जनता से रिश्ता वेबडेस्क। देश फिलहाल जिस महामारी के दौर से गुजर रहा है, उसमें सरकार से लेकर अस्पताल या क्लीनिक जैसे तमाम संस्थानों से यह उम्मीद की जाती है कि वे इस मसले पर अपने स्तर पर ईमानदारी से सहयोग करें, ताकि इससे पार पाया जा सके।
लेकिन यह अफसोसनाक है कि दिल्ली के निजी अस्पतालों में कोरोना से जुड़े नियम-कायदों की घोर अनदेखी हो रही है और कई मामलों में इसे कमाई करने का जरिया बना लिया गया है। यह सब पिछले कुछ महीनों से लगातार चल रहा है और शायद चलता रहता, अगर खुद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अपने स्तर पर इससे जुड़ी आशंकाओं और सावधानी के मद्देनजर एक सौ चौदह निजी अस्पतालों और क्लीनिकों में जाकर जांच नहीं की होती।
अपनी जांच रिपोर्ट में गृह मंत्रालय की टीम ने जो तथ्य उजागर किए हैं, उससे साफ है कि जिन अस्पतालों में महामारी की चपेट में आए लोग अपनी जान बचाने की भूख में जाते हैं, वहां उससे जुड़े नियम-कायदों का खयाल रखना जरूरी नहीं समझा जा रहा और जिन चीजों की जरूरत नहीं है, उसे भी मरीजों पर थोपा जा रहा है।
रिपोर्ट के मुताबिक निरीक्षण में यह पाया गया कि जिन कोरोना मरीजों को अस्पतालों में भर्ती कराया गया, उनका इलाज केंद्र सरकार की ओर से तय किए गए चिकित्सा निर्देशों के अनुसार नहीं किया जा रहा है, बल्कि अस्पताल अपनी ओर से बनाए गए नियमों पर काम कर रहे हैं।
यहां तक कि निर्धारित प्रोटोकॉल के पालन को लेकर भी वहां सख्ती नहीं दिख रही है। हैरानी की बात यह है कि कोरोना से जुड़े जिन नियम-कायदों को देश भर में अनिवार्य बनाया गया है और सार्वजनिक स्थानों पर उसके उल्लंघन के एवज लोगों को दंडित किया जा रहा है, उनसे जुर्माना वसूला जा रहा है, उन नियमों का खयाल रखना अस्पताल जैसी जगहों पर जरूरी नहीं समझा जा रहा है।
इसके क्या कारण हो सकते हैं? क्या अस्पताल प्रबंधन और वहां काम कर रहे चिकित्सकों को इन नियमों को दरकिनार करने के कारण संक्रमण के खतरे का अंदाजा नहीं है या फिर वे इसे गैर-महत्त्वपूर्ण मानते हैं? फिलहाल कोरोना के मरीजों के इलाज के लिए टीका का इंतजार किया जा रहा है, लेकिन तब तक के लिए जो प्रक्रिया निर्धारित की गई है, अस्पतालों में उस पर अमल को लेकर अपनी ओर से सजगता होनी चाहिए। लेकिन सावधानी के नाम पर जांच के मामले में जो अति-सक्रियता दिखाई जा रहा है, उसका आशय समझना मुश्किल है।
दरअसल, स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से निर्धारित नियम यह है कि भर्ती किए गए मामलों की केवल गंभीर श्रेणियों के मरीज को अस्पताल से छोड़ने के पहले उनका आरटी-पीसीआर जांच किया जाना अनिवार्य है। लेकिन गृह मंत्रालय की टीम की जांच में पाया गया कि ज्यादातर निजी अस्पतालों में छुट्टी देने से पहले सभी मरीजों की आरटी-पीसीआर जांच की जा रही है।
इसके अलावा, गंभीर मामलों के अलावा जिन रोगियों में मध्यम या हल्के कोविड-19 के लक्षण होते हैं, उन्हें छुट्टी दी जा सकती है और अगर उन्हें लगातार तीन दिनों तक बुखार न हो तो उन्हें आरटी-पीसीआर जांच की जरूरत नहीं होती है। लेकिन ऐसा लगता है कि डर और सावधानी के नाम पर निजी अस्पतालों ने कमाई को अपना मुख्य मकसद बना लिया है।
निजी अस्पतालों में पहले ही इलाज का खर्च इतना ज्यादा है, वहां बहुत सारे जरूरतमंद लोगों की पहुंच नहीं है। लेकिन अगर ऐसे संवेदनशील समय में भी निजी अस्पताल इलाज के दौरान निर्धारित नियम-कायदों की अनदेखी कर रहे हैं या फिर बेवजह जांच जैसी बाध्यताएं मरीजों या उनके परिजनों पर थोप रहे हैं, तो उसे कैसे देखा जाएगा!