सेना के विरोध में पाक नेताओं की हिम्मत

पड़ौसी होने के बावजूद पाकिस्तान व भारत के राजनीतिक हालात में जमीन-आसमान का अंतर है।

Update: 2020-10-23 03:56 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पड़ौसी होने के बावजूद पाकिस्तान व भारत के राजनीतिक हालात में जमीन-आसमान का अंतर है। भारत में जहां एक ओर बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान विपक्ष एकजुट नहीं हो पाता है वहीं पाकिस्तान में पूरे विपक्ष ने प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ अपनी जंग छेड़ दी है। वहां कोविड के प्रकोप के बावजूद सरकार विरोध बढ़ता जा रहा है। आए दिन विपक्षी दल सरकार को उखाड़ फेंकने की बात करते हुए रैलियां आयोजित कर रहे हैं। इस सिलसिले में पहली रैली अक्टूबर माह में गुजरावाला में हुई थी व दूसरी रैली कराची में आयोजित की गई।

अहम बात यह है कि पाकिस्तान में दो अहम विपक्षी दल पाकिस्तान मुस्लिम लीग (पीएमएल) नवाज व पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के साथ साथ मौलाना फजलुर रहमान की जमाते-उलेमा-ए-इस्लाम एक साथ सरकार विरोधी मंच पर आ गए हैं। उन्हें करीब 11 और राजनीतिक दलों का समर्थन मिल रहा है इनमें पख्तून व मिल्ली आवामी पार्टी, बलोच नेशनल पार्टी व पख्तून तहल्लूज मूवमेंट का भी समर्थन मिल रहा है।

पाकिस्तान में कोरोना से ही नहीं वहां के आर्थिक हालत भी खराब है। आम आदमी रोटियों के लिए तरस गया है। सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं। लोगों को खाने के लिए आटा तक हासिल करने के लिए लंबी लाइनें लगानी पड़ रही है। काम धंधे चौपट है। व्यापार एकदम ठप्प है। लोगों की मंहगाई के कारण कमर टूट रही है। विपक्षी दलों ने इस आंदोलन व गठबंधन का नाम पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) रखा है।

मजेदार बात है कि बिहार व जम्मू कश्मीर की तरह इस बार वहां चल रहे राजनीतिक अभियान की खासियत यह है कि उसका नेतृत्व युवा व नेताओं की दूसरी पीढ़ी कर रही है। पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की बेटी मरयम नवाज व पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो व पूर्व पाक राष्ट्रपति जरदारी का बेटा बिलावल भुट्टो सरकार के खिलाफ छेड़े गए अभियान में साथ आ गए हैं। मौलाना फजलूर चल रहे अभियानों में जयप्रकाश नारायण की भूमिका में आ गए हैं और वे इस अभियान के मुखिया बन गए हैं। पहले इस स्थिति को हासिल करने के लिए बिलावल भुट्टो व मरयम शरीफ के बीच में प्रतिस्पर्धा हो रही थी।

फजलुर रहमान को नेता बनाने का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ है कि वे पख्तून दलों को साथ लाने में कामयाब रहे वह इस आंदोलन को राष्ट्रीय पहचान मिली है। यही वजह है कि अब सरकार इस आंदोलन के पीछे दुश्मनों का हाथ होने का आरोप लगा रही हैं। अभियान में शामिल नेता इमरान खान पर आरेाप लगा रहे हैं कि वे चुनाव के जरिए चुने हुए नहीं बल्कि सेना द्वारा चुने गए नेता व प्रधानमंत्री है। इमरान खान का 27 माह का शासनकाल बहुत खराब माना जा रहा है। विश्व बैंक का मानना है कि पाकिस्तान की विकास दर बहुत ही ज्यादा खराब है। वह भारत की तरह ऋणात्मक हो रही है व मंहगाई 10.7 फीसदी है। इसका बुरा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है।

मजेदार बात यह है कि लंदन में अपना इलाज करवा रहे नवाज शरीफ तक खराब हालात के लिए पाक सेना को जिम्मेदार बता रहे हैं। उन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल की सजा हो गई थी वे इलाज के लिए जमानत पर छूट कर लंदन गए। वे पाकिस्तान की तमाम खराबियों व समस्या के लिए सेना के जनरल कमर बाजवा को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। उनका यहां तक कहना है कि आपसी सांठगांठ के जरिए उन्हें सत्ता से हरा कर जेल भेजा गया। अब तो सेना अपने आप में सरकार बन गई है। आज तक पंजाब का कोई नेता सेना की आलोचना करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था।

यहां यह याद दिलाना जरुरी हो जाता है कि पाक सेना के ज्यादातर जनरल पंजाब से ही होते है। पहले भी नवाज शरीफ का तख्ता पलट में सेना के तत्कालीन प्रमुख मुशर्रफ का हाथ था। वे इमरान खान को सेना का पिट्ठू कह रहे हैं। जैसे लंबे अरसे तक हमारे देश में हर समस्या के लिए पाकिस्तान को दोषी ठहराया जाता रहा था वैसे ही इमरान खान आज पाकिस्तान की खराब हालातों के लिए भारत की साजिश होने का आरोप लगे हैं। उनका आरोप है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी सरकार का तख्ता पलटने में लगे हुए हैं। मगर विपक्ष नरेंद्र मोदी को कश्मीर मुद्दे पर आलोचना करते हुए सांप्रदायिक तो बता रहा है मगर इमरान के इस आरोपों को गलत बता रहा है कि भारत उनका तख्ता पलटने की साजिश कर रहा है।

विपक्ष का आरोप है कि सेना व इमरान खान ने कश्मीर व कश्मीरी लोगों के मुद्दों पर भारत के साथ समझौता किया है वही कमर बाजवा व आईएसआई के प्रमुख ले. जनरल फैज हमीद ने पिछले दिनों विपक्षी नेताओं के साथ बैठक करके उन्हें चेतावनी दी थी कि वे लोग इस विवाद में सेना को न घसीटे वरना उन्हें बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। इस समय सेना व विपक्षी दलों के नेता दोनों ही एक दूसरे को आजमाते हुए इस बात का आकलन कर रहे हैं कि वे उन्हें कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं।

पाकिस्तान का इतिहास रहा है कि आज तक कभी किसी दल या नेता ने सेना की इतनी ज्यादा आलोचना कर उससे टकराव लेने की कोशिश नहीं की। जहां इमरान खान को सेना का पूरा समर्थन मिलता आया हैं वही उनके दल के अनेक नेता इस फिराक में है कि वे सेना का हाथ उन पर से हटते ही उनकी जगह कैसे ले क्योंकि इन नेताओं का मानना है कि इमरान खान अब सेना के लिए भार बनते जा रहे हैं। यहां यह याद दिलाना जरुरी हो जाता है कि पूरी दुनिया को यह पता है कि जब पाकिस्तान में आज चुनाव हुए तो बहुत पहले से ही यह कहा जाने लगा था कि कमर बाजवा इमरान खान को प्रधानमंत्री पद पर बैठाना चाहते हैं।

जनरल कमर बाजवा का भविष्य इमरान खान के भविष्य पर निर्भर करता है क्योंकि वे 2022 में रिटायर होंगे व इमरान खान कई बार उनका कार्यकाल बढ़ाते आए हैं। उन्हें यह डर है कि कहीं उनके जगह आने वाला प्रधानमंत्री मुशर्रफ की तरह उनका हाल न करें। इसलिए इमरान खान ने आईएसआई के प्रमुख ले. जनरल फैज हमीद पर डोरे डालने शुरु कर दिए है ताकि वे कमर बाजवा की जगह लेकर सेना पर अपना नियंत्रण बनाए रख सके। देखना यह है कि विपक्षी गठबंधन व सेना सरकार के अगले कदम क्या होते हैं।

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