हमारी नीति तटस्थता नहीं, मित्रता की है
मुझे प्रसन्नता है कि हम किसी भी गुट में सम्मिलित न होने वाली नीति पर कायम हैं।
जनता से रिश्ता वबेडेस्क | मुझे प्रसन्नता है कि हम किसी भी गुट में सम्मिलित न होने वाली नीति पर कायम हैं। मैंने तो कई बार कहा है कि हमारे जैसे लोकतंत्रीय देश में यह सबसे अच्छी नीति है। हम चाहते हैं कि संसार में शांति हो और उसके रास्ते की कठिनाइयों को हटाया जाए। आजकल हमारे पड़ोसियों के साथ संबंधों पर बातचीत चल रही है। चीन और पाकिस्तान की बात है। मेरा निवेदन यह है कि पाकिस्तान के साथ निपटने का केवल एक ही ढंग है कि भारत पर किए जाने वाले उसके हमलों को बंद कराया जाए। उसे वह ढंग बताया जाए, जिससे कोई राष्ट्र सभ्य बनकर भी रह सकता है।
...कश्मीर का प्रश्न बड़ा महत्वपूर्ण है और हमें इस मामले में बहुत सतर्क रहना चाहिए। यदि इस दिशा में हम तनिक भी शिथिल हुए, तो स्थिति बहुत ही भयावह हो जाएगी। पाकिस्तान संभव है कि 1947 वाली स्थिति पुन: पैदा करने की कोशिश करे और कहे कि वह कश्मीर में भारतीय अत्याचार से अपने धर्मभाइयों को मुक्त करने आया है। ...वास्तविकता यह है कि पाकिस्तान ने हमारी 40,000 वर्ग मील भूमि पर कब्जा कर रखा है। गत 12 वर्षों में एक दिन भी ऐसा नहीं गुजरा है, जब दोनों देशों के बीच शांति रही हो।
दूसरी समस्या हिंद चीनी की है। ...माननीय विदेश मंत्री ने ठीक ही कहा है कि इसे सुलझाने के लिए जेनेवा के 14 राष्ट्रों का सम्मेलन बुला लिया जाए। मेरा निवेदन है कि हम इस दिशा में काफी उत्तरदायित्वपूर्ण काम कर रहे हैं। ...यह ठीक है कि हम गांधीवादी राष्ट्र हैं, परंतु इसका यह मतलब कभी भी नहीं है कि हम हर हालत में शांतिप्रिय हैं। दूसरा हमें यह भी ध्यान रखना है कि साम्राज्यवाद आज भी एक न एक रूप में उभरने का प्रयत्न कररहा है। मेरा मत यह है कि जब तक संसार में दो गुट बने रहेंगे, और प्रत्येक की संसार को नष्ट करने की क्षमता बनी रहेगी, तब तक खिंचाव और तनाव रहेगा। हमारे लिए यह बहुत ही जरूरी है कि हम दोनों गुटों से अलग रहें। हमें कभी नहीं भूलना चाहिए कि हम ऐसे विश्व में रह रहे हैं, जहां बड़े विनाशकारी तत्व मौजूद हैं। ऐसी हालत में हर देश का कर्तव्य है कि वह तनाव को कम करने की दिशा में यथाशक्ति सहयोग प्रदान करे।
...हमारे देश की नीति अन्य देशों के साथ मित्रता की नीति है, जिसे मोटे तौर पर गुटों से अलग रहने की नीति कहा जाता है। यह अच्छा होता, यदि शुरू से हमने अपनी नीति को यह नाम दिया होता, परंतु यह बाद में किया गया। जब हम पर अन्य लोगों ने यह तानाकशी की कि हम तभी तक तटस्थ हैं, जब तक कि कोई मुसीबत हमारे गले नहीं पड़ती है, तो फिर हमने यह कहना शुरू किया कि हम तटस्थ नहीं हैं, क्योंकि तटस्थता तो दो देशों के बीच वास्तविक युद्ध की स्थिति में होती है, हम तो दो सशस्त्र गुटों से अलग हैं। जब तक संसार में दो ऐसे गुट हैं, जिनमें से प्रत्येक की क्षमता संसार को नष्ट करने की है, तो इसके लिए संतुलन की स्थिति भी चाहिए। हमारे लिए इस स्थिति में यह आवश्यक है कि हम गुटों से अलग रहें, क्योंकि इसका अर्थ होगा कि हमारा देश शांतिप्रिय है। ...हम साम्राज्यवाद के विरुद्ध हैं, युद्ध के विरुद्ध हैं और सोवियत संघ से हमारी मित्रता है । सोवियत संघ में हमारे राष्ट्रपति के जाने के पश्चात जब एक पाकिस्तानी प्रतिनिधि वहां पहुंचा, तो उन्होंने उससे दृढ़तापूर्वक कह दिया कि भारत के साथ उनकी मित्रता स्थायी है और इस संबंध में उनके मत को बदलने का प्रयत्न करना निरर्थक है।
पाकिस्तान ... ने इस बात का खंडन किया है कि उसने हमारा राज्य-क्षेत्र चीन को दे दिया है और अपने समझौते की शर्तें भी बताई हैं। इस प्रकार दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि हम एक ऐसे राष्ट्र पाकिस्तान के साथ बातचीत कर रहे हैं, जिसके एक ओर, घोर पश्चिमी राष्ट्र है और दूसरी ओर, चीन। पाकिस्तान और चीन के इस प्रकार मिलकर हमारे शत्रु होने के अतिरिक्त हमारा एक तीसरा शत्रु भी है और वह है रूस-चीन विवाद...।
भूतपूर्व प्रधानमंत्री की नीति कहां तक सफल रही, यह तो इससे स्पष्ट हो जाएगा कि विश्व के लोग उनको किस भावना से देखते हैं और उनके प्रति देशवासियों का कितना स्नेह है? यह कहना शोभा नहीं देता कि उन्होंने हमारी विदेश नीति में असावधानी बरती, जिसके चलते एक भयानक बात हो गई। हमारे जैसी संसदीय सरकार प्रणाली में प्रधानमंत्री का विदेश नीति के साथ विशेष संबंध होता है, और यही बात हर ऐसे देश में है।