पाकिस्तान: क्या आज होगी भारत के साथ दोस्ती की नई शुरूआत?

आज रविवार है जो सिर्फ़ पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के लिये ही नहीं बल्कि भारत के लिहाज़ से भी अहम है

Update: 2022-04-03 13:58 GMT

नरेन्द्र भल्ला

आज रविवार है जो सिर्फ़ पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के लिये ही नहीं बल्कि भारत के लिहाज़ से भी अहम है, क्योंकि आज ही इस इस्लामिक मुल्क की नेशनल असेंबली में चुनकर आये नुमाइंदे ये तय करेंगे कि क्रिकेट की दुनिया से सियासत में कूदे इमरान खान की कुर्सी बचेगी या फिर वे बेइज्जती वाली ज़लालत झेलते हुए संसद से रुखसत हो जायेंगे. हालांकि नंबरों का गणित उनके खिलाफ है और माना जा रहा है कि उनकी सरकार की विदाई होना तय है. लेकिन अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग होने से महज़ चंद घंटे पहले ही लंदन में एक अलग सियासी ड्रामा हो गया है,जिसमें इमरान सरकार की साजिश होने के आरोप लग रहे हैं. दरअसल,लंदन में रह रहे पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ पर शनिवार की रात कथित रुप से जानलेवा हमला होने की खबर आई है. अलबत्ता उसमें नवाज़ को तो कोई नुकसान नहीं हुआ लेकिन उनके एक सुरक्षाकर्मी के घायल होने की खबर है. इसके बाद पाकिस्तान की विपक्षी पार्टियों का पारा तो मानो सातवें आसमान पर जा पहुंचा है.
नवाज की बेटी और पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) की उपाध्यक्ष मरियम नवाज़ तो इतनी आगबबूला हो गई कि उन्होंने सीधे पीएम इमरान खान की गिरफ्तारी की मांग करते हुए वहां की सियासत में एक नया मोड़ ला दिया है. हालांकि लंदन पुलिस ने इस हमले में शामिल किसी आरोपी को देर रात तक गिरफ्तार नहीं किया था लेकिन इसमें सियासत का तड़का जरुर लग गया है, क्योंकि इसमें इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ (पीटीआई) के किसी कार्यकर्ता के शामिल होने का आरोप लगाया जा रहा है.
इसीलिये मरियम नवाज शरीफ ने हमले के फौरन बाद कह दिया कि इमरान खान को 'उकसाने और देशद्रोह' के आरोप में गिरफ्तार किया जाना चाहिए. इसे लेकर मरियम ने ट्वीट भी किया जिसमें उन्होंने लिखा कि "पीटीआई के जो लोग हिंसा का सहारा लेते हैं या कानून-व्यवस्था को खराब खराब करने वाली स्थिति पैदा करते हैं उन्हें गिरफ्तार किया जाना चाहिए. ऐसे लोगों को सलाखों के पीछे कर दिया जाना चाहिए. इमरान खान पर उकसाने, भड़काने और देशद्रोह करने के आरोप में मामला दर्ज किया जाना चाहिए. इंशा अल्लाह ऐसा जल्दा होगा. इनमें से किसी को भी बख्शा नहीं जाना चाहिए. "
लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि नवाज़ शरीफ ने इस कथित हमले की जानकारी खुद मीडिया को नही दी'बल्कि पाकिस्तान के एक पत्रकार ने ही इसे अन्तराष्ट्रीय मीडिया की सुर्खी बनवा डाला. नवाज पर हुए हमले की जानकारी पाकिस्तान के फैक्ट फोकस मीडिया प्लेटफॉर्म के साथ काम करने वाले पाकिस्तानी पत्रकार अहमद नूरानी ने दी है. उन्होंने अपने एक ट्वीट में लिखा कि "लंदन में पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पर पीटीआई के एक कार्यकर्ता ने हमला किया है. पाकिस्तान में पीटीआई के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए, क्योंकि अब इस पार्टी ने सारी हदें पार कर दी हैं. शारीरिक हिंसा को कभी माफ नहीं किया जा सकता. पीटीआई को अब एक उदाहरण बनाया जाना चाहिए. "
इमरान की कुर्सी रहे या न रहे,उसका फैसला तो संसद में होने वाली वोटिंग के जरिये ही होगा लेकिन पाक पत्रकार के इस ट्वीट की भाषा पर कोई भी गौर करेगा,तो वह यही नतीजा निकालेगा कि वे एक निष्पक्ष पत्रकार नहीं बल्कि बायस्ड यानी अपने कथित पूर्वग्रह में जकड़े हुए पत्रकार हैं, जो इमरान सरकार के खिलाफ हैं लेकिन विपक्ष के साथ हैं. खैर, भारत समेत हर देश में नामी पत्रकार भी किसी खास विचारधारा के समर्थक होते रहे हैं लेकिन वे खुलकर ये बताने से कभी कतराते नहीं कि वे किस राजनीतिक दल की विचारधारा के समर्थक हैं. लेकिन ऐसे जितने भी महारथी आज भी ये बताने से कतराते हैं,तो सोशल मीडिया पर लिखी गई कोई पोस्ट या एक ट्वीट ही उनकी पूरी पोल खोलकर रख देता है. जैसा कि पाकिस्तान के इन साहिबान ने कर दिखाया.
बहरहाल,सवाल ये है कि इमरान खान के कुर्सी से विदा हो जाने के बाद कौन संभालेगा हुकूमत और उसमें वहां की सेना का कितना बड़ा रोल रहेगा? सबसे बड़ी संभावना ये दिख रही है कि पीएमएल-एन के नेता शाहबाज शरीफ मुल्क के अगले वज़ीरे-आज़म बन सकते हैं क्योंकि संयुक्त विपक्ष ने उनके नाम पर अपनी मुहर पहले दिन से ही लगा रखी है. वे पूर्व पीएम नवाज शरीफ के भाई हैं. बेशक नवाज़ शरीफ के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेहद अच्छे रिश्ते रहे हैं और बताने वाले तो ये भी बताते हैं कि उन रिश्तों में आज भी कोई खटास नहीं आई है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि शाहबाज़ शरीफ के पीएम बन जाने के बाद क्या पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई भारत में आतंकियों की सप्लाई करना बंद कर देगी? वहां की सेना और आईएसआई कभी ये चाहेगी कि शाहबाज़ शरीफ और नरेंद्र मोदी के रिश्ते इतने मजबूत हो जाएं कि दोनों एक ही मेज़ पर बैठकर लाहौरी बिरयानी और गुजराती ढोकले का स्वाद चख सकें. सब जानते हैं कि पीएम मोदी शुद्ध शाकाहारी हैं लेकिन जिन लोगों ने लाहौर या रावलपिंडी की ज़ाफ़रान की खुशबू से महकती वेज बिरयानी का जायका लिया है,वे आज भी उसके आगे नॉनवेज बिरयानी को फीका ही समझते हैं.
सियासत से निकली बात खाने की मेज पर पहुंच तो गई लेकिन हक़ीक़त ये भी है कि दुनिया के तमाम रिश्तों को दोस्ती या दुश्मनी में बदलने का सारा दारोमदार इस मेज का ही होता है,फिर भले ही वो निजी संबंधों को निभाने की बात हो या दो मुल्कों में दोस्ती के लिए हाथ मिलाने का मसला हो. पिछली कई सदियों के इतिहास पर अगर गौर करेंगे,तो ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि खाने की मेज ही एक -दूसरे को करीब लाने में अपना सबसे अहम रोल निभाती रही है और आज भी निभा रही है. लेकिन यहां बड़ा सवाल ये है कि अगर आज इमरान खान चले गए और कल शाहबाज़ शरीफ उस मुल्क के नए वज़ीरे आज़म बन भी गए,तो क्या भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में पनपी तल्खी खत्म हो जाएगी? दोनों ही देशों के तकरीबन सभी राजनीतिक विश्लेषक इसका जवाब 'ना' में देते हुए कहते हैं कि जब तक पाकिस्तान में सत्ता-बनाने और बिगाड़ने के खेल में वहां की सेना का दखल रहेगा,तब तक ऐसा सोचना ही दिन में तारे देखने जैसा है!
इसलिये भारत से दोस्ती की एक नई मिसाल कायम करने के लिए शाहबाज़ को सेना के साये से खुद को आज़ाद करने की सबसे बड़ी चुनौती होगी. देखना ये है कि वे किसे ज्यादा तवज्जो देते हैं-सेना की गुलामी पसंद करते हैं या फिर पाकिस्तान के अवाम को बदहाली से बाहर निकालने के लिए उदारवादी इस्लामियत की एक नई इबारत लिखते हैं?

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