परिहास का परिदृश्य

Update: 2024-12-16 11:22 GMT
Vijay Garg:  हास्य हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। यह मानवीय संवेदनाओं की सर्वश्रेष्ठ अनुभूतियों में से एक उत्कृष्ट अनुभूति है, जो किसी भी स्वस्थ मन से हंसने वाले व्यक्ति को एक अलग तरह की ऊर्जा देता है । इस लिहाज से शायद इसे अन्य ऊर्जाओं से भिन्न कहा जा सकता है, क्योंकि यह हम मनुष्यों के समाज को मानवीयता का एक और गुण प्रदान करता है । यों हास्य वह धारा है, जो कभी मजाक, कभी व्यंग्य, कभी मुस्कान, तो कभी हल्की-फुल्की बातों का हिस्सा होता है। अगर दर्ज दस्तावेजों या गाथाओं के संदर्भ से इसे समझने की कोशिश करें तो इसकी अपनी एक प्रकृति रही है। हम सभी को पता है कि चाहे बीरबल हो या तेनालीराम या फिर चार्ली चैपलिन और महमूद तक सभी हास्य जीवन के अनोखे पात्र रहे हैं । इनके बारे में पढ़ कर, इन्हें किताबों या फिल्मों में देख कर अनायास ही हमारे होठों पर मुस्कान आ जाती है। साहित्य के अंतर्गत यह काका हाथरसी से लेकर आज के कई युवा कवियों में भी हम इसकी लोकप्रियता को देख सकते हैं। दरअसल, यह एक जानी- मानी विधा है, हमारा संसार है और जीवन को आनंद देने का जरिया भी है। गंभीरता का मुखौटा ओढ़कर इससे बचकर निकलने वालों का जीवन नीरज और स्वादहीन बन जाता है। जैसे रसगुल्ले के लिए चाशनी जरूरी है, वैसे ही जीवन को सही तरीके से जीने के लिए हल्का-फुल्का, लेकिन स्वस्थ हंसी-मजाक होना जरूरी है। देखा जाए तो यह उम्मीद का वह दीया है जो लगातार प्रकाशित रहता है । स्वस्थ रहने के लिए भी हमारा हंसना जरूरी है, चाहे हम कितना भी कहें कि जीवन कोई फिल्म का हिस्सा नहीं है, इसे थोड़ा गंभीरता से लेना चाहिए। मगर ऐसा मानना अपने आप को सरलता से दूर ले जाने की तरह है। हमारे सहज मन को हंसी और खुशी की आवश्यकता है। अगर स्वास्थ्य संबंधी कोई परेशानी हो तो सबसे पहले हंसी-खुशी को अपने जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए। बड़ी से बड़ी बीमारियों का इलाज खुश होकर हंसने में छिपा है। खासकर तनाव का सर्वाधिक अच्छा उपचार तो हास्य ही है। कई जगहों पर हास्य को एक चिकित्सा के तरीके के तौर पर देखा जाता रहा है।
अगर हमें अपने जीवन में हास्य के बारे में दूर-दूर तक अता-पता नहीं है, तो यह हमारी कमी है। इसकी तलाश हमें ही करनी होगी। यह हमारे आसपास ही कहीं होती है। सवाल है कि हास-परिहास के लिए हमें क्या करना चाहिए। उसकी एक कला है और वह सीखने के लिए हमें सकारात्मक लोगों की संगत करनी होगी। दुख के क्षणों का समाधान करके सुख के दिनों की ओर बढ़ने वाले लोगों का साथ हमारे भीतर खुशी भर सकती है। तनाव को हास्य के सहारे दूर करने वाले लोग माहौल में कई बार जीवन भर देते हैं । ये अगले चरण हैं। इससे पहले हल्की- फुल्की किताबों को पढ़कर मनोरंजन करने और हास्य फिल्मों का मजा लेकर भी हम हंसने के पल चुरा सकते हैं। आजकल हर शहर में 'लाफ्टर क्लब' यानी हंसने-हंसाने वाले लोगों के जुटने की जगह होती हैं। उनका हिस्सा बनकर भी हम अपने जीवन में हंसी को शामिल कर सकते हैं। उदासी का दामन छोड़कर कुदरत की इस नियामत का सुख जीवन को एक अलग और सकारात्मक स्वरूप दे सकता है।
हालांकि इसका मतलब यह कतई नहीं है कि हर जगह हम अपनी हास्य- कला का प्रदर्शन करने लगें। जहां अचानक उपजी परिस्थितियों की वजह से दुख पहाड़ सा टूट पड़ा हो, वहां दुख को हास्य के सहारे दूर नहीं किया जा सकता। ऐसी जगहों और मौकों पर हंसना शुरू कर देना या हास्य में दुख का इलाज ढूंढ़ना संवेदनहीनता का ही परिचय माना जाएगा । किसी की मृत्यु से दुखी परिवार को हम तुरंत ही यह सलाह नहीं दे सकते कि हास्य से अपने दुख को कम कर लिया जाए। हास्य निश्चित रूप से खुशहाल जीवन का एक जरूरी हिस्सा है, मगर इसकी भी प्रासंगिकता होनी चाहिए। तभी इसका महत्त्व बना रह सकता है। जहां हंसने की आवश्यकता है, वहां हास्य का और जहां गंभीरता से किसी चीज का हल निकालने की जरूरत हो, वहां गंभीरता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। कहने का आशय यह है कि हम संतुलित जीवन जी सकते हैं, लेकिन जीवन के इस पक्ष को अपने साथ से गायब न होने दें। दुख को आने से हर बार रोका नहीं जा सकता, मगर उसका समाधान जरूर निकाला जा सकता है। जीवन प्रवहमान है। इस
में हम जिस पल दुखी होते हैं, उसी पल उस दुख के कम या दूर होने की इच्छा भी रखते हैं ।
बीतते वक्त के साथ जीवन में सहजता आती है और इस तरह हमारे चेहरे पर एक दिन हंसी सजने लगती है। इसका जीवन में बहुत अधिक महत्त्व है और इसका जीवन से गायब होना हमें निराशा की ओर ले जा सकता है। इसलिए हास्य की लगातार खोज करने की जरूरत है। हम तभी स्वस्थ और मस्त रह सकते हैं। वरना जिंदगी की आपा-धापी में बचा खुचा भी खत्म कर लेंगे। इसलिए कोशिश यही हो कि लोग खिलखिलाकर हंसने के मौके चुरा लें, कुदरत के करीब जाएं । फिर जो चमत्कार होगा, वह हमारी कल्पना से परे होगी । चेहरा चमकेगा, मित्र बनेंगे और परिवार के साथ खुशी का जीवन जी सकें, इसलिए खूब हंसे और जीवन को खुशहाल बनाएं।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब
Tags:    

Similar News

-->