अभी दोस्ती को तैयार नहीं पाकिस्तान: विवेक काटजू

इस साल फरवरी में भारत और पाकिस्तान की सेनाओं ने जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर संघर्ष विराम का जो निर्णय किया, उसके सौ दिन पूरे हो चुके हैं।

Update: 2021-06-13 04:27 GMT

इस साल फरवरी में भारत और पाकिस्तान की सेनाओं ने जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर संघर्ष विराम का जो निर्णय किया, उसके सौ दिन पूरे हो चुके हैं। इस दौरान सीमा पर शांति रही। इससे नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा के आसपास रहने वाले लोगों को बड़ी राहत मिली है। यकीनन यह एक बड़ा बदलाव है, लेकिन एक चीज बिल्कुल भी नहीं बदली और वह है पाकिस्तान द्वारा आतंकी ढांचे को कायम रखना। हमारे सेना प्रमुख जनरल मोहन मुकुंद नरवणे ने हाल में इस तथ्य को पुष्ट किया। यह यही दर्शाता है कि पाकिस्तान भारत के खिलाफ आतंक की अपनी नीति को अभी भी छोडऩे के लिए तैयार नहीं। वह उसके उपयोग को लेकर बस सही बिसात बिछाना चाहता है।

जबसे संघर्ष विराम हुआ है, तबसे पाकिस्तान में कुछ महत्वपूर्ण घटनाक्रम हुए हैैं और उनसे यही संकेत मिलते हैं कि पाकिस्तानी सैन्य और राजनीतिक वर्ग में भारत नीति को लेकर मतभेद बढ़ते जा रहे हैं। कश्मीर से जुड़े मसलों पर सैन्य और राजनीतिक, दोनों वर्गों का रवैया सख्त है। तथापि कुछ जनरल और नेता भारत के साथ रिश्तों को व्यावहारिक बनाने और व्यापार एवं संपर्क बहाली कर भविष्योन्मुखी दृष्टिकोण अपनाने के इच्छुक हैं, जबकि अन्य अपने पारंपरिक कड़े रवैये पर अड़े हैं। हालांकि सभी आतंकवाद को एक विकल्प के रूप में भी कायम रखना चाहते हैं, जबकि पाकिस्तान को इसकी बड़ी आॢथक कीमत चुकानी पड़ी है।
अपने तमाम प्रयासों के बावजूद पाकिस्तान अभी भी एक खतरनाक जगह के रूप में कुख्यात है। वह विदेशी निवेश आकॢषत करने में अक्षम बना हुआ है। इसमें चीन पाकिस्तान आॢथक गलियारे (सीपैक) के अंतर्गत चीन से होने वाला निवेश शामिल नहीं है। सीपैक में ग्वादर बंदरगाह का विकास भी शामिल है। भारत के लिए उसके व्यापक सामरिक निहितार्थ हैं। वहीं चीन के लिए सीपैक का आॢथक से कहीं अधिक सामरिक महत्व है। सीपैक पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन कुछ पाकिस्तानियों को लगातार इसकी चिंता सता रही है कि इससे चीन के प्रति उनकी कर्जदारी बढ़ती जाएगी। परिणामस्वरूप पाकिस्तान चीन का और बड़ा पिछलग्गू बनता जाएगा।
संघर्ष विराम के करीब महीने भर बाद पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर बाजवा ने एक महत्वपूर्ण नीतिगत भाषण मेें कहा था कि पाकिस्तान को अपनी सुरक्षा के लिए आॢथक पहलुओं पर भी विचार करना होगा। उनकी राय थी कि राष्ट्रीय सुरक्षा का दायरा सीमाओं की पारंपरिक सुरक्षा से परे जनता के कल्याण पर भी केंद्रित करना है और यह व्यापार सहित आॢथक सशक्तीकरण से संभव होगा। उन्होंने कनेक्टिविटी की महत्ता भी बताई। विश्लेषकों ने इसे भारत के साथ व्यापार एवं संपर्क बहाल करने में उनकी दिलचस्पी के तौर पर भी देखा। उल्लेखनीय है कि अगस्त 2019 में जम्मू कश्मीर में संवैधानिक बदलाव करने के बाद पाकिस्तान ने भारत के साथ व्यापारिक संबंध एक तरह से खत्म कर लिए। बाजवा के इस भाषण के तुरंत बाद खबरें आई थीं कि पाकिस्तान भारत से चीनी और कपास आयात करना चाहता है। वाणिज्य महकमा खुद ही संभालने वाले प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी, लेकिन उन्हेंं अपनी कैबिनेट में ही इस पर विरोध झेलना पड़ा, जिसकी अगुआई विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी के नेतृत्व में कुछ मंत्रियों ने की। पाकिस्तान की राजनीतिक वास्तविकताओं को देखते हुए इन नेताओं को कुछ जनरलों का समर्थन प्राप्त है, जो भारत को लेकर जनरल बाजवा के रवैया से कुपित हैं। उन्हेंं यह पाकिस्तान की पारंपरिक नीति से विचलन जैसा लगा। इस बीच मीडिया में कुछ बातें लीक हुईं। उनमें यही जिक्र था कि कश्मीर को लेकर पाकिस्तान भारत से क्या अपेक्षा रखता है। स्वाभाविक रूप से ये विचार कहीं अधिक उदारवादी जनरलों के रवैये से जुड़े थे।
तात्कालिक तौर पर पाकिस्तान यही चाहता है कि जम्मू कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल किया जाए। इस दौरान कुरैशी ने भी कुछ लचीलापन दिखाया। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 भले ही भारत का आंतरिक मामला हो, लेकिन कश्मीर एक विवादित मसला था। उनका यह बयान पाकिस्तान के रुख से उलट था। इसकी कड़ी प्रतिक्रिया हुई और कुरैशी को अपने बयान से पलटना पड़ा। तबसे इमरान खान और कुरैशी जम्मू कश्मीर में तथाकथित मानवाधिकारों की स्थिति को लेकर सख्त बयानबाजी में लगे हुए हैं। गत सप्ताह एक साक्षात्कार में इमरान खान ने व्यापार और संपर्क के अलावा वार्ता की गाड़ी को पटरी पर लाने की बात अगस्त 2019 के संवैधानिक कदमों को पलटने के साथ जोड़ी। वह वापस उसी रुख पर आ गए हैं जो पाकिस्तान ने अगस्त 2019 के बाद अपनाया था। बेहतर हो कि बाजवा और इमरान खान वास्तविकता को समझें, न कि शर्तें लादने का काम करें। उनके लिए आवश्यक है कि वह भारत के साथ पुराने अडिय़ल रवैया अपनाने पर आमादा लोगों पर नियंत्रण पाने के साथ ही आतंकी ढांचे का ध्वंस करें।
समस्या यह है कि पाकिस्तान की भारत नीति में पाकिस्तानी सेना की सियासत का भी घालमेल हो रहा है। पाकिस्तान के एक प्रख्यात टीवी पत्रकार हामिद मीर ने अपने एक साथी पत्रकार को पिटवाने के मामले में जनरलों पर आरोप लगाते हुए कहा कि भारत को लेकर फौज का रवैया नरम होता जा रहा है। मीर ने यह भी कहा कि ऐसा करके सेना पाकिस्तानी अवाम की इच्छा के विरुद्ध जाने के साथ ही उसके संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की नीतियों से भी विमुख हो रही है। जानकारों का मानना है कि मीर के निशाने पर जनरल फैज हामिद थे, जो खुफिया एजेंसी आइएसआइ के महानिदेशक हैं। ये विश्लेषक यह भी महसूस करते हैं कि मीर को सेना के ही कुछ जनरलों का वरदहस्त प्राप्त है, जो बाजवा के अगले वर्ष समाप्त हो रहे विस्तारित कार्यकाल के बाद फैज के अगले सेना प्रमुख बनने की संभावनाओं पर आघात करना चाहते हैं। जो भी हो, पाकिस्तान के घटनाक्रम पर भारत को कड़ी नजर रखनी होगी। उसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समक्ष अपना रुख दोहराना चाहिए कि वह पाकिस्तान से संबंध सुधारने का पक्षधर है, लेकिन तभी जब पाकिस्तान आतंकवाद का परित्याग करे। कुलमिलाकर पाकिस्तान में जारी खींचतान यही दर्शाती है कि वह भारत के साथ बेहतर संबंध बनाने की वास्तविक मंशा प्रकट करने वाला बुनियादी फैसला भी नहीं ले सका है, जो न केवल उसकी जनता, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए पूरे क्षेत्र के हित में होगा।


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