विकास के समांतर
पहले नोटबंदी, उसके बाद जीएसटी, फिर कोरोना और अब लगातार स्थिर बना यूक्रेन-रूस युद्ध ने विश्व को आर्थिक स्तर पर गहरी और एक लंबी चोट पहुंचाई है, जिससे अभी तक वैश्विक अर्थव्यवस्था छुटकारा नहीं पा पा सकी है
Written by जनसत्ता: पहले नोटबंदी, उसके बाद जीएसटी, फिर कोरोना और अब लगातार स्थिर बना यूक्रेन-रूस युद्ध ने विश्व को आर्थिक स्तर पर गहरी और एक लंबी चोट पहुंचाई है, जिससे अभी तक वैश्विक अर्थव्यवस्था छुटकारा नहीं पा पा सकी है और लगातार वह जूझ रही है पटरी पर आने के लिए। हाल ही में आइएमएफ ने संकेत दिए हैं कि 2023 में वैश्विक मंदी आने वाली है और इससे भारत भी अछूता नहीं रहेगा। लगातार भारत की आर्थिक विकास दर को घटा रहा है। इससे मालूम चलता है कि आने समय देश के लिए कठिन होने वाला है, भले ही हमारे राजनीतिक नेता अच्छी-अच्छी बातें कर रहे हों। लेकिन वास्तविकता बिल्कुल अलग है।
यों भी, अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संस्थाओं के आंकड़े और सरकार के दावों में बिल्कुल नहीं पटती है, क्योंकि हाल ही में जापान की एक आर्थिक फार्म न्यूमोरा, जिसने हाल ही में कहा है कि भारत के आर्थिक विकास में तेजी से गिरावट देखने को मिल सकती है। साथ ही न्यूमोरा ने कहा है कि चालू वित्त वर्ष 2022 -23 में भारत की विकास दर आरबीआइ के अनुसार सात फीसद तक रह सकती है, लेकिन वित्त वर्ष 2023-24 में विकास दर में तेजी से गिरावट आएगी और यह 5.2 फीसद रह जाएगी जो कहीं न कहीं सरकारों के लिए एक सिर दर्द बनने वाली है।
इसीलिए सरकार ने कहा है कि दिसंबर में आरबीआइ के होने वाली मौद्रिक कमेटी की बैठक में निश्चित तौर पर रेपो रेट में वृद्धि की संभावना है। इसके अलावा, आइएमएफ ने भी कहा है कि लोगो की रियल टाइम आमदनी कट रही है और रोजमर्रा की चीजों की कीमतों में लगातार वृद्धि हो रही है।
गौरतलब है कि आइएमएफ ने हाल ही में चालू वित्त वर्ष यानी 2022-23 के लिए विकास दर को घटा दिया है। जून में आइएमएफ ने अनुमान लगाया था कि भारत की विकास दर चालू वित्त वर्ष में 7.5 होगी, जिसे अब 6.5 फीसद कर दिया है। यानी सीधा-सीधा एक फीसदी घटा दिया है जो अर्थव्यवस्था की दुनिया में बड़ा प्रतिशत होता है।
हमारा लगातार कमजोर होता रुपया, पुरजोर महंगाई, चरम पर पहुंचती बेरोजगारी, इसके अलावा मार्च तक आरबीआई के पास पंद्रह महीने का विदेशी मुद्रा भंडार था जो अब केवल नौ महीने का बचा है। ये सब आंकड़े आने वाले समय में त्रासदी पैदा कर सकते है।
इसलिए सरकार से निवेदन है कि वह विशेषज्ञों की सलाह को नजरअंदाज न करें, क्योंकि इनका कहना है कि इस बार की मंदी में कीमते बढ़ेंगी, जिसे अर्थशास्त्र की भाषा में उन्हें अपनी नीतियों में प्राथमिकता दें और आने वाली इस वैश्विक मंदी से कम से कम क्षति होने दें और ज्यादा से ज्यादा आमजन को इससे बचाएं।