Pakistan Blast : पाकिस्तान-चीन को हजारों जख्म से लहूलुहान कर रहे हैं बलूच विद्रोही
इस साल फरवरी में बलूचिस्तान (Balochistan) के पंजगुर और नोशकी जिलों में दो फ्रंटियर कोर शिविरों पर 72 घंटे तक हमला चला था. हमले के दौरान बलूच विद्रोहियों के आत्मघाती हमलावरों वाले मजीद ब्रिगेड ने कथित तौर पर अपने नेताओं के साथ फोन पर बातचीत की क्लिप भेजी थी
प्रशांत सक्सेना
इस साल फरवरी में बलूचिस्तान (Balochistan) के पंजगुर और नोशकी जिलों में दो फ्रंटियर कोर शिविरों पर 72 घंटे तक हमला चला था. हमले के दौरान बलूच विद्रोहियों के आत्मघाती हमलावरों वाले मजीद ब्रिगेड ने कथित तौर पर अपने नेताओं के साथ फोन पर बातचीत की क्लिप भेजी थी. उन्होंने बताया था कि कैसे पाकिस्तानी सेना (Pakistani Army) उन्हें मारने के लिए शिविरों पर हवाई हमले कर रही थी और विद्रोहियों के कब्जे वाले इमारतों में प्रवेश करने के लिए बख्तरबंद वाहनों का इस्तेमाल कर रही थी. आखिरी सांस तक डटे रहने वाले बागियों ने यह भी बताया कि कैसे वे पाकिस्तान (Pakistan) के एसएसजी कमांडो को मारने में कामयाब रहे.
बलूच विद्रोह का मकसद है अपने लिए एक अलग देश बनाना. और ये विद्रोह उतना ही पुराना है जितना कि पाकिस्तान. 15 अगस्त, 1947 को जब पाकिस्तान ने अपनी आजादी का ऐलान किया था तो इसके करीबन सात महीने बाद 27 मार्च, 1948 को कलात-बलूचिस्तान की रियासत को पाकिस्तान में शामिल किया गया था. कलात को पाकिस्तान का अभिन्न अंग बनाने का मामला काफी जद्दोजहद भरा था और माना जाता है कि कलात के लोगों की इच्छा के खिलाफ जबरन उसे पाकिस्तान में मिला लिया गया था.
प्राकृतिक गैस, तेल, कोयला, तांबा, सल्फर, फ्लोराइड और सोने जैसे प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा सूबा होने के बावजूद सबसे कम विकसित है. बलूच राष्ट्रवादियों द्वारा ये विद्रोह 1948, 1958-59, 1962-63 और 1973-1977 में लड़ा गया है. मौजूदा सशस्त्र संघर्ष साल 2003 में शुरू हुआ. बलूच अलगाववादियों का तर्क है कि वे पाकिस्तान के बाकी हिस्सों के मुकाबले आर्थिक रूप से काफी पिछड़े और गरीब हैं.
CPEC और बगावत
2013 में जब चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) पर काम शुरू हुआ तो बलूच राष्ट्रवादियों को ये एहसास हुआ कि इस मेगा विकास प्रोजेक्ट में उनकी कोई हिस्सेदारी नहीं है. यह आर्थिक गलियारा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से गुजरते हुए ग्वादर बंदरगाह पर समाप्त होता है. उनकी ये आशंका तब हकीकत में बदल गई जब चीन ने परियोजना के लिए अपने इंजीनियरों को भेजा और सड़कों का निर्माण किया, लेकिन उन सड़कों पर स्थानीय बलूचियों को चलने से मना कर दिया गया. ताबूत में आखिरी कील चीन का वो फरमान था जिसके तहत दो साल पहले चीन ने बलूच मछुआरों से मछली पकड़ने का अधिकार भी छीन लिया.
"द डॉन" अखबार के मुताबिक, पिछले साल "ग्वादर को हक दो तहरीक" (ग्वादर के अधिकारों के लिए आंदोलन) के नेता मौलाना हिदायतुर रहमान ने कहा था कि सीपीईसी और बलूचिस्तान के संसाधन प्रांत के लोगों के हैं और किसी भी व्यक्ति को, चाहे वह कितना ही ताकतवर क्यों न हो, ये इजाजत नहीं दी जा सकती है कि वे यहां के लोगों को उनके वैध और कानूनी अधिकारों से वंचित करे.
बलूचिस्तान के ओरमारा में मछुआरों की एक बैठक में बोलते हुए मौलाना हिदायतुर रहमान ने कहा कि किसी को भी "समुद्री संसाधनों को लूटने की अनुमति नहीं दी जाएगी क्योंकि बलूचिस्तान के समुद्री जल से अपनी आजीविका कमाने का हक स्थानीय मछुआरों का है."
पाकिस्तानी अत्याचार
स्थानीय आबादी के खिलाफ पाकिस्तानी सेना के लगातार अत्याचार की वजह से बलूच विद्रोह एक बार फिर सिर उठाने लगा है. पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग द्वारा जारी 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार, 47,000 बलूच और लगभग 35,000 पश्तून 'लापता' थे. हालांकि आयोग ने यह भी जोड़ दिया कि ये संख्याएं विवादित हैं. जनवरी से अप्रैल 2021 के चार महीनों में पाकिस्तान के Commission Of Inquiry of Enforced Disappearances (COIED) को देश भर से 952 नई शिकायतें मिलीं. ये आंकड़े संघीय सरकार द्वारा इस मुद्दे को हल करने के दावों को झुठला ही रहे हैं. इन लापता व्यक्तियों के परिजनों ने पाकिस्तान और दुनिया भर में विरोध प्रदर्शन किया है.
बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट के संस्थापक और प्रमुख डॉक्टर अल्लाह नज़र बलूच ने कहा है कि बलूचिस्तान के लोग चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) का विरोध करते हैं, क्योंकि "चीन ग्वादर में अपना साम्राज्य बनाना और बढ़ाना चाहता है." बलूचिस्तान को 100 से अधिक खनिजों के लिए निशाने पर रखा जा रहा है. पाकिस्तान ने शोषण किया है और अब चीन की मदद से सोना, तांबा, यूरेनियम, चांदी और अन्य संसाधनों को लूट रहा है.
उन्होंने आगे कहा कि पाकिस्तानी सेना बलूचिस्तान के हजारों निवासियों को सीपीईसी रूट के आसपास से जबरन दूसरी जगहों पर स्थानांतरित करके सूबे के डेमोग्राफी में बदलाव ला रही है. डॉ. बलूच ने कहा, "यह अनुमान है कि ग्वादर में पांच लाख से अधिक चीनी बसे हुए हैं और तीन हजार एकड़ भूमि उन्हें कानूनी तौर पर आवंटित की गई है."
भारत का समर्थन महत्वपूर्ण
बलूचिस्तान में कई लोगों का कहना है कि भारत को भी उनका समर्थन करना चाहिए क्योंकि वे एक बड़े सांस्कृतिक भारत से संबंधित हैं. साथ ही पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर में भारत के संप्रभु अधिकारों का उल्लंघन कर सीपीईसी का निर्माण किया जा रहा है. कलात, खुजदार और मस्तुंग के लोग ज्यादातर ब्राहुई भाषा बोलते हैं जो कन्नड़, मलयालम और तमिल जैसी भारत की प्रमुख भाषाओं से काफी मिलती-जुलती है. बलूचिस्तान की आजादी की मांग करने वाली प्रमुख आवाजों में से एक ने कहा है कि वह भारत जैसे दोस्तों से संपर्क कर मदद मांगेगा.