैं l भारत में उनके प्रदर्शन ने सामान्य खिलाड़ियों के प्रदर्शन को पीछे छोड़ दिया हैं l इस ऐतिहासिक प्रदर्शन ने भारत सरकार और समाज दोनों को ये पुरजोर संदेश दिया हैं कि विकलांग बालकों/खिलाड़ियों को उचित समय पर संसाधन, प्रशिक्षण दे दिया जाए तो ये खिलाड़ी भविष्य में अपने प्रदर्शन को चरम तक ले जाने में सक्षम हैं l जो उनके लिए तो उपलब्धि होगी ही परिवार व राष्ट्र के लिए भी गौरव और विकास की राह के सृज़न में सहायक होगा l
विकलांगता एक अभिशाप हैं, बेचारगी हैं, पीड़ा हैं -जैसे कथनों और पूर्वाग्रहों की धज्जियाँ उड़ाते मेरे विकलांग साथी समाज में जीवन जीने की नवीन शैलियों का निर्माण कर रहे हैं l अगर हम ये कहे कि खेल के क्षेत्र में इनके द्वारा किए गए प्रयासों से समाज में एक स्थायी प्रकार के समावेशन भरे वातावरण का निर्माण हो रहा है तो ये कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी l एक आत्मविश्वास और उपलब्धियों भरा जीवन जी रहे हैं l विकलांग खिलाड़ियों की बढ़ती उपलब्धियों के साथ परिवार व समाज में उनके लिए स्वीकार्यता के भाव का विकास हुआ हैं l भारत में पैरालिम्पिक खेलों की राह बहुत सहज़ भी नहीं हैं l इसकी राह में अनेक मुश्किलें हैं यथा – वित्तीय ससाधनों का अभाव, खेलने के स्थानों (पार्क व स्टेडियम आदि) में विकलांग व्यक्तियों के लिए आवश्यक सुविधाओं का अभाव, खेलों के संबंध में आवश्यक जानकारियों का खिलाड़ियों तक न पहुँच पाना, सूचनाओं का समय पर न पहुँच पाना, अभिभावकों व स्वयं विकलांग व्यक्तियों में खेलो के प्रति जागरूकता का अभाव आदि l यहाँ एक ओर समस्या गंभीर रूप से उभर रही हैं – स्वस्थ व्यक्तियों का विकलांगता के झूठे प्रमाणपत्र हासिल करके विकलांग व्यक्तियों के अवसरों को व्यक्तिगत स्वार्थपूर्ति में उपयोग करना l बेशक पैरालिम्पिक खेलों की राह में कितनी भी मुश्किलें हो फिर भी इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि इन खेलों के माध्यम से विकलांग व्यक्तियों ने मानसिक व शारीरिक फिटनेस के साथ सफलताओं के नए प्रतिमान गढ़े हैं l
मैं प्रबुद्ध पाठकों को बता दू कि सामान्य ओलम्पिक खेलों में जितने खेल शामिल किए गए हैं, लगभग वह सभी खेल पैरालिम्पिक खेलों में भी शामिल किए गए हैं l अत: हमारी सभी विकलांग साथियों, उनके अभिभावकों व अध्यापकों से पुरजोर अनुरोध हैं कि अपनी शक्तियों को पहचाने और खुद को जीवन में आगे बढ़ने के नए रास्ते दे l