पाकिस्तान : सियासी रस्साकशी के बाद बचेगी कुर्सी या जाएंगे इमरान?
सत्तारूढ़ पार्टी हिंसा को बढ़ावा दे और देश को अस्थिरता की ओर ले जाए, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ।'
आज जब अमर उजाला के पाठक पाकिस्तान से मेरा यह लेख पढ़ेंगे, तब पूरी दुनिया की निगाहें पाकिस्तान के संसद भवन की तरफ होंगी, जहां एकजुट विपक्ष अपनी ताकत बताने और 172 का जादुई आंकड़ा दिखाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव पेश करेगा। कुल 342 सदस्यों वाली नेशनल एसेंबली यानी निचले सदन में इमरान खान को अपनी सरकार बचाने के लिए 172 सांसदों का समर्थन चाहिए।
विपक्ष का दावा है कि उनकी, उनके सहयोगी दलों तथा सत्तारूढ़ पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) से नाता तोड़ने वाले सांसदों को संख्या इतनी है, जिससे अविश्वास प्रस्ताव आसानी से जीता जा सकता है और सदन के नेता इमरान खान को सत्ता से बाहर किया जा सकता है। विगत आठ मार्च को पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (पीपीपी) और पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) तथा दूसरी छोटी पार्टियों ने नेशनल एसेंबली के सचिवालय में अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया था।
पाकिस्तान की ताकतवर सेना पहले ही कह चुकी है कि वह इस मामले में तटस्थ रहेगी। सेना की तटस्थता का सुबूत यह भी है कि हाल ही में खैबर पख्तुनख्वा में स्थानीय निकाय के और पंजाब में एक जगह उपचुनाव हुए। दोनों ही जगह पीटीआई सत्ता में है। इन सभी सीटों पर विपक्ष की जीत हुई, और उसने नतीजे का यह कहते हुए स्वागत किया कि पहले की तरह इस बार सेना चुनावों में सरकार की मदद के लिए आगे नहीं आई। जब विपक्ष को यकीन हो गया कि इमरान खान की मदद के लिए सेना हस्तक्षेप नहीं करेगी, तभी उसने अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस भेजा।
फिर सत्तारूढ़ पीटीआई के कुछ सांसदों ने जब पाला बदलते हुए खुलेआम कहा कि वे विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन करेंगे, तब सैन्य प्रतिष्ठान ने उन्हें नहीं रोका। इस पर नाराज इमरान खान ने एक रैली में पूछा कि 'तटस्थता' क्या होती है। उन्होंने कहा कि हर आदमी को किसी पक्ष को चुनना पड़ता है। तटस्थ तो सिर्फ जानवर होते हैं। इमरान की इस टिप्पणी पर विपक्ष के अलावा आम लोगों ने भी तीखी प्रतिक्रिया जताई। कुछ सदस्यों द्वारा साथ छोड़े जाने से स्तब्ध इमरान खान ने अपनी सत्ता बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की शरण ली।
उन्होंने अदालत से खरीद-फरोख्त में शामिल बागी सांसदों के वोट न गिनने की अपील की है। उन्होंने अदालत से यह भी पूछा है कि अगर कोई सांसद पार्टी के खिलाफ वोट करता है, तो उसे पूरे जीवन के लिए राजनीति में भाग लेने के अयोग्य करार दिया जा सकता है या नहीं। यह दुखद है कि लंबे मार्शल लॉ से बाहर निकलने और लोकतांत्रिक सरकारों के गठन के बावजूद पाकिस्तान में आज तक चुनी हुई कोई भी सरकार पांच साल साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई है। यहां सबसे लंबी अवधि तक चली सरकार का कार्यकाल तीन साल से कुछ अधिक रहा है।
सिर्फ एक बार न्यायपालिका ने दखल देकर एक सत्तारूढ़ प्रधानमंत्री को पद से हटाया था। ज्यादातर मामलों में तो ताकतवर सैन्य जनरलों ने ही गैर सांविधानिक तरीके से चुनी हुई सरकारों को बेदखल किया। इस बार लगता है कि अविश्वास प्रस्ताव के जरिये इमरान खान को सत्ता से हटा दिया जाएगा, जबकि इससे पहले अविश्वास प्रस्ताव का दांव बेकार गया था। पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो को विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव के जरिये हटाना चाहता था। तब सैन्य प्रतिष्ठान और तत्कालीन राष्ट्रपति ने विपक्ष का समर्थन भी किया था, लेकिन बेनजीर सत्ता में बनी रही थीं।
मौजूदा प्रसंग में नेशनल एसेंबली के स्पीकर की भूमिका की आलोचना हो रही है। उनसे तटस्थता की उम्मीद थी, पर वह प्रधानमंत्री का खुलेआम समर्थन कर रहे हैं। आज बहुत कुछ उनके रुख पर भी निर्भर करेगा कि वोटिंग होगी या कार्यवाही रद्द कर वह अविश्वास प्रस्ताव पेश करने के लिए आगे की कोई नई तारीख तय करेंगे। पाकिस्तान में बहुतेरे लोगों का मानना है कि लोकप्रियतावाद की राजनीति ने लोकतंत्र और संसद को कमजोर किया है। इस बीच इमरान खान ने अपनी ताकत दिखाने के लिए अपने समर्थकों से 27 मार्च को इस्लामाबाद पहुंचने के लिए कहा है।
चूंकि इस्लामाबाद एक छोटा शहर है और यहां पुलिस बल की क्षमता भी सीमित है, ऐसे में, इमरान के हजारों समर्थकों ने अगर महत्वपूर्ण इमारतों को निशाना बनाना शुरू किया, तो गैर सांविधानिक ताकतों के उसमें शामिल होने की आशंका है। ऐसे दो उदाहरण हैं, जब पीटीआई समर्थकों, यहां तक कि पुलिस ने भी पार्लियामेंट लॉज पर हमला बोला, जहां सांसद और उनके परिजन रहते हैं। इसी तरह हाल ही में पीटीआई कार्यकर्ताओं के एक हुजूम ने सिंध हाउस पर हमला किया, जो सिंध सरकार की संपत्ति है।
विपक्ष ने भी इस्लामाबाद में एक विशाल रैली के आयोजन का एलान किया है। अगर दोनों रैलियों में शामिल लोग एक दूसरे को निशाना बनाएं, तो हालात बेहद खराब हो जाएंगे। लोग उम्मीद कर रहे हैं कि आज अविश्वास प्रस्ताव पर नेशनल एसेंबली में वोटिंग होगी और रैली आयोजित करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। लेकिन ऐसा होना मुश्किल लगता है। इमरान खान पाकिस्तान क्रिकेट टीम के कप्तान के तौर पर बेशक बहुत लोकप्रिय रहे हों, पर आज वह खेल भावना भुला चुके हैं और हारे हुए व्यक्ति जैसा बर्ताव कर रहे हैं।
इस्लामाबाद स्थित एक राजनीतिक टिप्पणीकार, जिन्होंने पीटीआई कार्यकर्ताओं की हिंसा देखी थी, कहते हैं, 'इस्लामाबाद स्थित सिंध हाउस में हिंसा और पाला बदलकर अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन करने वाले राजनेताओं पर हमला गंभीर है। प्रधानमंत्री ने अपने कार्यकर्ताओं द्वारा हिंसा फैलाने का जिस तरह समर्थन किया, वह हिंसा को बढ़ावा ही देगा। उनकी पार्टी के हित में यही है कि वह इस लड़ाई को संसद के अंदर लड़े, सड़क पर नहीं। सत्तारूढ़ पार्टी हिंसा को बढ़ावा दे और देश को अस्थिरता की ओर ले जाए, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ।'
सोर्स: अमर उजाला